ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 (एपीएस-2) क्या है?
ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 (एपीएस-2) एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर (इम्यून सिस्टम का गलती से शरीर के स्वस्थ ऊतकों पर अटैक करना) है, जो कई हार्मोन बनाने वाली ग्रंथियों को नुकसान पहुंचाता है। इससे ग्रंथियों द्वारा बनने वाले कई जरूरी हार्मोनों के उत्पादन में कमी आ जाती है। इम्यून एंडोक्रिनोपैथी सिंड्रोम का सबसे सामान्य प्रकार ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 है।
यह एडिसन रोग के साथ ऑटोइम्यून थायराइड डिजीज और/या टाइप 1 डायबिटीज के कारण हो सकता है। आमतौर पर इस बीमारी में प्राइमरी हाइपोगोनाडिज्म, मायस्थीनिया ग्रेविस और सीलिएक रोग के भी लक्षण देखे जाते हैं। इस बीमारी में प्रभावित व्यक्ति को अन्य अंतःस्रावी ग्रंथियों (हार्मोन को सीधे खून में भेजने वाली ग्रंथियां) में समस्या हो सकती है।
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ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 के लक्षण
इस बीमारी से ग्रस्त लोगों में निम्नलिखित बीमारियां हो सकती हैं:
- सीलिएक डिजीज
- ग्रेव्स डिजीज
- हाशिमोटो थायरोडिटिस
- प्राइमरी एड्रेनल इंसफिशिएंसी
- टाइप I डायबिटीज मेलिटस
ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 के कारण
डॉक्टरों को अभी तक इस बीमारी का सही कारण पता नहीं चल पाया है, हालांकि उनका मानना है कि इम्यून के असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करने की स्थिति एपीएस-2 का कारक हो सकती है। इसमें आनुवांशिक और पर्यावरणीय दोनों कारक शामिल हो सकते हैं। यह बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करती है। एपीएस-2 और एडिसन रोग से ग्रस्त लगभग 10 फीसदी रोगियों के किसी रिश्तेदार में एड्रेनल हार्मोन की कमी थी एवं एपीएस-2 और टाइप 1 डायबिटीज (ऑटोइम्यून थायरॉयड डिजीज और/या टाइप 1 डायबिटीज) से ग्रस्त लगभग 10 फीसदी रोगियों के भाई या बहन में ये बीमारी थी।
ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 का इलाज
वर्तमान में एपीएस-2 का पता लगाने के लिए कोई विशेष टेस्ट उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन एपीएस-2 को निम्नलिखित तरीकों से नियंत्रित किया जा सकता है:
- साइक्लोस्पोरिन ए
इस दवाई का उपयोग उन मामलों में किया जाता है, जिन्होंने कभी लिवर, किडनी या हार्ट ट्रांसप्लांट करवाया हो और उनके शरीर ने इस नए अंग को रिजेक्ट कर दिया हो, ऐसे में यह दवाई ट्रांसप्लांट हुए ऊतकों के प्रति शरीर को सहज करने में मदद करती है।
- हॉर्मोनल थेरेपी
हार्मोनल थेरेपी एक उपचार है, जो कैंसर कोशिकाओं के विकास को धीमा करने या उन्हें रोकने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
- ग्लूकोकोर्टिकोइड्स
ग्लूकोकोर्टिकोइड्स का उपयोग कैंसर थेरेपी (कीमोथेरेपी) के कुछ दुष्प्रभावों को कम करने के लिए किया जा सकता है।
- थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन
यह एक सामान्य ब्लड टेस्ट है। इसका इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जाता है कि थायराइड ग्रंथि ठीक से काम कर रही है या नहीं।
- संतुलित आहार (बीमारी के आधार पर)
संतुलित आहार शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषण देता है और सम्पूर्ण सेहत में सुधार लाने में मदद करता है।
ऑटोइम्यून पॉलीएंडोक्राइन सिंड्रोम टाइप 2 का पता वयस्क उम्र में चलता है, आमतौर पर 30 साल की उम्र के आसपास इस बीमारी के लक्षण दिखने लगते हैं। प्रभावित व्यक्ति में अलग-अलग लक्षण दिखाई दे सकते हैं। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति उपरोक्त लक्षणों की पहचान करता है तो उसे मेडिकल टेस्ट करवाने की जरूरत है क्योंकि उचित समय पर इलाज शुरू कर देने से लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है।