कॉन सिंड्रोम क्या है?
कॉन सिंड्रोम एक एंडोक्राइन विकार है, जिसमें एड्रिनल ग्रंथी द्वारा एल्डोस्टेरोन हार्मोन का अत्यधिक स्राव होने लगता है। इसे प्राइमरी एल्डोस्टेरोनिज्म या प्राइमरी हाइपरएल्डोस्टेरोनिज्म भी कहा जाता है। इस हार्मोन के अत्यधिक उत्पादन से शरीर में सोडियम बढ़ता रहता है और पोटेशियम की कमी होती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को उच्च रक्त चाप (हाइपरटेंशन) हो जाता है।
एड्रिनल ग्रंथि दोनों गुर्दों के ऊपर मौजूद त्रिकोण जैसे दिखने वाले दो अंग हैं। एल्डोस्टेरोन एड्रिनल ग्रंथि की ऊपरी परत द्वारा स्त्रावित किया जाता है जिसे कोर्टेक्स कहते हैं। यह हार्मोन रक्त का घनत्व, दबाव, पीएच और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इसके उत्पादन को किडनी द्वारा बनाए गए प्रोटीन “रेनिन” से नियंत्रित किया जाता है। जब लो ब्लड प्रेशर के कारण रेनिन का स्तर बढ़ जाता है, तो किडनी तक रक्त का प्रवाह कम हो जाता है या सोडियम की कमी होती है। इसके परिणामस्वरूप एल्डोस्टेरोन के स्तर में वृद्धि होने लगती है। जब रेनिन के स्तर घटते हैं तो एल्डोस्टेरोन के स्तर भी कम हो जाते हैं।