डिल (Dill) एक जड़ी बूटी है जिसे वैज्ञानिक रूप से एनाथुम ग्रेवोलेंस (Anethum Graveolens) के नाम से जाना जाता है, जिसका उपयोग सैकड़ों वर्षों से रसोई और औषधीय उद्देश्यों के लिए किया गया है। हिंदी में इसे सोआ के रूप में भी जाना जाता है। इसके बीज, बीज का तेल और पूरे पौधे का भारतीय रसोई में उपयोग किया जाता है। औषधीय उद्देश्य के लिए इसके बीज, पत्तियों और जड़ों का इस्तेमाल किया जाता है। इस पौधे का उल्लेख प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ में शतपुष्प (shatapushpa) के रूप में किया गया है। आचार्य चरक ने शतपुष्प के पेस्ट को अलसी और अरंडी के बीज को दूध के साथ पीस कर गठिया और अन्य जोड़ों की सूजन के बाहरी उपयोग के लिए निर्धारित किया था।
इस द्विवार्षिक जड़ी बूटी की सतह चिकनी होती है। इस पर छोटे पीले रंग के फूल और अण्डाकार फल उगते हैं। इस पौधे में एक एकल डंठल होता है जो लगभग 1 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ता है। इसके पौधे उत्तरी अफ्रीका, एशिया और अन्य उष्णकटिबंधीय देशों के क्षेत्र में व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
डिल के स्वास्थ्य लाभ इसके कार्बनिक यौगिक, विटामिन्स और खनिजों से प्राप्त होते हैं। इनमें शक्तिशाली मोनोटरपेनस जैसे लाइमीन, कार्वोन और एनेथोफुरन के साथ साथ वैसेनिन और काम्पेरोल जैसे फ्लावोनोइड्स भी शामिल हैं। डिल विटामिन ए और विटामिन सी की मात्रा से भरपूर है साथ ही इसमें फोलेट, लौह और मैंगनीज भी पाया जाता है।