क्या आपने सोचा है कि जन्म के तुरंत बाद ही हमें अपने बच्चों के प्रति इतना प्यार क्यों महसूस होने लगता है? किसी को गले लगाना, प्यार में पड़ना या फिर यौन संबंध बनाने के दौरान एक अजीब से आनंद की अनुभूति क्यों होती है? इसका जवाब ये है कि इन सभी स्थितियों में शरीर में ऑक्सीटोसिन हार्मोन रिलीज होता है, यानी कि ऑक्सीटोसिन के कारण ही इस प्रकार के आनंद का अनुभव होता है। शायद यही कारण कि ऑक्सीटोसिन को 'लव हार्मोन' के नाम से भी जाना जाता है। हार्मोन स्वाभाविक रूप से शरीर में उत्पन्न होने वाले रसायन होते हैं जो शरीर के अंदर ही संदेशों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं और शरीर के सही विकास और सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करते हैं। ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बारे में विस्तार से समझते हैं।

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वैसोप्रेसिन के साथ ऑक्सीटोसिन हार्मोन का उत्पादन ब्रेन में मौजूद हाइपोथैलेमस द्वारा होता है जबकि मस्तिष्क का पॉस्टीरियर पिट्यूटरी लोब (पिछला पीयूष भाग) इस हार्मोन को रिलीज करता है। अब यदि आप सोच रहे हैं कि क्या पुरुषों में भी ऑक्सीटोसिन का उत्पादन होता है? तो इसका जवाब है हां, बिल्कुल। वैसे तो पुरुषों और महिलाओं, दोनो में ही समान मात्रा में इसका निर्माण होता है (उदाहरण के लिए बच्चे के जन्म के तुरंत बाद मां और पिता दोनों को बच्चे के प्रति अत्यधिक प्यार महसूस होता है), फिर भी महिलाओं में इसकी भूमिका अधिक महत्वपूर्ण है। अब कुछ लोगों के मन में एक सवाल और आ सकता है कि क्या बच्चे में भी ऑक्सीटोसिन का उत्पादन होता है तो इसका भी जवाब हां है।

रोमांस और यौन संबंध बनाना, समाज के प्रति सकारात्क सोच होना, बच्चे को जन्म देना और उसे अपना दूध पिलाना ऑक्सीटोसिन के उत्पादन और रिलीज के लिए महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। इसके अलावा सकारात्मक प्रतिक्रिया तंत्र यह सुनिश्चित करता है कि जब तक उत्तेजना मौजूद है संबंधित और प्रगतिशील कार्यों के लिए  हार्मोन का रिलीज होना जारी रहे। यह हार्मोन गर्भाशय, स्तन, प्रजनन पथ, प्रोस्टेट और किडनी पर प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त यह व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थिति पर भी प्रभाव डालता है।

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कुछ स्थितियों में ऑक्सीटोसिन की बाहरी आपूर्ति की भी आवश्यकता हो सकती है। कई बार डॉक्टर गर्भवती महिलाओं में लेबर को प्रेरित करने या उसे सपोर्ट करने के लिए भी ऑक्सीटोसिन फॉर्मूलेशन का इस्तेमाल करते हैं। इसे मांसपेशियों में, नसों में या इंट्रानेजल स्प्रे के माध्यम से दिया जाता है। कुछ रोगियों में इसके दुष्प्रभाव भी नजर आ सकते हैं जैसे- हाई ब्लड प्रेशरलो ब्लड प्रेशर, धड़कन का तेज होना या धीमा होना, शरीर में पानी और सोडियम का जमा होना, गर्भाशय में संकुचन महसूस होना, गर्भाशय का फटना या जन्म के वक्त सांस लेने में अवरोध महसूस होना जैसी समस्याएं।

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आइए प्यार, सामाजिक बंधन, माता-पिता से बच्चे के संबंध को स्थापित करने वाले, रिश्तों में विश्वास को बढ़ावा देने वाले और प्राकृतिक प्रसव को प्रेरित करने वाले ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बारे में विस्तार से जानते हैं।

  1. ऑक्सीटोसिन हार्मोन क्या है? - What is Oxytocin Hormone in Hindi
  2. ऑक्सीटोसिन हार्मोन कैसे बनता है? - What causes Oxytocin release in Hindi
  3. ऑक्सीटोसिन हार्मोन का कार्य - What does Oxytocin do in Hindi
  4. ऑक्सीटोसिन का उपयोग - Oxytocin uses in Hindi
  5. ऑक्सीटोसिन के नुकसान या दुष्प्रभाव - Side effects of oxytocin in Hindi
ऑक्सीटोसिन हार्मोन के डॉक्टर

