एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) - Ehlers Danlos Syndrome in Hindi

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August 31, 2020

January 30, 2024

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम
एलर्स डैनलोस सिंड्रोम

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) एक ऐसी आनुवंशिक स्थिति है जो शरीर में संयोजी ऊतकों को प्रभावित करती है। संयोजी ऊतक त्वचा, रक्त वाहिकाओं, हड्डियों और अंगों की संरचना और संयोजन में विशेष भूमिका निभाते हैं। संयोजी ऊतक प्रोटीन और अन्य पदार्थों से मिलकर बने होते हैं जो आपके शरीर की संरचनाओं को शक्ति देने और उन्हें लचीला बनाने में मदद करते हैं।

जिन लोगों को एलर्स डैनलोस सिंड्रोम की समस्या होती है, उनके जोड़ लचीले हो जाते हैं। इतना ही नहीं ऐसे लोगों की त्वचा नाजुक और खिंचाव वाली हो जाती है। ईडीएस के कारण कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। जैसे यदि आपको कहीं घाव हो गया है तो त्वचा पर टांके लगाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि टांकों को कसाव देने के लिए इनकी त्वचा पर्याप्त मजबूत नहीं होती है।

इस लेख में हम एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानेंगे।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम के प्रकार - Types of Ehlers Danlos Syndrome in hindi

अब तक किए गए अध्ययनों में 13 प्रकार के एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) का पता चला है। ये सभी शरीर के अलग-अलग अंगों को प्रभावित करते हैं। हालांकि, अगर इसके सभी प्रकारों पर ध्यान दिया जाए तो इन सबमें एक चीज समान मालूम पड़ती है, वह है- हाइपरमोबिलिटी। जोड़ों के असामान्य रूप से मुड़ने की स्थिति को हाइपरमोबिलिटी के नाम से जाना जाता है। आइए ईडीएस के उन 13 प्रकारों के बारे में जानते हैं।

  1. क्लासिक
  2. क्लासिक लाइक
  3. कार्डिएक वाल्वुलर
  4. वैस्कुलर
  5. हाइपरमोबाइल
  6. आर्थोचाल्सिया
  7. डर्मेटोस्पार्क्सिस
  8. काइफोस्कोलियोटिक
  9. ब्रिटल कॉर्निया
  10. स्पोंडिलोडिसप्लास्टिक
  11. मस्कुलोकंट्रैक्चुअल
  12. मयोपेथिक
  13. प्रियोडॉटल

अमेरिका स्थित नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के जेनेटिक्स होम रिफ्रेंस के अनुसार दुनियाभर में 5,000 लोगों में से एक व्यक्ति ईडीएस से प्रभावित होता है। हाइपरमोबिलिटी और क्लासिक ईडीएस सबसे ज्यादा आम हैं, बाकी अन्य प्रकार के ईडीएस को दुर्लभ माना जाता है। उदाहरण के लिए ईडीएस का एक रूप डर्मेटोस्पार्क्सिस से दुनिया भर में अनुमानित केवल 12 बच्चे प्रभावित होते हैं।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) के लक्षण - Ehlers Danlos Syndrome symptoms in hindi

ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि माता-पिता से मिलने वाले जीन में किसी प्रकार के दोष के कारण ईडीएस की स्थिति उत्पन्न होती है। हालांकि, यह जरूरी नहीं है कि माता-पिता में भी ईडीएस के कोई लक्षण हों। अब तक ईडीएस के देखे गए दो सबसे आम प्रकारों के लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं।

क्लासिक ईडीएस के लक्षण

हाइपरमोबाइल ईडीएस के लक्षण

  • जोड़ों में ढीलापन
  • आसानी से चोट लग जाना
  • मांसपेशियों में दर्द और थकान
  • क्रोनिक डीजेनरेटिव ज्वाइंट डिजीज
  • प्रीम्च्योर ऑस्टियोआर्थराइटिस
  • लंबे समय तक रहने वाला दर्द
  • हार्ट वाल्व की समस्या

वैस्कुलर ईडीएस के लक्षण

  • रक्त वाहिकाओं का नाजुक होना
  • पतली त्वचा
  • त्वचा का पारदर्शी होना
  • पतली नाक
  • उभरी हुई आंखें
  • पतले होंठ
  • पिचके हुए गाल
  • हार्ट वाल्व की समस्या

एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में लक्षण भिन्न हो सकते हैं। एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) वाले कुछ लोगों के जोड़ अत्यधिक लचीले हो सकते हैं, जबकि कुछ लोगों में त्वचा संबंधी कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम (ईडीएस) के कारण - Ehlers Danlos Syndrome causes in hindi

ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि ईडीएस की समस्या आनुवंशिक होती है। कुछ मामलों में इसके कारण भिन्न हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक ईडीएस का मुख्य कारण जीन उत्परिवर्तन है। जीन में दोष के कारण कोलेजन नाम प्रोटीन बनने की प्रक्रिया और निर्माण प्रभावित होता है जो ईडीएस के लक्षणों को उत्पन्न ​कर सकता है।

ADAMTS2 के अलावा नीचे दिए गए सभी जीन कोलेजन को एकत्रित करने और उनके निर्माण का निर्देश देते हैं। जबकि ADAMTS2, कोलेजन के साथ काम करने वाले अन्य दूसरे प्रोटीनों को बनाने का निर्देश देता है। ईडीएस की स्थिति उत्पन्न करने वाले संभावित जीनों की सूची निम्नलिखित है।

