संयोजी ऊतक रोग - Connective tissue disease in Hindi

Dr. Anurag Shahi (AIIMS)MBBS,MD

January 08, 2021

September 02, 2021

संयोजी ऊतक रोग
संयोजी ऊतक रोग

कोई भी शारीरिक समस्या जो शरीर के एक हिस्से को दूसरे हिस्से से जुड़ने वाली संरचना को प्रभावित करती है उसे संयोजी ऊतक रोग कहा जाता है।

संयोजी ऊतक दो प्रकार के प्रोटीन से मिल कर बना होता है, जिन्हें कोलेजन और इलास्टिन के नाम से जाना जाता है। कोलेजन एक प्रकार का प्रोटीन है, जो टेंडनस लिगामेंट, त्वचा, कॉर्निया, कार्टिलेज, हड्डियों और रक्त वाहिकाओं में पाया जाता है। इलास्टिन एक लचीला प्रोटीन है, जो एक रबर की पट्टी की तरह दिखाई देता है। यह लिगामेंट और त्वचा का मुख्य हिस्सा होता है।

कनेक्टिव टिश्यू डिजीज से ग्रस्त व्यक्ति के शरीर में कोलेजन और इलास्टिन में सूजन आने लगती है। परिणामस्वरूप इनसे जुड़े प्रोटीन व शरीर के अन्य हिस्से भी क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।

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संयोजी ऊतक रोग के प्रकार - Types of Connective tissue disease in Hindi

संयोजी ऊतक रोगों के अलग-अलग 200 से भी अधिक प्रकार हो सकते हैं। जिनमें कुछ अनुवांशिक व कुछ वातावरणीय कारकों से होने वाले होते हैं। अन्य ऐसे भी हैं, जिनके कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। संयोजी ऊतक रोगों में प्रमुख रूप से निम्न को शामिल किया जाता है जैसे -

  • रूमेटाइड अर्थराइटिस -
    इसे आरए के नाम से भी जाना जाता है, जो सबसे आम प्रकार का संयोजी ऊतक रोग है। यह एक स्व-प्रतिरक्षित रोग है, जो अनुवांशिक कारणों से भी हो सकता है। जब प्रतिरक्षा कोशिकाएं जोड़ों को ढकने वाली झिल्ली को क्षति पहुंचाने लगती हैं, जो रूमेटाइड अर्थराइटिस रोग हो जाता है।
     
  • स्क्लेरोडर्मा -
    स्क्लेरोडर्मा एक स्व-प्रतिरक्षित रोग है, जिसमें स्कार ऊतक बनने लग जाते हैं। ये स्कार ऊतक मुख्य रूप से त्वचा, शरीर के अंदरुनी अंगों और यहां तक की छोटी रक्त वाहिकाओं में भी बनने लग जाते हैं।
     
  • ग्रैन्युलोमाटोसिस और पॉलिएंजीआइटिस -
    यह एक वैस्कुलाइटिस रोग का एक रूप है, जिसमें रक्त वाहिकाओं में सूजन आने लगती है। ग्रैन्युलोमाटोसिस और पोलिएंजीआइटिस में नाक, फेफड़े, गुर्दे व शरीर के कई अंग प्रभावित हो जाते हैं।
     
  • चर्ग-स्ट्रॉस सिंड्रोम -
    यह भी भी ऑटोइम्यून वैस्कुलाइटिस का एक रूप है। चर्ग-स्ट्रॉस सिंड्रोम में फेफड़ों, जठरातंत्र पथ और त्वचा में मौजूद रक्त वाहिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं।
     
  • सिस्टेमिक लुपस एरीथेमाटॉसस -
    इस रोग को एसएलई भी कहा जाता है। सिस्टेमिक लुपस एरीथेमाटॉसस में शरीर के सभी अंगों में मौजूद संयोजी ऊतक क्षतिग्रस्त होने लगते हैं।
     