हार्मोन, मुख्य रूप से रासायनिक संदेशवाहक होते हैं जिनका निर्माण शरीर में प्राकृतिक रूप से उन विशेष कोशिकाओं द्वारा होता है जो अंतःस्रावी ग्रंथियां बनाती हैं। अंतःस्रावी या इंडोक्राइन ग्रंथियों में नलिकाएं नहीं होती हैं और उनके उत्पाद यानी, हार्मोन सीधे खून में स्रावित होते हैं। शरीर की सुचारू कार्रवाई और उचित संचार को बनाए रखने के लिए हार्मोन्स संदेशों का प्रसारण करते हैं। यह संदेश या तो दो अंतःस्रावी ग्रंथियों के बीच प्रसारित होता है या फिर एक अंतःस्रावी ग्रंथि और दूसरा लक्षित अंग के बीच। इसे अंतःस्रावी तंत्र या इंडोक्राइन सिस्टम के रूप में जाना जाता है। दो अंतःस्रावी ग्रंथियों के बीच संदेश प्रसारित करने वाले हार्मोन अन्य सभी हार्मोनों के रिलीज को भी प्रभावित करते हैं। ये पिट्यूटरी या पीयूष ग्रंथि द्वारा स्रावित होता है।

ऑक्सीटोसिन हार्मोन के बारे में विस्तार से जानने से पहले पीयूष ग्रंथि के बारे में जानना महत्वपूर्ण है। यह मटर के आकार की एक ग्रंथि है जो मस्तिष्क के सतह पर स्थित होती है। इस ग्रंथि को 'मास्टर ग्रंथि' भी कहा जाता है। पीयूष ग्रंथि में दो लोब या हिस्से होते हैं- एंटीरियर (अगला) और पोस्टीरियर (पिछला)। आइए इन दोनों के बारे में जानते हैं।

  • एंटीरियर या अगला पीयूष अपने स्वयं के हार्मोन का उत्पादन करता है। (मस्तिष्क का हाइपोथैलेमस जिस हार्मोन का उत्पादन करता है उससे जुड़ी कार्रवाई)।
  • पोस्टीरियर या पिछला हिस्सा हाइपोथैलेमस द्वारा बनाए गए केवल दो हार्मोनों को संग्रहीत और स्रावित करता है- वैसोप्रेसिन और ऑक्सीटोसिन।

वैसोप्रेसिन के साथ ऑक्सीटोसिन (एंटीडायरेक्टिक हार्मोन) दो नैनोपेप्टाइड पोस्टीरियर पीयूष हार्मोन में से एक है। यह पुरुषों और महिलाओं, दोनों के हाइपोथैलेमस में संश्लेषित होता है, हालांकि महिलाओं में इसकी कार्रवाई और अधिक स्पष्ट और ध्यान देने योग्य होती है। दोनों ही लिंगों में रोमांटिक, शारीरिक और यौन गतिविधियों के परिणामस्वरूप इस हार्मोन का स्त्राव होता है इसलिए इसे लव हार्मोन भी कहते हैं। इसके अलावा प्रसव के दौरान यह महिलाओं में उत्पादित होता है जहां यह गर्भाशय संकुचन को बढ़ाता है। स्तनपान कराने में भी यह हार्मोन मदद करता है।

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वैसे तो यह महिलाओं की प्रजनन प्रणाली में बहुत आवश्यक है लेकिन पुरुषों में भी ऑक्सीटोसिन की महत्वपूर्ण भूमिका देखी जाती है। पुरुषों में स्खलन, शुक्राणु की गति, टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के साथ-साथ प्रोस्टेट की सेहत को बेहतर बनाए रखने में ऑक्सीटोसिन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इतना ही नहीं यह हार्मोन अपने एंग्सियोलिटिक ऐक्शन यानी तनाव और चिंता को कम करने की क्षमता की वजह से व्यक्ति के व्यवहार और सामाजिक संपर्क को बनाए रखने जैसी गतिविधियों को भी नियंत्रित करता है।

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ओएक्सटी जीन, ब्रेन में मौजूद हाइपोथैलेमस में ऑक्सीटोसिन प्रीकर्सर प्रोटीन को एनकोड करता है। न्यूरोफिसिन नाम के विशिष्ट बाध्यकारी प्रोटीन के साथ बंधने के बाद यह प्रीकर्सर, बारीक कण के रूप में पिछली पीयूष ग्रंथि में संग्रहित हो जाता है। इसके बाद उपयुक्त उत्तेजना मिलने पर एंजाइम के विभाजित करने वाले ऐक्शन की वजह से ये बारीक कण घुल जाते हैं और सक्रिय ऑक्सीटोसिन खून में रिलीज हो जाता है।

