एपिडर्मोलिसिस बुलोसा क्या है?
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा दुर्लभ बीमारियों का एक समूह है, जिसमें त्वचा कमजोर होने लगती है व इसमें फफोले पड़ने लगते हैं। इस स्थिति में मामूली चोट, गर्मी, रगड़ या खरोंच से भी फफोले पड़ सकते हैं। गंभीर मामलों में शरीर के अंदर जैसे मुंह या पेट के अंदर भी फफोलों की समस्या हो जाती है।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा कई प्रकार का होता है, इनमें से ज्यादातर यह वंशानुगत होता है। यह स्थिति आमतौर पर शैशव अवस्था में दिखाई देने लगती है। कुछ लोगों में किशोरावस्था या वयस्कता की शुरुआत तक भी संकेत और लक्षण विकसित नहीं होते हैं।
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, इसके हल्के मामलों में उम्र के साथ सुधार हो सकता है। उपचार का फोकस छालों को ठीक करना व फफोले पड़ने से रोकना है।
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एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के संकेत और लक्षण क्या हैं?
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के प्रकार के आधार पर इसके लक्षण निर्भर करते हैं :
- कमजोर त्वचा, जिनमें आसानी से फफोले पड़ जाते हैं, खासकर हाथों और पैरों में
- मोटे नाखून
- मुंह और गले के अंदर फफोले
- हथेलियों और पैरों के तलवों की त्वचा मोटी होना
- खोपड़ी में फफोले, स्कार और बालों का झड़ना
- पिंपल्स
- दांतों की समस्याएं, जैसे दांतों की परत खराब होना
- निगलने में कठिनाई
- खुजली व दर्द होना
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का कारण क्या है?
एपिडर्मोलिसिस बुलोसा आमतौर पर एक वंशानुगत स्थिति है। इसमें माता या पिता किसी एक से खराब जीन उनके बच्चे में पारित हो जाता है। इस स्थिति को 'ऑटोसोमल डोमिनेंट इंहेरिटेंस' कहते हैं। हो सकता है कि माता-पिता दोनों से खराब जीन उनके बच्चे में पारित हो गया हो, इस स्थिति को 'ऑटोसोमल रिसेसिव इंहेरिटेंस' कहते हैं। या किसी अन्य कारण के वजह से भी एपिडर्मोलिसिस बुलोसा की समस्या हो सकती है।
बता दें, त्वचा एक बाहरी परत (एपिडर्मिस) और एक अंतर्निहित परत (डर्मिस) से बनी होती है। जिस हिस्से में परतें मिलती हैं उसे 'बेसमेंट मेम्ब्रेन' कहा जाता है। एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के प्रकार इस बात पर निर्भर करते हैं कि त्वचा की किस परत पर फफोले पड़ते हैं।
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एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का निदान कैसे होता है?
डॉक्टर त्वचा की जांच करके एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का निदान कर सकते हैं। निदान की पुष्टि के लिए वे लैब टेस्ट की मदद ले सकते हैं :
- इम्यूनोफ्लोरेसेंट मैपिंग के लिए त्वचा की बायोप्सी : यह एक तकनीक है जिसमें प्रभावित त्वचा का एक छोटा सा नमूना निकालकर लैब में माइक्रोस्कोप से जांच की जाती है। इस टेस्ट से यह भी पता चलता है कि त्वचा के विकास के लिए आवश्यक प्रोटीन कार्य कर रहे हैं या नहीं।
- जेनेटिक टेस्ट : आनुवंशिक परीक्षण का उपयोग कभी-कभी निदान की पुष्टि करने के लिए किया जाता है, क्योंकि एपिडर्मोलिसिस बुलोसा के ज्यादातर मामले वंशानुगत होते हैं। इसमें खून का एक छोटा सा नमूना लिया जाता है और विश्लेषण के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
- प्रीनेटल टेस्टिंग : जिनमें एपिडर्मोलिसिस बुलोसा की समस्या फैमिली हिस्ट्री से जुड़ी है, उन मामलों में प्रीनेटल टेस्टिंग और जेनेटिक काउंसलिंग की जाती है।
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एपिडर्मोलिसिस बुलोसा का इलाज कैसे किया जाता है?
यदि जीवनशैली में बदलाव और घर पर देखभाल करने से एपिडर्मोलिसिस बुलोसा से राहत नहीं मिलती है तो ऐसे में दवाएं और सर्जरी मदद कर सकती हैं। कुछ बहुत जटिल मामलों में मरीज की मौत भी हो सकती है इसलिए निदान होते ही उपचार लेना शुरू करें।
(1) दवाएं
दर्द, खुजली और रक्तप्रवाह में संक्रमण जैसी जटिलताओं का इलाज करने में दवाएं मदद कर सकती हैं। यदि बुखार, कमजोरी या सूजन है तो डॉक्टर ओरल एंटीबायोटिक्स (मुंह से ली जाने वाली दवाई) लिख सकते हैं।
(2) सर्जरी
कुछ मामलों में सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है, इनमें शामिल हैं :
- वाइडनिंग द एसोफीगस : भोजन नली में फफोले और स्कार हो जाने से सिकुड़न हो सकती है, जिससे खाना मुश्किल हो जाता है, ऐसे में इस सर्जरी के माध्यम से भोजन नली को चौड़ा किया जाता है।
- प्लेसिंग अ फीडिंग ट्यूब : भोजन को सीधे पेट तक पहुंचाने के लिए पेट तक एक फीडिंग ट्यूब लगाई जाती है। इससे पोषण की कमी नहीं होती और वजन बढ़ाने में मददगार होता है।
- ग्राफ्टिंग स्किन : यदि स्कार की वजह से हाथ की मूवमेंट में दिक्कत आती है तो डॉक्टर स्किन ग्राफ्ट की मदद ले सकते हैं। इसमें सर्जन प्रभावित हिस्से को ठीक करने के लिए शरीर के किसी दूसरे हिस्से से त्वचा निकालकर लगाते हैं।