नीलरोग - Cyanosis in Hindi

Dr. Nadheer K M (AIIMS)MBBS

September 08, 2020

August 23, 2021

नीलरोग
नीलरोग

त्वचा या श्लेष्मा झिल्ली के रंगों के नीले पड़ जाने की स्थिति को सायनोसिस या नीलरोग के नाम से जाना जाता है। सामान्य रूप से होंठ, मुंह, हथेलियों, नाखूनों और पैरों के तलवों के आसपास इस नीले रंग को देखा जा सकता है। इस समस्या का मुख्य कारण खून में ऑक्सीजन की कमी है। सामान्य रूप से हीमोग्लोबिन के माध्यम से रक्त में ऑक्सीजन पहुंचता है। रक्त में (धमनियों में मौजूद) हीमोग्लोबिन के ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता को ऑक्सीजन सेचुरेशन कहा जाता है।

सामान्य रूप से हीमोग्लोबिन नामक ब्लड प्रोटीन, विभिन्न अंगों की धमनियों तक ऑक्सीजन ले जाने का कार्य करता है। प्रत्येक ग्राम हीमोग्लोबिन में 1.34 एमएल ऑक्सीजन की मौजूदगी होती है। ऑक्सीजन युक्त हीमोग्लोबिन चमकदार लाल रंंग का होता है, जबकि हीमोग्लोबिन में ऑक्सीजन की कमी के कारण इसका रंग बदलकर गहरा नीला या बैंगनी हो जाता है। रक्त में ऑक्सीजन रहित हीमोग्लोबिन की मात्रा का बढ़कर 5 ग्राम/ डीएल से ऊपर हो जाना सायनोसिस की समस्या उत्पन्न कर सकता है। पुरुषों में हीमोग्लोबिन की सामान्य मात्रा 13.5-18 ग्राम/ डीएल जबकि महिलाओं में 11.5-16 ग्राम/ डीएल होती है। यदि ऑक्सीजन सेचुरेशन की मात्रा में 80 से 87% के बीच गिरावट आ जाए तो यह सेंट्रल सायनोसिस का कारण हो सकता है, जोकि सायनोसिस का एक प्रकार है।

इस लेख में हम सायनोसिस के प्रकार, लक्षण, कारण और उसके इलाज के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

सायनोसिस के प्रकार - Types of Cyanosis in Hindi

सायनोसिस मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है।

सेंट्रल सियानोसिस

जीभ और होंठों पर देखे जाने वाले नीले रंग को सेंट्रल सायनोसिस के नाम से जाना जाता है। रक्त में ऑक्सीजन का स्तर घट जाने के कारण सेंट्रल सायनोसिस की समस्या देखने को मिलती है। यह हृदय और श्वसन संबंधी विकारों का मुख्य कारण भी बन सकती है। यहां एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जिन लोगों को सेंट्रल सियानोसिस की शिकायत होती है उनमें पेरिफेरल सायनोसिस की भी समस्या देखने को मिलती है। कई प्रकार के दवाओं और अन्य कारणों के चलते भी सेंट्रल सियानोसिस की समस्या हो सकती है।

पेरिफेरल सायनोसिस

हाथों और पैरों की उंगलियों तथा नाखूनों के नीचे के हिस्से का नीला या बैंगनी रंग पेरिफेरल सायनोसिस का सूचक हो सकता है। बहुत ज्यादा ठंडे मौसम में यह समस्या अधिक होती है।

डिफरेंशियल सायनोसिस

शरीर के कुछ हिस्सों का नीले रंग का हो जाना जबकि बाकी का सामान्य रहना, डिफरेंशियल सायनोसिस का संकेत हो सकता है। यह निचले अंगों में या केवल ऊपरी अंगों में हो सकता है।

नवजात शिशुओं में सायनोसिस

नवजात शिशुओं में मुंह के आसपास का रंग नीला दिखाई पड़ सकता है। कुछ शिशुओं में पैर, सिर, या धड़ का रंग भी नीला हो सकता है। इससे यह पता चलता है कि बच्चे को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। जन्म के कुछ मिनटों बाद ही इसके लक्षण देखे जा सकते हैं।

(और पढ़ें - हीमोग्लोबिन की कमी)

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सायनोसिस के लक्षण क्या हैं - Cyanosis Symptoms in Hindi

हृदय या श्वसन प्रणाली को प्रभावित करने वाली तमाम बीमारियों की तरह सायनोसिस के भी लक्षण नजर आ सकते हैं।

शरीर प्रणालियों से संबंधित सायनोसिस के निम्न लक्षण भी नजर आ सकते हैं।

  • कुछ क्षणों के लिए चेतना हानि या भ्रम विकार जैसी स्थिति
  • नाखूनों के नीचे की त्वचा का बढ़ जाना
  • बच्चों में नींद की समस्या, संवेदनशीलता आदि
  • बुखार
  • बार-बार सिरदर्द होना

सायनोसिस का कारण क्या है - Cyanosis Causes in Hindi

सायनोसिस यानी शरीर के अंगों का रंग नीला पड़ जाने का मुख्य कारण शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा युक्त रक्त का न मिल पाना है। इसके कई कारण हो सकते हैं। शरीर के सभी अंगों तक रक्त के माध्यम से ही ऑक्सीजन पहुंचता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है- फेफड़ों को सांस के माध्यम से ऑक्सीजन मिलता है इसके बाद खून इस ऑक्सीजन को हृदय तक पहुंचता है। यहां से हृदय इस ऑक्सीजन युक्त रक्त को पंप करके धमनियों के माध्यम से शरीर के बाकी हिस्सों में पहुंचाता है। शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन युक्त रक्त पहुंचाने के बाद रक्त नसों के माध्यम से वापस फेफड़ों तक आ जाता है। यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है।