  • माइक्रोस्कोपिक पॉलिएंजीआइटिस -
    यह भी एक स्व-प्रतिरक्षित रोग है, जिसमें शरीर मौजूद रक्त वाहिकााओं की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। यह काफी दुर्लभ विकार है।
     
  • पॉलिमायोसाइटिस/डर्मेटोमायोसाइटिस -
    इस रोग में मांसपेशियां क्षतिग्रस्त होने लगती हैं और उनमें गंभीर सूजन जाती है। जब इस स्थिति में त्वचा भी क्षतिग्रस्त होने लगे तो इसे डर्मेटोमायोसाइटिस के कहा जाता है।
     
  • मिक्सड कनेक्टिव टिश्यू डिजीज -
    इस स्थिति को शार्प सिंड्रोम भी कहा जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कई स्व-प्रतिरक्षित रोगों के कई लक्षण दिखने लग जाते हैं।

(और पढ़ें - मल्टीपल स्क्लेरोसिस के लक्षण)

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संयोजी ऊतक रोग के लक्षण - Connective tissue disease Symptoms in Hindi

संयोजी ऊतक रोग के विभिन्न प्रकारों के कारण इसके लक्षण भी विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं। हालांकि, कुछ शुरुआती लक्षण हैं, जो आमतौर पर संयोजी ऊतक रोगों में देखे जा सकते हैं। इनमें निम्न को शामिल किया जा सकता है।

  • अस्वस्थ महसूस होना -
    इसमें  थकान, कमजोरीहल्का बुखार आदि शामिल हैं।
     
  • हाथ व पैरों की उंगलियां सुन्न व ठंडी पड़ जाना -
    ऐसा आमतौर पर अधिक ठंड या तनाव के कारण होता है। ऐसी स्थिति में उंगलियां पहले सफेद और फिर धीरे-धीरे बैंगनी-नीली पड़ने लग जाती हैं। गर्म करने पर ये लाल हो जाती हैं।
     
  • उंगलियां व हाथों के जोड़ों में सूजन होना -
    ऐसा आमतौर पर जोड़ों के संयोजी ऊतकों में क्षति होने के कारण होता है।
     
  • मांसपेशी और जोड़ों में दर्द होना -
    कई बार शरीर के जोड़ों में सूजन व लालिमा होने के कारण विकृति हो जाती है और परिणामस्वरूप मांसपेशियों में दर्द होने लगता है।
     
  • चकत्ते -
    उंगलियों व त्वचा के कई हिस्सों पर लाल या भूरे रंग के चकत्ते, धब्बे या निशान दिखाई दे सकते हैं।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

यदि आपको ऊपरोक्त बताए गए किसी भी लक्षण या उससे संबंधी कोई संकेत दिख रहा है, तो डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। इसके अलावा यदि आपको कोई भी ऐसी समस्या है, जिससे आपको अपने रोजाना के काम करने में दिक्कत हो रही है, तो भी डॉक्टर से उस बारे में बात अवश्य करें।

खासतौर पर यदि आपको पहले कभी ऊपर बताए गए रोगों में से कोई हुआ है, तो डॉक्टर से बात करने में बिलकुल भी देरी नहीं करनी चाहिए।

संयोजी ऊतक रोग के कारण - Connective tissue disease Causes in Hindi

संयोजी ऊतक रोग के प्रकारों के अनुसार उसके कई अलग-अलग कारण हो सकते हैं। हालांकि, इसके ज्यादातर प्रकार अनुवांशिक होते हैं, जिन्हें वंशागत संयोजी ऊतक रोगों के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा वातावरण में मौजूद कारकों से भी कई संयोजी ऊतक रोग हो सकते हैं। अनुवांशिक स्थितियों के अलावा निम्न कुछ अन्य वातावरणीय कारक हैं, जो कनेक्टिव टिश्यू डिजीज का कारण बन सकते हैं, जैसे -

  • विषाक्त रसायनों के संपर्क में आना जैसे वायु प्रदूषण और सिगरेट का धुंआ आदि।
  • सूर्य की पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रावॉयलेट रेज) के संपर्क में आना

