आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम - Eisenmenger Syndrome in Hindi

Dr. Nabi Darya Vali (AIIMS)MBBS

December 09, 2020

December 09, 2020

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम
आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो कुछ ऐसे लोगों में हृदय से लेकर फेफड़ों तक रक्त के प्रवाह को प्रभावित करती है, जिनकी हृदय की बनावट सही से नहीं हुई है। य​ह एक जन्मजात हृदय दोष है जो कि तब होता है जब खून सामान्य तरीके से प्रवाहित नहीं होता है। इस स्थिति में रक्त वाहिकाएं कड़ी और संकीर्ण हो सकती हैं, जिससे फेफड़ों की धमनियों में दबाव बढ़ जाता है और फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं को स्थायी रूप से नुकसान होता है।

यदि इस हृदय दोष का जल्दी या समय पर निदान और इलाज शुरू कर दिया जाए तो इसे जानलेवा होने से रोका जा सकता है।

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं? - Eisenmenger Syndrome Symptoms in Hindi

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम के संकेतों में शामिल हैं :

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आइसेन्मेन्जर का कारण क्या है? - Eisenmenger Syndrome Causes in Hindi

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम की समस्या असामान्य रूप से रक्त परिसंचरण की वजह से होती है। ज्यादातर, इस स्थिति से ग्रस्त लोगों के दो पंपिंग चैंबर्स (बाएं और दाएं वेंट्रिकल) के बीच एक छेद होता है, जिस स्थिति को वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट कहते हैं। इस छेद की वजह से फेफड़ों से शरीर के बाकी हिस्सों में खून संचार होने की जगह वापस से फेफड़ों की ओर खून संचारित होने लगता है।

अन्य हृदय दोष जो आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम का कारण बन सकते हैं उनमें शामिल हैं :

  • एट्रियोवेंट्रिकुलर कैनल डिफेक्ट
  • एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट
  • साइनोटिक हार्ट डिजीज
  • पेटंट डक्टस आर्टेरियोसस
  • ट्रंकस आर्टेरियोसस

रक्त के प्रवाह में वृद्धि होने से फेफड़ों में छोटी रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है। इससे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या बनती है।

युवा अवस्था की ओर बढ़ने से पहले आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम विकसित हो सकता है। यह युवा अवस्था में भी शुरू हो सकता है और युवा अवस्था भर प्रगति कर सकता है।

(और पढ़ें - हाई बीपी की आयुर्वेदिक दवा और इलाज)

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है? - Eisenmenger Syndrome Diagnosis in Hindi

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम का निदान करने के लिए, डॉक्टर मेडिकल हिस्ट्री चेक करेंगे, वे शारीरिक परीक्षण कर सकते हैं और जरूरी क्लिनिकल टेस्ट का भी आदेश दे सकते हैं। इन परीक्षणों में शामिल हो सकते हैं :

  • ब्लड टेस्ट : खून में मौजूद कोशिकाओं (ब्लड सेल्स) की जांच के लिए ब्लड ​टेस्ट किया जा सकता है। अक्सर आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम की स्थिति में इन कोशिकाओं की संख्या ज्यादा होती है। ब्लड टेस्ट के साथ ही आपनी किडनी फंक्शन और आयरन के स्तर की भी जांच की जा सकती है।
  • इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी): इस टेस्ट के जरिये हृदय की विद्युत गतिविधियों को रिकॉर्ड किया जाता है, जो हृदय संबंधी दोषों का निदान करने में मदद कर सकता है।
  • छाती का एक्स-रे : डॉक्टर हृदय और हृदय में वृद्धि की जांच के लिए छाती का एक्स-रे करवाने के लिए कह सकते हैं।
  • कंप्यूटरीकृत टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन : सीटी स्कैन में, मरीज को एक विशेष मशीन पर लेटना होता है, जो फेफड़ों की स्पष्ट छवियां तैयार करता है। 
  • एमआरई : एमआरआई टेस्ट मैग्नेटिक फील्ड और रेडियो वेव्स का इस्तेमाल करके फेफड़ों में रक्त वाहिकाओं की छवियों का निर्माण करता है।
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आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम का इलाज कैसे होता है? - Eisenmenger Syndrome Treatment in Hindi

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम के यदि लक्षण दिखने लगे हैं तो ऐसे में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी करने के लिए शरीर से रक्त निकालने की जरूरत हो सकती है। इसके बाद रक्त की कमी को पूरा करने के लिए जरूरी तरल लेने की आवश्यकता होती है।

इस सिंड्रोम से ग्रसित लोगों को ऑक्सीजन दिया जा सकता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ऐसा करने से बीमारी को बदतर होने से रोकने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा, रक्त वाहिकाओं को आराम देने और उन्हें खोलने के लिए जरूरी दवाइयां दी जा सकती हैं। गंभीर लक्षणों वाले लोगों को हार्ट लंग्स ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है।

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम में जीवन प्रत्याशा कितनी होती है? - Eisenmenger Syndrome Life Expectancy in Hindi?

यदि सिंड्रोम का निदान तुरंत कर लिया जाता है और सतर्कता व सावधानी के साथ इलाज किया जाता है, तो ऐसे में आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम वाले रोगियों की जीवन जीने की सामान्य उम्र 20-40 वर्ष हो सकती है। हालांकि, कुछ रोगी जीवन के छठे दशक तक भी जीवित रहते हैं। इसमें मृत्यु आमतौर पर हार्ट फेलियर, हैमोप्टाइसिस या थ्रोम्बोएम्बोलिज्म की वजह से होती है।

(और पढ़ें - ब्लड क्लॉटिंग या खून का थक्का जमना)

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प्रेग्नेंसी में आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम? - Eisenmenger Syndrome in Pregnancy in Hindi?

आइसेन्मेन्जर सिंड्रोम से ग्रस्त गर्भवती महिलाओं में सायनोसिस या डिफरेंशियल सायनोसिस, डिस्पेनिया, थकान, चक्कर आना और यहां तक कि दिल के दाएं हिस्से के काम न करने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। शारीरिक परीक्षाओं की मदद से सायनोसिस और क्लब्ड फिंगर्स (उंगलियों का अगला सिरा सामान्य से बड़ा होना) का पता चल सकता है।