ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम क्या है?
ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम एक बहुत ही दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जिसमें संकेतों और लक्षणों की एक व्यापक श्रृंखला है। यह जेनेटिक बीमारी इतनी दुर्लभ है कि अब तक सिर्फ 150 से 200 लोगों में ही इसे डायग्नोज किया गया है। विशिष्ट लक्षणों के आधार पर ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम की पहचान जन्म से पहले और जन्म के बाद की जा सकती है। इन लक्षणों में छोटा कद होना (इसे गर्भावस्था के दौरान देखा जा सकता है), धीमा विकास, छोटा सिर (माइक्रोसिफली), बौद्धिक विकलांगता, एक्जिमा (त्वचा विकार), बार-बार संक्रमण होना और चेहरे की आकृति का असामान्य होना शामिल है। चेहरे की इन विकृतियों में- छोटा, सिकुड़ा हुआ या त्रिकोण-आकार का चेहरा, माथे का बाहर की ओर झुका या निकाला हुआ होना और आंखों के चारों ओर अविकसित हड्डियां शामिल है।

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ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम के लक्षण - Dubowitz Syndrome Symptoms in Hindi

जैसा कि हमने पहले ही बताया है ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम में कई लक्षण देखने को मिलते हैं। कभी-कभी नजर आने वाले कुछ अन्य लक्षणों में हाथ और की उंगलियां असामान्य होना, कंकाल में अंतर और अंडकोष, लिंग या योनि का सही तरीके से निर्माण न होना शामिल है। इसके अलावा मरीज को उनके पाचन तंत्र, हृदय, नसों और मांसपेशियों से जुड़ी परेशानी भी हो सकती है।

वैसे तो इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में लक्षणों के प्रकार और गंभीरता में अंतर हो सकता है लेकिन ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में कुछ कॉमन लक्षण भी होते हैं। ऐसे लोगों को एलर्जी का अनुभव होता है और वे आसानी से किसी भी संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं।

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ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम का कारण क्या है - Dubowitz Syndrome Causes in Hindi

ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम का कारण ज्ञात नहीं है। लेकिन कुछ पीड़ित लोगों में दो जीन (NSUN4 और LIG4) में परिवर्तन के कारण ये समस्या आती है। जबकि अन्य रोगियों में डीएनए (माइक्रोडुप्लिकेशंस/माइक्रोडीलिशन्स) में छोटे-छोटे जुड़ाव या घटाव की वजह से यह समस्या होती है। वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि इस बीमारी को आनुवंशिक रूप में (ऑटोसोमल रिसेसिव तरीके से) ट्रांसफर किया जा सकता है।

दरअसल व्यक्ति को प्रत्येक माता-पिता से जीन की दो कॉपियां मिलती हैं एक अपनी मां से और एक अपने पिता से। कभी-कभी जीन में म्यूटेशन्स (उत्परिवर्तन) होते हैं जो उन्हें ठीक से काम करने से रोकते हैं। अगर किसी विशिष्ट जीन की दोनों कॉपियां ठीक से काम नहीं करती हैं, तो उस व्यक्ति को विशिष्ट ऑटोसोमल रिसेसिव आनुवंशिक बीमारी होती है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति में एक सामान्य जीन और एक खराब जीन हो तो व्यक्ति बीमारी का वाहक होगा, लेकिन आमतौर पर उसमें लक्षण नहीं दिखाई देंगे।

ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम का निदान - Diagnosis of Dubowitz Syndrome in Hindi

कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम लक्षणों का एक समूह है जो अक्सर एक साथ दिखाई देते हैं। इसलिए ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम का निदान कुछ हद तक मुश्किल भरा होता है क्योंकि जेनेटिसिस्ट (आनुवंशिकीविद्) किसी स्पष्ट आनुवंशिक टेस्ट का आदेश नहीं दे सकते। वे केवल उन लक्षणों के आधार पर किसी को डायग्नोज कर सकते हैं जो पीड़ित में दिखायी देते हैं जबकि दुविधा की बात यह है कि हर मरीज में लक्षण अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। लेकिन कुछ मुख्य लक्षण हैं जिनके आधार पर इस बीमारी की पहचान की जा सकती है जैसे कि रोगी का छोटा कद, धीमी विकास दर, छोटा सिर, चेहरे से संबंधित संकेत या विकृति (पलकें और भौहों की असमानताएं) बौद्धिक अक्षमता और एक्जिमा।

ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम का इलाज - Dubowitz Syndrome Treatment in Hindi

ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम का इलाज, उन लक्षणों के आधार पर किया जाता है जो कि पीड़ित व्यक्ति में दिखाई देते हैं जैसे कि एक्जिमा का इलाज करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि अक्सर एक्जिमा के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम आधे से ज्यादा लोगों में प्रभावी नहीं दिखाई देती। त्वचा विशेषज्ञ यह निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं कि एक्जिमा के इलाज के लिए सबसे अच्छा विकल्प क्या हो सकता है।

वहीं, दृष्टि संबंधी समस्याओं के निवारण के लिए चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस की मदद ली जा सकती है। आंख में मोतियाबिंद को सर्जरी के माध्यम से निकाला जा सकता है। सर्जरी कंकाल संबंधी कई (हड्डी) समस्याओं को भी ठीक कर सकती है, विशेष रूप से उंगलियों, हाथों और पैरों की समस्या से जुड़ी। चेहरे की कुछ विकृतियों को भी सर्जरी से ठीक किया जा सकता है, जैसे कि फांक तालु और झुकी या लटकी हुई आंखें।

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ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम में जीवन प्रत्याशा- Dubowitz Syndrome Life Expectancy in Hindi

ड्यूबोवित्ज सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जो बच्चे को जन्म से ही मिल जाता है। लेकिन सवाल है कि इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा कितनी होती है। एनसीबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार यह बीमारी आमतौर पर मोटर गतिविधियों (मासपेशियों) और भाषा की कार्यप्रणाली में कमी की वजह बनती है जबकि व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक विकास में भी देरी आती है। यही कारण है कि इस रोग से ग्रसित व्यक्ति का अनुमानित जीवन काल कम होता है।

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