बिन्सवैंगर रोग क्या है?
बिन्सवैंगर रोग एक प्रोग्रेसिव न्यूरोलॉजिकल विकार है। यह विकार तब होता है, जब मस्तिष्क के अंदरूनी भाग (बैसल गैंगलिया और थैलेमस) सफेद पदार्थ (नर्व फाइबर) सप्लाई करने वाली वहिकाको आर्टेरियोस्क्लेरोसिस और थ्रोम्बोएम्बोलिस्म प्रभावित करने लगता है। कुछ मरीजों को लगातार याददाश्त खोना, बौद्धिक क्षमताएं कम होना (डिमेंशिया), पेशाब करने की तीव्र इच्छा होना और असामान्य रूप से धीरे-धीरे, लड़खड़ा कर व अस्थिर पैटर्न में चलना (आमतौर पर 5 से 10 वर्ष की उम्र में) आदि लक्षण भी महसूस हो सकते हैं। यह वाहिकाओं संबंधी स्थिति होती है, इसलिए बीन्स वेंगर्स रोग से जुड़े लक्षण स्ट्रोक जैसी स्थितियों में पहले तो और बदतर हो जाते है, फिर कुछ समय में इनमें सुधार होने लगता है। लेकिन मरीज का संपूर्ण स्वास्थ्य लगतार प्रभावित होता रहता है, क्योंकि रक्त वाहिकाएं लगातार अवरुद्ध होती रहती हैं।
बिन्सवैंगर रोग के लक्षण
प्रभावित लोग तनाव ग्रस्त, बेपरवाह (उदास), असक्रिय और कोई भी निर्णय लेने में असक्षम हो जाते हैं। वे स्वयं को समाज से अलग महसूस करते हैं, अकेले पड़ जाते हैं और गलत तरह के निर्णय लेते हैं, उनकी योजना बनाने की कुशलता भी कम हो जाती है और वे ठीक तरह से बातचीत नहीं कर पाते। इसके अलावा प्रभावित व्यक्तियों को बोलने में दिक्कत (डिसार्थरिया), निगलने में तकलीफ (डिस्फेजिया) और मूत्र पर नियंत्रण करने में मुश्किल (मूत्र असंयमिता) होना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं। कुछ लोगों में ऐसी असामान्यताएं भी नजर आती हैं जो पार्किंसन रोग में दिखाई देती हैं, जैसे धीरे चलना, शरीर का संतुलन न बना पाना और छोटे व लड़खड़ाते कदम रखना। ट्रेमर को आमतौर पर इसका लक्षण नहीं माना जाता।
बीन्स वेंगर्स रोग से ग्रस्त कई लोगों में पहले स्ट्रोक या इस्कीमिक अटैक के मामले देखे जाते हैं।
बिन्सवैंगर रोग के कारण
बीन्स वेंगर्स रोग आर्टेरियोस्क्लेरोसिस, थ्रोम्बोलबोलिस्म और अन्य रोग जिनसे रक्त मस्तिष्क के अंदरूनी भागों तक सप्लाई करने वाली रक्त वाहिकाएं अवरुद्ध होती हैं, उनके कारण होता है। बीन्स वेंगर्स रोग होने का खतरा उन लोगों को भी होता है जिन्हें निम्न में से कोई रोग हो:
- हाइपरटेंशन
- धूम्रपान
- हाइपरकोलेस्ट्रॉलेमिया
- हृदय रोग
- डायबिटीज मेलिटस
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इसीलिए बीन्स वेंगर्स रोग वैस्कुलर डिमेंशिया का एक क्लीनिकल सिंड्रोम है जो किसी एक रोग के कारण नहीं बल्कि कई कारणों से होता है।
बिन्सवैंगर रोग का परीक्षण
बिन्सवैंगर रोग का परीक्षण आमतौर पर क्लीनिकल चेक अप कर के किया जाता है जिसमें मरीज के स्वास्थ्य संबंधी पिछली जानकरी व शारीरिक परीक्षण किया जाता है। इसके अलावा मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) या कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी स्कैन) आदि इमेजिंग टेस्ट भी किए जा सकते हैं। एमआरआई और सीटी स्कैन से नर्व फाइबर (सफ़ेद पदार्थ) के खराब होने और मस्तिष्क के अंदरूनी भागों में हुए कई विभिन्न प्रकार के स्ट्रोक आदि के बारे में पता चल जाता है।
बिन्सवैंगर रोग का इलाज
बिन्सवैंगर रोग में हुआ इस्कीमिक ब्रेन डैमेज ठीक नहीं किया जा सकता इसीलिए इसका ट्रीटमेंट स्ट्रोक के खतरे को कम करने पर केंद्रित होता है, जिससे इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसके इलाज में ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने वाली एंटी-हाइपरटेंसिव दवाएं, थ्रोम्बोएम्बोलिस्म को कम करने के लिए एंटीप्लेटलेट दवाएं (जैसे-एस्पिरिन) या वारफेरिन, एथेरोस्क्लेरोसिस को कम करने वाली स्टैटिन्स शामिल हैं। इसके अलावा धूम्रपान पर रोक और डायबिटीज नियंत्रित कर के भी इसका इलाज किया जाता है। एंटीडिप्रेसेंट का प्रयोग कर के बीन्स वेंगर्स रोग के कारण हुआ तनाव भी नियंत्रित किया जा सकता है। अन्य ट्रीटमेंट लक्षणों के अनुसार और सहायक होते हैं।