निम्न प्रकार की स्थितियां या उत्तेजना ऑक्सीटोसिन को रिलीज कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं-

सकारात्मक प्रतिक्रिया तंत्र
एक बार जब पीयूष ग्रंथि ऑक्सीटोसिन को रिलीज करना शुरू कर देती है तो सकारात्मक प्रतिक्रिया तंत्र की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। हार्मोन के निरंतर स्राव को बनाए रखने के जिम्मेदारी इसी तंत्र की होती है। उदाहरण के लिए जब कोई बच्चा मां के स्तन से दूध पीता है, तो निप्पल के स्पर्श से होने वाली तंत्रिकाओं की उत्तेजना हाइपोथैलेमस को संदेश देती है और इसी के आधार पर पीयूष ग्रंथि से ऑक्सीटोसिन रिलीज होता है। ऑक्सीटोसिन के कारण ही ब्रेस्ट मिल्क निकलना शुरू होता है जिसकी वजह से बच्चा और दूध खींचने लगता है और फिर इस तरह से ऑक्सीटोसिन का रिलीज जारी रहता है। इस तरह से ऑक्सीटोसिन का रिलीज बढ़ता है।  यह खुद को सीमित करने की एक प्रक्रिया भी है यानी जब बच्चे का पेट भर जाता है और वह दूध पीना बंद कर देता है तो ऑक्सीटोसिन रिलीज होना भी बंद हो जाता है।

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हार्मोन विशिष्ट ऑक्सीटोसिन रिसेप्टर्स के साथ खुद को बांध कर अपना प्रभाव पैदा करता है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में नजर आता है। आइए जानते हैं कि यह किस प्रकार से हमारे लिए महत्वपूर्ण है और शरीर के किन कार्यों में इसकी भूमिका होती है-

शारीरिक कार्य

  • गर्भाशय का संकुचन: ऑक्सीटोसिन रिसेप्टर्स गर्भाशय के मस्क्युलर मायोमेट्रियम कोशिकाओं पर मौजूद होते हैं। एस्ट्रोजन, ऑक्सीटोसिन की कार्रवाई के लिए गर्भाशय को संवेदनशील बनाता है। हालांकि जो महिलाएं गर्भवती नहीं होती हैं यह उनमें लगभग पूरी तरह से प्रतिरोधी की भूमिका में रहता है। लेबर यानी प्रसव के दौरान रिलीज होने वाला ऑक्सीटोसिन सकारात्मक प्रतिक्रिया तंत्र द्वारा गर्भाशय के संकुचन की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ाता है। जब गर्भाशय का संकुचन पर्याप्त अवधि और तीव्रता के साथ पर्याप्त अंतराल पर होता है तो यह स्थिति शिशु के जन्म को संभव बनाता है। कभी-कभी जब गर्भाशय में पर्याप्त संकुचन नहीं होता है या संकुचन की प्रक्रिया समय पर शुरू नहीं हो पाती है तो ऑक्सीटोसिन के सिंथेटिक एनालॉग जैसे सिंटोसिनॉन को इंट्रोवीनिस के जरिए शरीर में डाला जाता है ताकि संकुचन को बढ़ाया या प्रेरित किया जा सके। (और पढ़ें- गर्भाशय में रसौली)
  • ब्रेस्ट मिल्क का उत्पादन करना: बच्चे जब दूध के लिए निप्पल को चूसते हैं तो इस क्रिया से तंत्रिकाओं में उत्तेजना होती है जो मां के मस्तिष्क को संकेत भेजकर ऑक्सीटोसिन और प्रोलैक्टिन हार्मोन के रिलीज को शुरू करने के लिए प्रेरित करता है। प्रोलैक्टिन, स्तन के दूध के संश्लेषण को नियंत्रित करता है वहीं ऑक्सीटोसिन स्तन की मस्क्युलर मायोएपेथीलिया कोशिकाओं पर कार्य करता है, जिससे स्तन में जमा दूध बाहर निकालता है। अधिक दूध की उपलब्धता होने पर बच्चा निप्पल को अधिक चूसता है। एक बार जब बच्चे का मन भर जाता है और वह चूसना बंदकर देता है तो इसी के साथ ऑक्सीटोसिन के रिलीज होने की प्रक्रिया भी बंद हो जाती है। (और पढ़ें- स्तनपान के फायदे)
  • यौन प्रतिक्रिया: प्लाज्मा ऑक्सीटोसिन के स्तर में वृद्धि पुरुषों और महिलाओं दोनों में कामोत्तेजना और चरमोत्कर्ष से जुड़ी हुई है। प्रजनन पथ की सिकुड़न और गतिशीलता का बढ़ना ही अंडों और शुक्राणुओं के आने जाने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
  • किडनी पर नकारात्मक प्रभाव: एंटीडायरेक्टिक हार्मोन ऑक्सीटोसिन की रासायनिक संरचना वैसोप्रेसिन के समान होती है और इस वजह से इसकी उच्च खुराक मूत्र उत्पादन में कमी और सोडियम रेटेंशन में वृद्धि का कारण बन सकती है। इसके परिणामस्वरूप सूजन और पल्मोनरी एडिमा हो सकता है। यही कारण है कि जब ऑक्सीटोसिन को बाहर से नसों में दिया जाता है तो उस दौरान फ्लूइड इनपुट और आउटपुट का विशेष ध्यान रखा जाता है।
  • प्रोस्टेट ग्रंथि: पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि, टेस्टोस्टेरोन पर निर्भर करती है और सेमिनल फ्लूइड का उत्पादन करती है जो शुक्राणु ले जाने वाले वीर्य का एक प्रमुख घटक है। ग्रंथि में उत्पादित ऑक्सीटोसिन प्रोस्टेट की सिकुड़न और टेस्टोस्टेरोन को संश्लेषित करने के साथ प्रोस्टेटिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है। (और पढ़ें- वीर्य क्या है)

