ब्रेन फॉग, हमारी चेतना या समझ की एक बदली हुई अवस्था है जिसमें व्यक्ति के सजग या चौकस रहने की क्षमता कम हो जाती है, जागरुकता में कमी आती है, सतर्कता में कमी आती है और व्यक्ति सामान्य से कम फोकस्ड हो जाता है। ब्रेन फॉग से पीड़ित व्यक्ति स्पष्ट रूप से सोचने, स्पष्ट रूप से संवाद करने या बातचीत करने या किसी काम में ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ हो जाता है। साथ ही उस व्यक्ति को चीजों को याद रखने में भी परेशानी हो सकती है।
ब्रेन फॉग को मेंटल फॉग, सजगता या चेतना में अवरोध, आदि रूपों में भी जाना जाता है और ब्रेन फॉग निम्नलिखित स्थितियों में उत्पन्न हो सकता है:
- जब कोई व्यक्ति अल्कोहल या ब्रेन को प्रभावित करने वाले साइकोऐक्टिव पदार्थ जैसे ड्रग्स आदि का सेवन करता है या फिर जब वह ठीक तरह से सो नहीं पाता और नींद की कमी हो जाती है इस कारण भी व्यक्ति का मस्तिष्क फॉगी या क्लाउडी यानी धूमिल हो सकता है।
- कई बार कुछ गर्भवती महिलाओं को भी गर्भावस्था के दौरान रिलीज होने वाले हार्मोन्स या थकान की वजह से याददाश्त और जागरूकता (सतर्कता) में कमी की समस्या महसूस हो सकती है। गर्भावस्था से जुड़े ब्रेन फॉग को कभी-कभी प्रेगनेंसी ब्रेन या मॉमनेसिया के नाम से भी जाना जाता है।
- तनाव का उच्च स्तर और इसके परिणामस्वरूप होने वाली मानसिक थकान और शारीरिक थकावट के कारण भी ब्रेन फॉग की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- कई बार कुछ बीमारियों के कारण भी हमारा दिमाग फॉगी हो जाता है।
दरअसल, ब्रेन फॉग कई तरह की सेहत से जुड़ी समस्याओं का भी एक लक्षण हो सकता है:
- शरीर में पोषक तत्व संबंधी कमी जैसे- सोडियम की गंभीर कमी (हाइपोनैट्रेमिया) या विटामिन बी12 की कमी
- कोविड-19 और हेपेटाइटिस सी जैसे वायरल संक्रमण। रिसर्च से पता चलता है कि लगभग 100 तरह के वायरस हैं जो मस्तिष्क को संक्रमित कर सकते हैं- इनमें से, वायरस जो साइटोमेगालो वायरस संक्रमण, रूबेला और लिम्फोसाइटिक कोरियोमेनिनजाइटिस वायरस का कारण बनता है, उसका मस्तिष्क पर गंभीर और संभवतः स्थायी प्रभाव देखने को मिलता है। (ब्रेन फॉग से कहीं अधिक जो तुलनात्मक रूप से सिर्फ चेतना में होने वाला हल्का परिवर्तन है)।
- फाइब्रोमाइल्जिया जैसी बीमारियां जो लंबे समय तक रहती हैं उनकी वजह से भी ब्रेन फॉग हो सकता है।
- मस्तिष्क की चोट जिसमें स्ट्रोक और ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजूरी शामिल है।
- ब्रेन फॉग डिप्रेशन का भी एक सामान्य संकेत है। क्लिनिकल डिप्रेशन से पीड़ित लोगों को ध्यान केंद्रित करने में, चीजों को याद रखने में, निर्णय लेने में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं, या फिर डिप्रेशन से जुड़े ब्रेन फॉग के कारण उन्हें कार्यों को पूरा करने में अधिक समय लग सकता है।
- क्रोनिक फटीग सिंड्रोम, सीलिएक रोग और लंबे समय तक मर्क्यूरी के संपर्क में रहने के कारण भी ब्रेन फॉग का जोखिम बढ़ जाता है।
- ब्रेन फॉग कुछ दवाइयों या उपचार के साइड-इफेक्ट के तौर पर भी हो सकता है जैसे- कीमोथेरेपी (कीमो फॉग या कीमो ब्रेन एक प्रकार का संज्ञानात्मक या सोच से जुड़ी गड़बड़ी है जो कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसे कैंसर उपचारों के परिणामस्वरूप हो सकती है।)
लक्षणों की बात करें तो ब्रेन फॉग से पीड़ित व्यक्ति को स्पष्ट रूप से सोचने, चीजों को याद रखने और ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता महसूस होती है। कुछ लोग भटकाव भी महसूस कर सकते हैं और वे अपने परिवेश के बारे में सामान्य दिनों की तुलना में कम जागरूक भी हो सकते हैं। मरीज कई बार ऐसी शिकायत भी करते हैं कि मानो वे किसी घने कोहरे से गुजरते हुए अपने विचारों और यादों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हों। इस स्थिति में ज्यादातर लोगों की काम करने की गति धीमी हो जाती है और उनकी उत्पादकता में भी कमी आ जाती है।
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ब्रेन फॉग शॉर्ट-टर्म यानी कुछ समय के लिए भी हो सकता है या फिर लंबे समय तक भी मौजूद रह सकता है। यह किसी अंतर्निहित बीमारी का एक न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका तंत्र संबंधी) लक्षण भी हो सकता है। या फिर यह जीवनशैली या लाइफ स्टेज से संबंधित भी हो सकता है जिसमें चिंता की कोई बात नहीं होती। उदाहरण के लिए- अगर आपका ब्रेन सिर्फ इसलिए फॉगी महसूस कर रहा है क्योंकि आप पिछली कई रातों से लगातार जाग रहे हैं तो पर्याप्त नींद लेने के बाद ब्रेन फॉग में कमी आ सकती है।
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इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि मस्तिष्क में आयी तब्दीली के तौर पर ब्रेन फॉग क्या है, यह किस स्थिति की सूचना देता है, ब्रेन फॉग के लक्षण क्या हैं और कोविड-19 के संदर्भ में ब्रेन फॉग क्या है।