  • ADAMTS2
  • COL1A1
  • COL1A2
  • COL3A1
  • COL5A1
  • COL6A2
  • PLOD1
  • TNXB

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी व्यक्ति में ईडीएस के किसी भी प्रकार के लक्षण हैं तो 50 फीसदी आशंका होती है कि यह जीन उनके बच्चों को भी प्रभावित कर सकते हैं।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम की जटिलताएं और रोकथाम - Prevention of Ehlers Danlos Syndrome in hindi

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम लक्षणों के आधार पर लोगों को तमाम प्रकार की जटिलताएं हो सकती हैं। उदाहरण के लिए जोड़ों के अत्यधिक लचीले होने के कारण जोड़ अपनी जगह से हट सकते हैं, इससे गठिया रोग होने का खतरा रहता है। वहीं त्वचा के अत्यधिक लचीले और नाजुक होने के कारण हमेशा के लिए निशान पड़ सकते हैं। 

जिन लोगों को वैस्कुलर ईडीएस की शिकायत होती है उनमें प्रमुख रक्त वाहिकाओं के फटने का डर रहता है। रक्त वाहिकाओं के अलावा गर्भाशय और आंत जैसे अंगों के फटने का खतरा भी इन लोगों में सबसे ज्यादा होता है। गर्भावस्था के दौरान इन जोखिमों का खतरा और बढ़ा जाता है।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम के रोकथाम के तरीके

यदि आपको या आपके परिवार में किसी को एलर्स डैनलोस सिंड्रोम की शिकायत रह चुकी हो तो आपको जेनेटिक काउंसलर से मिलना चाहिए। ऐसा करके आप अपने बच्चों को इस तरह की समस्याओं से सुरक्षित कर सकते हैं। जेनेटिक काउंसलर आपको ईडीएस के प्रकार और वंशानुक्रम पैटर्न के बारे में अच्छे से समझा सकते हैं।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम का निदान - Diagnosis of Ehlers Danlos Syndrome in hindi

सामान्य रूप से जोड़ों का ढीलापन, नाजुक या खिंचाव वाली त्वचा को देखकर ही एलर्स डैनलोस सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है। ईडीएस का निदान करने के लिए डॉक्टर कई तरह के परीक्षण कर सकते हैं, जिससे कारणों का पता लगाया जा सके। ईडीएस का पता लगाने के मुख्य रूप से जेनेटिक टेस्ट, स्किन बायोप्सी और इकोकार्डियोग्राम जैसे परीक्षण किए जाते हैं। इकोकार्डियोग्राम परीक्षण के दौरान ध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है, जिससे हृदय की मूविंग इमेज प्राप्त की जा सके। इसके माध्यम से डॉक्टर असामान्यताओं का पता लगाते हैं।

इसके अलावा जीनों में उत्परिवर्तन की स्थिति को जानने के लिए ब्लड टेस्ट कराया जाता है। वहीं स्किन बायोप्सी के जरिए कोलेजन उत्पादन में असामान्यताओं का पता लगाया जाता है। स्किन बायोप्सी टेस्ट के लिए त्वचा का एक छोटा सा सैंपल लेकर उसका माइक्रोस्कोपिक परीक्षण किया जाता है।

इन परीक्षणों के अलावा कई मामलों में डीएनए टेस्ट कराने की भी सलाह दी जाती है। इससे भ्रूण में दोषपूर्ण जीन की मौजूदगी का पता लगाना आसान होता है। यह परीक्षण तब किया जाता है, जब आइवीएफ के जरिए अंडों को महिला के शरीर के बाहर निषेचित किया जाता है।

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम का इलाज -Treatment of Ehlers Danlos Syndrome in hindi

एलर्स डैनलोस सिंड्रोम के प्रकार के आधार पर इलाज के तरीकों को प्रयोग में लाया जाता है। बीमारी की अलग-अलग स्थितियों के लिए कई प्रकार के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। जैसे-

  • आर्थोपेडिक्स - जोड़ों और हड्डियों की समस्याओं के इलाज के लिए।
  • डर्मेटोलॉजिस्ट- त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए।
  • रुमेटोलॉजिस्ट- संयोजी ऊतकों को प्रभावित करने वाली बीमारियों के इलाज के लिए ।

ईडीएस के उपचार के लिए उपचार के निम्न तरीकों को प्रयोग में लाया जाता है।

  • फिजिकल थेरपी - जोड़ों और मांसपेशियों संबंधी परेशानियोंं में यह काफी फायदेमंद होता है।
  • जोड़ों की क्षति को ठीक करने के लिए सर्जरी।
  • दर्द को कम करने के लिए दवाएं

यदि रोगी को बहुत ज्यादा दर्द रहता हो तो उसके लिए उपचार के कुछ और माध्यमों को प्रयोग में लाया जाता है। जोड़ों के दर्द को कम करने और किसी प्रकार के चोट से खुद को सुरक्षित रखने के लिए कुछ उपायों के सुझाव दे सकते हैं। जैसे-

  • खेलकूद जैसी गतिविधियों से दूर रहें
  • वजन उठाने से बचें
  • त्वचा की रक्षा के लिए सनस्क्रीन का उपयोग करें
  • ऐसे साबुन के प्रयोग से बचें जो त्वचा को नुकसान पहुंचाने के साथ एलर्जी का कारण बन सकते हों
  • जोड़ों पर पड़ने वाले दबाव को कम करने के लिए सहायक उपकरणों का उपयोग करें