मनोवैज्ञानिक कार्य

  • बेहतर संबंध बनाने में: ऑक्सीटोसिन, सामाजिक संबधों को बनाने की हमारी क्षमता को प्रभावित करता है। कैसे माता-पिता और बच्चे के बीच एक गहरी बॉन्डिंग बन जाती है इसके बीच भी यह हार्मोन एक म्ध्यस्थ का काम करता है। स्तनपान कराते समय, ऑक्सीटोसिन स्तन से दूध को बाहर लाने में मदद करता है और यह भी मां और बच्चे के बीच गहरे बंधन को विकसित करने में मदद करता है। इसके अलावा रोमांटिक जोड़ों के बीच संबंध को बनाने में भी ऑक्सीटोसिन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
  • चिंता और अवसाद: पिछला पीयूष हार्मोन, ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन, चिंता, तनाव और सामाजिकता के नियमन में विपरित भूमिका निभाते हैं। ऑक्सीटोसिन में एंग्सियोलिटिक (चिंता को कम करने वाला) और एंटी डिप्रेशन गुण होता है जबकि वैसोप्रेसिन दोनों को प्रेरित करता है। लिहाजा ऑक्सीटोसिन-वैसोप्रेसिन के बैलेंस को ऑक्सीटोसिन की तरफ शिफ्ट करने की जरूरत होती है।
  • ऑटिज्म: यह एक स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है। सामान्य लोगों की तुलना में जिन लोगों को ऑटिज्म विकार होता है वह सामाजिक गतिविधियों का कम अनुभव कर पाते हैं। माना जाता है कि ऑक्सीटोसिन की सोशल मोटिवेशन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कई अध्ययनों में ओएक्सटी जीन म्यूटेशन और ऑटिज्म के बीच संबंध भी देखे गए हैं।
  • ड्रग्स की लत: अल्कोहल या ओपिऑयड्स जैसे ड्रग्स की लत को कम करने में भी मदद कर सकता है ऑक्सीटोसिन। साथ ही लत को छोड़ने के बाद जो विदड्रॉल लक्षण नजर आते हैं उसे भी कम कर सकता है। 

ऑक्सीटोसिन को सिंथेटिक या एनलॉगस दवाओं के निर्माण में प्रयोग में लाया जाता है जो कि प्रभावी भी साबित हो चुके हैं। वर्तमान समय में प्रसूति से जुड़े मामलों में ऑक्सीटोसिन ऐनालॉग का इस्तेमाल हमेशा किया जाता है और इसे बदला नहीं जा सकता। ऑक्सीटोसिन को नसों में इंट्रावीनस के जरिए, इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन के जरिए, इंट्रानेजल स्प्रे के जरिए या फिर कई बार मसूड़ों में पैच के माध्यम से भी दिया जाता है।

