पलकों के नीचे की ओर लटकने की समस्या को चिकित्सीय भाषा में टोसिस (ptosis) पलकों का पक्षाघात या ब्लेफेरोप्टोसिस (blepharoptosis) कहा जाता है। जब किसी व्यक्ति को यह समस्या हो जाती है तो उसकी आंखों की ऊपरी पलक की सीमा सामान्य से ज्यादा नीचे तक झुक जाती है या लटक जाती है। टोसिस के गंभीर मामलों में, लटकती पलकें आंखों की पुतली (आंख का केंद्र भाग) के आधे या पूरे हिस्से को इस तरह से ढक लेती हैं कि इससे व्यक्ति की दृष्टि बाधित होने लगती है।
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टोसिस की समस्या जन्म के समय ही यानी जन्मजात भी हो सकती है या जीवन के बाद के सालों में भी विकसित हो सकती है। कंजेनिटल या जन्मजात टोसिस, मांसपेशियों की एक असामान्यता के कारण होता है जो पलक (उन्नयनी या लेवेटर मांसपेशी) को ऊपर उठाता है। लटकती पलकें या ड्रूपिंग आइलिड की समस्या से पीड़ित व्यक्ति में कई और लक्षण भी उपस्थित होते हैं जैसे- पलकों और आइब्रो के बीच सिलवट या क्रीज न होना, आंखों में उभार या सूजन होना, आंखों के नीचे काले घेरे होना, सूखी आंखें या आंखों में ज्यादा पानी आना और दृष्टि संबंधी समस्याएं शामिल हैं।
पलकों के लटकने की समस्या कई और कारणों से भी हो सकती है जैसे- उम्र बढ़ना, आंखों में संक्रमण होना, आंखों में ट्यूमर की समस्या, पेरिफेरल या परिधीय नस को नुकसान होना, मस्तिष्क धमनी विस्फार, थायराइड हार्मोन का सही तरीके से काम न करना, डायबिटीज, तंत्रिका संबंधी बीमारियां जैसे- मायस्थेनिया ग्रेविस और ऑक्यूलोफैरिंजियल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी। आंख या पलकों का अचानक गिरना या लटकना स्ट्रोक का संकेत हो सकता है जिसका अगर समय पर इलाज न हो तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।
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आमतौर पर, अगर मरीज को कोई परेशानी नहीं हो रही है तो टोसिस का इलाज नहीं किया जाता है। इलाज तब किया जाता है जब लटकती पलकों की वजह से दृष्टि बाधित हो रही हो या फिर आपके बाहरी रंग-रूप को यह समस्या प्रभावित कर रही हो। इस बीमारी के इलाज में सर्जरी के जरिए लटकती पलकों को वापस ऊपर उठाया जाता है।
जो बच्चे गंभीर टोसिस की समस्या के साथ पैदा होते हैं उन बच्चों में स्थायी दृष्टि क्षति को रोकने के लिए डॉक्टर तुरंत सुधारात्मक सर्जरी करते हैं। जिन बच्चों में टोसिस की हल्की समस्या होती है और जिनमें टोसिस की वजह से दृष्टि बाधित नहीं होती उन बच्चों में या तो सर्जरी या गैर-सर्जिकल उपाय जैसे- बोटॉक्स या फिलर्स का इस्तेमाल कर इलाज किया जाता है। अंतर्निहित समस्या या स्थिति के अनुसार बाकी के उपचार किए जाते हैं।
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