शरीर में कई सारी बीमारियां या स्थितियां ऐसी हो सकती हैं जो ऊतकों तक रक्त पहुंचने या फिर नसों के माध्यम से हृदय तक में वापस आने से रोक सकती हैं। इसके परिणामस्वरूप जब आपके ऊतकों को ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिल पाता है तो त्वचा का रंग नीला पड़ सकता है।

सेंट्रल सायनोसिस का कारण

सेंट्रल सियानोसिस रक्त के संचार संबंधी समस्याओं के कारण होता है। इसके कारण फेफड़ों में खराब स्तर का ब्लड ऑक्सीजन पहुंचने लगता है। धमनियों में ऑक्सीजन का सेचुरेशन 85 या 75 फीसदी नीचे चले जाने के कारण सेंट्रल सियानोसिस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

पेरिफेरल सायनोसिस का कारण

पेरिफेरल सायनोसिस, रक्त संचरण में किसी प्रकार के बाधा पहुंचने के कारण हो सकती है। इस स्थि​ति में ऑक्सीजन युक्त खून उंगलियों तक नहीं पहुंच पाता है।

(और पढ़ें - हीमोग्लोबिन टेस्ट)

सायनोसिस का निदान कैसे होता है - Diagnosis of Cyanosis in Hindi

सायनोसिस के अंतर्निहित कारणों के निदान के लिए मेडिकल हिस्ट्री, शारीरिक परीक्षण के साथ कई अन्य उपायों को प्रयोग में लाया जाता है। बीमारी के निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले मेडिकल चेक करेंगे। इसके अलावा डॉक्टर वे यह जानने की कोशिश करते हैं कि क्या किसी दवाई के प्रभाव के कारण ऐसी स्थिति तो नहीं हो रही है?

मेडिकल हिस्ट्री के अलावा डॉक्टर कई प्रकार के शारीरिक परीक्षण जैसे सांस और दिल की आवाज को सुनना, ब्लड प्रेशर और पल्स रेट की जांच कर सकते हैं। यदि पल्स रेट में कोई कमी या लो ब्लड प्रेशर की समस्या सामने आती है तो शॉक लगने का डर रहता है। ऐसे में रोगी को त्वरित रूप से फ्ल्यूड और दवाइयों की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा सायनोसिस के निदान के लिए निम्नलिखित परीक्षणों की आवश्यकता होती है।

  • सबसे पहले पल्स ऑक्सीमेट्री द्वारा धमनियों में आर्टेरियल ब्लड गैस टेस्ट और ब्लड ऑक्सीजन सेचुरेशन की जांच की जाती है। इन परीक्षणों के माध्यम से धमनियों के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाया जाता है।
  • डॉक्टर ब्लड काउंट की जांच कराने को कह सकते हैं। इसके माध्यम से लाल रक्त कोशिका की गणना (एनीमिया), हीमोग्लोबिन के स्तर में कमी (एनीमिया) या हाई आरबीसी काउंट (पॉलीसिथेमिया) जैसी स्थितियों का पता लगाया जाता है। सफेद रक्त कोशिकाओं का बढ़ना संक्रमणों की ओर संकेत करता है।
  • छाती का एक्स-रे
  • हृदय की अनियमितताओं का पता लगाने के लिए ईसीजी टेस्ट

जन्मजात हृदय संबंधी दोषों और हृदय गति में असामान्यताओं की जांच करने के लिए कई विशेष जांच कराने की आवश्यकता होती है।

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सायनोसिस का इलाज कैसे होता है - Treatment of Cyanosis in Hindi

यदि आपके हाथ या पैर नीले हो रहे हों तो इस स्थिति में विशेष चिकित्सा की आवश्यकता होती है। शरीर के प्रभावित हिस्सों में ऑक्सीजन युक्त रक्त प्रवाह को दोबारा शुरू कराने का प्रयास किया जाता है। समय पर उचित उपचार प्राप्त करने से परिणाम में सुधार होने की संभावना बढ़ जाती है। यह महत्वपूर्ण है कि सायनोसिस के इलाज में कोई भी दवा हमेशा चिकित्सक के सलाह पर ही लेनी चाहिए।

कई प्रकार की ऐसी दवाएं हैं जो रक्त वाहिकाओं को आराम देने में मदद कर सकती हैं। इसमें शामिल है :

  • एंटीडिप्रेशन वाली दवाएं
  • एंटीहाइपरटेन्सिव ड्रग्स
  • इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की दवाएं

इसके अलावा डॉक्टर आपको उन दवाओं के लिए रोक सकते हैं, जिनके कारण रक्त वाहिकाओं में संकुचन की स्थिति हो सकती है।

हृदय रोगों से जुड़ी गंभीर समस्याओं में रोगी को आपातकालीन चिकित्सा की आवश्यकता होती है। इसके अलावा रोगी को कैफीन और निकोटीन से परहेज की सलाह दी जाती है। इनके सेवन से भी रक्त वाहिकाओं में संकुचन का खतरा रहता है।

(और पढ़ें - रक्त संचार में कमी का कारण)