इसके अलावा स्वास्थ्य संबंधी कुछ कारण भी हैं, जो संयोजी ऊतक रोगों का कारण बन सकते हैं, जैसे -

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संयोजी ऊतक रोग का परीक्षण - Diagnosis of Connective tissue disease in Hindi

कनेक्टिव टिश्यू डिजीज के परीक्षण के दौरान डॉक्टर सबसे पहले मरीज के लक्षणों की जांच करते हैं और उसका शारीरिक परीक्षण करते हैं। साथ ही मरीज व उसके परिवार के स्वास्थ्य संबंधी जानकारी लेते हैं। इसके बाद डॉक्टर कई टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। टेस्ट का चयन भी इस बात पर निर्भर करता है, कि लक्षणों की जांच करते समय उन्हें संयोजी ऊतक रोग के कौन से प्रकार पर संदेह हुआ है। इस दौरान आमतौर पर निम्न टेस्ट किए जाते हैं -

संयोजी ऊतक रोग का उपचार - Connective tissue disease Treatment in Hindi

कनेक्टिव टिश्यू डिजीज के लिए अभी तक कोई स्थायी इलाज नहीं मिल पाया है। हालांकि, अनुवांशिक थेरेपी से मिली सफलताओं से इस रोग संबंधी कई स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने में मदद मिली है। इन्हीं सफलताओं की उम्मीद पर आगे भी इसका स्थायी इलाज ढूंढने की खोज जारी है।

संयोजी ऊतक रोगों के उन प्रकारों जो स्व-प्रतिरक्षित रोगों से जुड़े हैं, उनके लिए इलाज का मुख्य लक्ष्य रोग के लक्षणों को कम करना होता है। सोरायसिस और गठिया रोग के लिए खोजी गई नई थेरेपी प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभाव को दबा देती हैं, जो सूजन व लालिमा पैदा कर रही होती है।

स्व-प्रतिरक्षित स्थितियों से जुड़े संयोजी ऊतक रोगों के लिए आमतौर पर निम्न दवाओं का उपयोग किया जाता है -

  • कोर्टिकोस्टेरॉयड्स -
    ये दवाएं आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को शरीर की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाने से रोकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सूजन व लालिमा जैसी समस्याएं नहीं हो पाती हैं।
     
  • एंटीमलेरियल दवाएं -
    यदि संयोजी ऊतक रोगों के लक्षण गंभीर नहीं हो पाए हैं, तो मलेरिया रोधी दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है। ये दवाएं लक्षणों को उभरने से रोक सकती हैं।
     
  • कैल्शियम चैनल ब्लॉकर -
    ये दवाएं रक्त वाहिकाओं से जुड़ी हुई मांसपेशियों को शांत (रिलैक्स) करने में मदद करती हैं।
     
  • मेथोट्रेक्सेट -
    ये दवााएं रूमेटाइड अर्थराइटिस के लक्षणों को कंट्रोल करने में मदद करती हैं।
     
  • पल्मोनरी हाइपरटेंशन मेडिकेशन -
    ये दवाएं फेफड़ों में मौजूद रक्त वाहिकाओं को खोल देती हैं, जो आमतौर पर स्व-प्रतिरक्षित रोगों से हुई सूजन व लालिमा के कारण संकुचित हो गई थी।
     
  • सर्जरी -
    कुछ गंभीर मामलों में संयोजी ऊतक रोगों का इलाज करने के लिए सर्जरी करने की आवश्यकता भी पड़ सकती है। एल्हर्स डैनलोस या मार्फन सिंड्रोम जैसे गंभीर संयोजी ऊतक रोगों का इलाज करने के सर्जरी काफी प्रभावी हो सकती है। यदि स्थिति को गंभीर होने से पहले ही सर्जरी की जाए, तो उसके सफल होने की अत्यधिक संभावनाएं हो सकती हैं।
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संदर्भ

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संयोजी ऊतक रोग की ओटीसी दवा - OTC Medicines for Connective tissue disease in Hindi

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