आयुर्वेद में तीन दोष वात, पित्त और कफ होते हैं। जब दोष संतुलित होते हैं, तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है, लेकिन दोष में असंतुलन कई विकारों का कारण बनता है। इसलिए इनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तरीके को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।
मूल रूप से 2 प्रकार के असंतुलन होते हैं - प्राकृतिक और अप्राकृतिक। प्राकृतिक असंतुलन उम्र, दिन या मौसम के कारण हो सकता है। उदाहरण के लिए, कफ असंतुलन बचपन के दौरान, सर्दियों और वसंत के दौरान प्रबल होता है, पित्त मध्यम आयु में और गर्मियों के दौरान हावी होता है, जबकि वात बुढ़ापे में और पतझड़ ऋतु के मौसम (fall season) में हावी होता है। असंतुलन का यह प्रकार स्वाभाविक है और किसी भी प्रकार के विकार या बिमारी का कारण नहीं होता है।
अप्राकृतिक असंतुलन समस्याएं पैदा करता है। अनुचित आहार या जीवनशैली, परजीवी और वायरस के कारण दोषों का अप्राकृतिक असंतुलन आम तौर पर होता है। किसी भी दोष में असंतुलन की वृद्धि विकार का मुख्य कारण बनती है। किसी एक दोष की कमी भी एक बीमारी का कारण हो सकती है, लेकिन इसकी सम्भावना बहुत कम होती है। इसलिए दोषों को चेक में रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि असंतुलन हमारे शरीर के कार्यों में हस्तक्षेप करता है और कई रोगों का कारण भी बनता है। आइये अलग-अलग तीन दोषों के असंतुलन और लक्षणों के बारे में जानें –