आयुर्वेद में वात को चंचल, ठंडा, रूखा जैसे हवा, पारदर्शी, हल्का और सूखा कहा गया है। वात को शरीर की गंध, गति, शरीर की गतिविधियों और गति में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। वात बहुत महत्वपूर्ण दोष है क्योंकि यह अन्य दो दोषों को नियंत्रित करता है और शरीर के सभी कार्यों को पूरा करता है। वैसे तो वात शरीर की सभी कोशिकाओं में मौजूद है, लेकिन ये मात्रा शरीर के विभिन्न स्थानों और अंगों में इसके वितरण के अनुसार अलग अलग होती है। उदाहरण के लिए, वात प्रमुख रूप से जोड़ों, बड़ी आंत (कोलन), कान की हड्डियों, कंधे की मांसपेशियों और पीठ के निचले हिस्से में देखा जाता है।
अन्य अंगों की तुलना में, रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में वात की मात्रा अधिक होती है। वात का प्राथमिक कार्य प्रजनन, श्वसन और लसीका प्रणालियों को नियमित करना तथा शरीर व रक्त कोशिकाओं में उचित रक्त संचरण को बनाए रखना है। वात हार्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर के स्राव को नियंत्रित करके मस्तिष्क में कार्यों को बनाए रखने में भी मदद करता है।
वात के प्रकार
अपने-अपने स्थानों और कार्यों के अनुसार वात के निम्नलिखित प्रकार होते हैं:
- उदान -
यह नाभि क्षेत्र, छाती, नथुनों और नाक के मार्ग में स्थित है। यह गुण हमारी चेतना, बोलना, शरीर का तेज, ऊर्जा का स्तर और श्वसन आदि को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- समान -
यह पूरे पेट में मौजूद होता है और भोजन को आत्मसात करने में मदद करता है तथा पाचन और उत्सर्जन को नियंत्रित करता है।
- अपान -
यह आंत संबंधी अंगों, जनन अंगों, मूत्र पथ, नितंब और पेट व जांघ के बिच के अंगों (इनगुइनल ऑर्गन) में स्थित है। यह मूत्र, मल, वीर्य का तरल पदार्थ, मासिक धर्म प्रवाह को नियमित करने और बच्चे के जन्म में मदद करता है।
- प्राण -
यह मस्तिष्क के कुछ महत्वपूर्ण केंद्रों में स्थित है और अन्य प्रकार के वात की गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- व्यान -
यह हृदय में स्थित है और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के अनुरूप रीढ़ की हड्डी के अनैच्छिक रिफ्लेक्स में मदद करता है। यह मांसपेशियों के संकुचन और विश्राम, रक्त और लसीका परिसंचरण और शरीर के स्राव जैसे कि नसों की उत्तेजना के माध्यम से पसीना आदि को नियंत्रित करता है।
असंतुलन का कारण बनने वाले कारक
सूखे, तीखे, कड़वे और कसैले खाद्य पदार्थ खाना, मल मूत्र समय पर न त्यागना , काम की अति , चिंता, कम सोना, यौन गतिविधियों में वृद्धि और अत्यधिक व्यायाम आदि कारक शरीर में वात के स्तर में असंतुलन पैदा कर सकते हैं। सामान्य वात स्तरों में परिवर्तन से शरीर के न्यूरोलॉजिकल सिस्टम में बदलाव होते हैं।
वात के असंतुलन के कारण होने वाले लक्षण
जब शरीर में वात का स्तर बदल जाता है तो निम्नलिखित लक्षणों को देखा जाता है:
- त्वचा का खुरदरापन
- अंगों का असंतुलित ढंग से हिलना डुलना
- हड्डियों में कैविटी बन जाना
- मुंह में कसैला स्वाद आना
- ऐंठन
- शरीर में तेज दर्द