मूत्र पथ यानी यूरिनरी ट्रैक्ट में कई अंग होते हैं। जिनमें दो गुर्दे (मूत्र का उत्पादन करने के लिए खून से नाइट्रोजन और अन्य अपशिष्टों को फिल्टर करने वाले अंग), मूत्रवाहिनी यानी यूरेटर्स (यह पतली नलिकाएं होती हैं जो संबंधित गुर्दे को मूत्राशय यानी पेशाब की थैली से जोड़ती हैं), मूत्राशय (यहां पर पेशाब को रिलीज करने से पहले संग्रहित किया जाता है) और मूत्रमार्ग या यूरेथ्रा (मूत्राशय से निकलने वाला मार्ग जिसके जरिए पेशाब की थैली को खाली किया जाता है) शामिल होते हैं। कई बार, विभिन्न अंतर्निहित कारणों के चलते खनिजों और लवणों के साथ पेशाब अतिसंतृप्त हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप मूत्र पथ की पथरी बन जाती है। पथरी मूत्र पथ के पूरे मूत्र मार्ग में कहीं भी बन सकती है। कुछ मामलों में यह जहां बनती है वहीं पर स्थिर रहती है, जबकि कई मामलों में यह पूरे मूत्रपथ में इधर-उधर घूमती रहती है। इसके चलते अलग तरह के लक्षण पैदा होते हैं।
(और पढ़ें - पेशाब बंद होने का इलाज)
पेशाब की थैली में पथरी को ब्लैडर कैलकुली के नाम से भी जाना जाता है। मूत्र पथ की पथरी में यह अपेक्षाकृत कम ही होती है, जिसका सभी तरह के मूत्र पथ पथरी में मात्र 5 फीसद का ही योगदान होता है। दुनियाभर में (खासतौर पर पश्चिम के विकसित देश) पेशाब की थैली से जुड़े पथरी के मामले जहां एक ओर कम हो रहे हैं, वहीं विकासशील देशों में इसके मामले अपेक्षाकृत ज्यादा देखे जाते हैं। पेशाब की थैली में पथरी के मामले महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में 4-10 गुना ज्यादा देखने को मिलते हैं। विकासशील देशों खासकर जिनमें डिहाइड्रेशन और पोषण की कमी से जुड़े मामले देखे जाते हैं वहां बच्चों और प्रोस्टेट से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे बुजुर्ग पुरुषों में यह मामले ज्यादा सामने आते हैं।
हालांकि, अधिकांश यूरिनरी ट्रैक्ट स्टोन समान परिस्थितियों में विकसित होते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि पेशाब की थैली में पथरी और किडनी यानी गुर्दे की पथरी दोनों अलग-अलग होती हैं। गुर्दे रक्त को छानकर छनकर पेशाब बनाते हैं, जो तब तक पेशाब की थैली में जमा होती है, जब तक यह भर नहीं जाता और उसे मूत्र मार्ग के जरिए बाहर नहीं निकाल दिया जाता। पेशाब की थैली में जमा पेशाब में 90 फीसद पानी होता है, बाकी के 10 फीसद में प्रोटीन के चयापचय द्वारा शरीर से उत्पादित खनिज, लवण और नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। कई बार निर्जलीकरण, संक्रमण और मूत्र के प्रवाह में रुकावट के कारण पेशाब में खनिज, लवण और अन्य अपशिष्ट की मात्रा बढ़ जाती है, जो पेशाब की थैली में पेशाब के रुकने का कारण बनते हैं। ऐसी स्थिति में खनिज, लवण और अन्य अपशिष्ट इकट्ठा होकर पेशाब की थैली में पथरी बनाते हैं, इसे मूत्राशय की पथरी भी कहा जाता है। हालांकि, गुर्दे और पेशाब की थैली में पथरी एक समान नहीं होते, कभी-कभी गुर्दे में बनने वाली पथरी मूत्रवाहिनी के रास्ते पेशाब की थैली में पहुंच जाती है और पेशाब की थैली में पथरी जैसे लक्षण पैदा करती है। इसी तरह पेशाब की थैली में बनने वाली पथरी ब्लैडर सब्स्टीट्यूट तक पहुंच जाती है, जिसमें पेशाब जमा होती है। ब्लैडर सब्स्टीट्यूट के उदाहरणों में ऑर्थोटोपिक नियोब्लैडर भी शामिल है, जो या तो मूत्राशय कैंसर के रोगियों में पेशाब की थैली को हटाने (सिस्टेक्टॉमी) के बाद बनाया जाता है या उन बच्चों में बनाया जाता है, जिनमें जन्म से ही यूरिनरी ब्लैडर बर्थ डिफेक्ट हो और उसका इलाज न किया जा सकता हो।