एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम (एएचयूएस) एक ऐसी दुर्लभ बीमारी है जो मुख्य रूप से किडनी के कार्य को प्रभावित करती है। इसमें किडनी की छोटी रक्त वाहिकाओं में असामान्य तरीके से खून के थक्के (थ्रोम्बी) बनने लगते हैं। यदि यह थक्के रक्त प्रवाह को ब्लॉक या किसी तरह की बाधा उत्पन्न करते हैं, तो इन थक्कों की वजह से गंभीर चिकित्सा समस्याएं हो सकती हैं। एटिपिकल हेमोलिटिक-यूरीमिक सिंड्रोम की मुख्य तीन विशेषताएं हैं : हेमोलिटिक एनीमिया, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया और किडनी फेलियर

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एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम के लक्षण क्या हैं? - Atypical Hemolytic-Uremic Syndrome ke Symptoms in Hindi

एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम के लक्षण निम्नलिखित हैं :

  • एब्नॉर्मल लेक्टेट डिहाइड्रोजिनीज लेवल, बता दें लेक्टेट डिहाइड्रोगिनीज लेवल को एलडीएच यानी लेक्टिक एसिड डिहाइड्रोजिनीज कहते हैं। यह एक तरह का प्रोटीन होता है जो खून या शरीर के अन्य तरल पदार्थों में हो सकता है।
  • एक्यूट किडनी इंजरी, जिसे एक्यूट रीनल फेलियर भी कहते हैं। इसमें महज कुछ घंटों या कुछ दिनों में किडनी फेलियर या किडनी को किसी अन्य तरह का नुकसान हो सकता है।
  • हेमाट्यूरिया, इसमें व्यक्ति के पेशाब में खून आने लगता है।
  • माइक्रोएंजिओपैथिक हेमोलिटिक एनीमिया
  • प्रोटीन्यूरिया, इसमें व्यक्ति के पेशाब में प्रोटीन आ सकता है।

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एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम का कारण क्या है? - Atypical Hemolytic-Uremic Syndrome ke Causes in Hindi

एएचयूएस किसी भी उम्र में हो सकता है और अक्सर पर्यावरण व आनुवंशिक (जेनेटिक) कारकों के संयोजन की वजह से होता है। आनुवंशिक कारकों में जीन में गड़बड़ी होना शामिल है। करीबन 60 प्रतिशत मामलों में जीन में गड़बड़ी की पहचान की गई है, जिनमें सी3, सीडी46 (एमसीपी), सीएफबी, सीएफएच, सी​एफएचआर1, सी​एफएचआर3, सीएएफएचआर4, सीएफआई, डीजीकेई और टीएचबीडी शामिल हैं। इन सबमें सीएफएच नामक जीन में गड़गड़ी सबसे आम है, क्योंकि यह एएचयूएस के सभी मामलों के लगभग 30 प्रतिशत में पाया गया है।
पर्यावरणीय कारकों में कुछ दवाओं का सेवन (जैसे एंटीकैंसर ड्रग्स), क्रोनिक डिजीज (जैसे सिस्टेमिक स्लेरोसिस एंड मलिग्नैंट हाइपरटेंशन), वायरल या बैक्टीरियल इंफेक्शन, कुछ प्रकार के कैंसर, आर्गन ट्रांसप्लांट और गर्भावस्था शामिल हैं।

एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है? - Atypical Hemolytic-Uremic Syndrome ka Diagnosis in Hindi

एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम के निदान की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर सबसे पहले शारीरिक परीक्षण करेंगे। इसके अलावा वे लैब टेस्ट करवाने कर सलाह दे सकते हैं जिनमें शामिल हैं :

  • ब्लड टेस्ट : इस टेस्ट के माध्यम से यह निर्धारित करने में मदद मिल सकती है कि लाल रक्त कोशिकाओं को नुकसान हुआ है या नहीं। ब्लड टेस्ट की मदद से प्लेटलेट की गिनती के कम होने, लाल रक्त कोशिकाओं या क्रिएटिनिन के आसामान्य स्तर के बारे में भी पता चल सकता है।
  • यूरिन टेस्ट : यूरिन टेस्ट के माध्यम से पेशाब में प्रोटीन, खून और किसी तर​ह के संक्रमण का पता चल सकता है।
  • स्टूल सैंपल : इस टेस्ट की मदद से ई. कोलाई और ऐसे बैक्टीरिया का पता चल सकता है, जिसकी वजह से एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम होता है।

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एटिपिकल हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है? - Atypical Hemolytic-Uremic Syndrome ka Treatment in Hindi

एएचयूएस से ग्रस्त होने की स्थिति में हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट लेने की जरूरत होती है। इसके उपचार में जरूरी तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स को सावधानीपूर्वक रिप्लेस करना शामिल है, क्योंकि किडनी इन तरल पदार्थ और अपशिष्ट को सामान्य रूप से फिल्टर नहीं कर पाती है।

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ट्रांसफ्यूजन

  • इसमें हॉस्पिटल में नसों के जरिये लाल रक्त कोशिकाओं या प्लेटलेट्स की पूर्ति की जाती है।

दवाइयां

  • यदि किसी व्यक्ति को एएचयूएस की वजह से किडनी से जुड़ी समस्या है, तो डॉक्टर ब्लड प्रेशर को कम करने, इसे रोकने और किडनी को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए दवाइयां दे सकते हैं।
  • यदि यह जेनेटिक कारणों से हुआ है तो ऐसे में डॉक्टर रक्त वाहिकाओं को हुए नुकसान को ठीक करने के लिए एक्यूलाइजमैब (सोलाइरस) नामक दवा लेने का सुझाव दे सकते हैं। ध्यान रहे कोई भी दवा बिना डॉक्टर से सलाह लिए ना लें।
  • इसके अलावा किडनी डायलिसिस और प्लाज्मा एक्सचेंज की भी मदद ली जा सकती है।
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