एडी सिंड्रोम - Adie Syndrome in Hindi

Dr. Ayush PandeyMBBS,PG Diploma

October 30, 2018

March 06, 2020

एडी सिंड्रोम
एडी सिंड्रोम

एडी सिंड्रोम क्या है?

एडी सिंड्रोम एक प्रकार का न्यूरोलॉजिकल विकार होता है, जो आंखों की पुतली और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर देता है। इसमें एक आंख की पुतली का आकार सामान्य से थोड़ा बड़ा हो जाता है और तेज रौशनी में धीरे-धीरे सिकुड़ता है। शब्द "एडी सिंड्रोम" का उपयोग तब किया जाता है, जब आंख की पुतली और गहरे टेंडन रिफ्लेक्स प्रभावित हो जाते हैं। जिस स्थिति में सिर्फ आंख की पुतली ही प्रभावित होती है, उस स्थिति को एडी प्युपिल कहा जाता है।

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एडी सिंड्रोम के क्या लक्षण हैं?

एडी सिंड्रोम की मुख्य रूप से तीन लक्षण होते हैं, जैसे पुतली असाधारण रूप से फैल जाना, इसमें पुतली तेज रौशनी के संपर्क में आकर सिकुड़ना बंद कर देती है ,डीप टेंडन के कार्य कम हो जाना और असाधारण रूप से पसीने आना आदि। 

एडी सिंड्रोम से होने वाले कुछ अन्य लक्षण जैसे दूर दृष्टि दोष, फोटोफोबिया और पढ़ने में कठिनाई आदि। एडी सिंड्रोम से ग्रस्त कुछ लोगों में हृदय संबंधी समस्याएं भी देखी जा सकती हैं।

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एडी सिंड्रोम क्यों होता है?

ज्यादातर मामलों में एडी सिंड्रोम के सही कारण का पता नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि एडी सिंड्रोम के ज्यादातर मामले सिलीरी गैंग्लियन (Ciliary ganglion) क्षतिग्रस्त होने या उसमें सूजन आने से होते हैं। सिलीरी गैंग्लियन नसों की कोशिकाओं का एक समूह होता है, जो आंख के ठीक पीछे ओर्बिट में पाया जाता है। गैंग्लियन से जुड़ी कुछ नसें क्षतिग्रस्त होने से भी एडी सिंड्रोम हो सकता है। 

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एडी सिंड्रोम का इलाज कैसे  किया जाता है?

एडी सिंड्रोम एक काफी दुर्लभ प्रकार का रोग होता है, जिसकी परीक्षण करना काफी कठिन हो जाता है। इस रोग का परीक्षण करने के लिए डॉक्टर मरीज का शारीरिक परीक्षण करते हैं और उसके लक्षणों व स्वास्थ्य से जुड़ी पिछली जानकारी के बारे में पता करते हैं। परीक्षण की पुष्टि करने के लिए डॉक्टर कुछ प्रकार के लैब टेस्ट भी कर सकते हैं। टेस्टों से मिली जानकारी की मदद से एडी सिंड्रोम का परीक्षण करने में मदद मिलती है। 

एडी सिंड्रोम से प्रभावित पुतली जो तेज रौशनी में ठीक से सिकुड़ नहीं पा रही है, उसका इलाज डायल्युट पायलोकार्पिन (Dilute pilocarpine) की मदद से किया जाता है। इसके अलावा कुछ अन्य प्रकार के इलाज भी किए जा सकते हैं जैसे

  • जेनेटिक काउंसलिंग: इसकी मदद से मरीज के माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की भी मदद मिल सकती है।
  • चश्में लगाना: यदि मरीज को धुंधला दिखाई दे रहा है, तो उसके लिए उचित चश्मा निर्धारित किया जा सकता है। 

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