दवा में उपयोग किया जाने वाले ऑक्सीटोसिन फॉर्मलूा

  • पिटोसिन
  • सिन्टोसिनन
  • कार्बेटोसिन
  • डेसामिनो-ऑक्सीटोसिन

चिकित्सकों में इस बात को लेकर मतभेद है कि बच्चे के जन्म के समय ऑक्सीटोसिन का इस्तेमाल जरूरी और पूरी तरह से फायदेमंद है या नहीं। बावजूद इसके, कई बार बच्चे के जन्म के समय इन कारणों से भी ऑक्सीटोसिन का उपयोग किया जाता है-

  • लेबर को प्रेरित करने के लिए: उन मामलों में जहां लेबर स्वाभाविक रूप से खुद शुरू नहीं होता (40 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भावस्था के बाद भी) या फिर जब समय से पहले ही बच्चे का जन्म कराना जरूरी होता है (जैसा कि समय से पहले गर्भाशय झिल्ली का फटना, प्लेसेंटा में अपर्याप्ता, गर्भावस्था में मधुमेह की शिकायत होना या फिर एरिथ्रोब्लास्टोसिस)- ऐसी स्थितियों में नसों के माध्यम से ऑक्सीटोसिन दिया जाता है 500 एमएल ग्लूकोज या सलाइन में 5आईयू की खुराक। इसकी दर आवश्यकतानुसार बढ़ाई भी जा सकती है। हालांकि, ऑक्सीटोसिन शुरू करने से पहले कुछ चीजों को सुनिश्चित करना जरूरी होता है-
    • बच्चे की स्थितिः गर्भाशय में बच्चे की स्थिति सही होनी चाहिए।
    • शिशु का विकासः बच्चे के फेफड़े पर्याप्त रूप से विकसित हों।
    • नो प्लेसेंटा प्रिवियाः प्लेसेंटा प्रिविया एक ऐसी स्थिति है जिसमें प्लेसेंटा आंशिक रूप से या पूरी तरह से मां के गर्भाशय ग्रीवा को कवर कर लेता है।
    • भ्रूण को कोई परेशानी न हो: प्रेगनेंसी के दौरान बच्चे का हार्ट रेट 110 से 160 बीट प्रति मिनट होना चाहिए। इससे कम रेट भ्रूण में परेशानी का संकेत होता है जिससे भ्रूण की मृत्यु का खतरा हो सकता है।
    • गर्भाशय में पहले से कोई चोट के निशान न हों (पहले हुई सिजेरियन डिलिवरी के कारण)- अगर ऐसा होता है तो ऑक्सीटोसिन देने के बाद जब गर्भाशय में सिकुड़न बढ़ती है तो उस चोट के फटने का डर रहता है।
  • प्रसवोत्तर रक्तस्राव की रोकथाम: प्रसव के तुरंत बाद ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन देकर प्रसव के बाद होने वाले रक्तस्राव को नियंत्रित किया जा सकता है। रक्तस्राव अमूमन गर्भाशय की मांसपेशियों के संकुचन के कारण होता है। बच्चे की डिलीवरी के बाद गर्भाशय  का तनाव कम हो जाता है जिसके कारण रक्तस्राव की समस्या होती है। ऐसी स्थिति में ऑक्सीटोसिन का इंजेक्शन मददगार हो सकता है।
  • गर्भपात के बाद गर्भाशय की सफाई: गर्भपात के बाद आमतौर पर गर्भाशय के भीतर कुछ अवशेष रह जाते हैं। इसके चलते बैक्टीरिया पनपने का भी खतरा रहता है जो गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है। इस स्थिति में गर्भाशय को पूरी तरह से साफ करने के लिए ऑक्सीटोसिन उपयोगी हो सकता है। गर्भाशय के संकुचन को बढ़ाकर यह सफाई करने में सहायक हो सकता है।
  • ब्रेस्ट में किसी तरह की रुकावट को सहज करना: कई बार स्तन से दूध पर्याप्त मात्रा में बाहर नहीं आ पाता है। इस वजह से स्तन के ऊतकों के नलिकाओं के भीतर दूध जमा होकर दर्द और सूजन का कारण बन सकता है। इसे ब्रेस्ट इंगोर्जमेंट के नाम से जाना जाता है। इंट्रानेजल ऑक्सीटोसिन देकर (यानी, नाक के माध्यम से दिया जाने वाला ऑक्सीटोसिन) ब्रेस्ट से दूध को निकालने में मदद कर सकता है। (और पढ़ें- ब्रेस्ट मिल्क बढ़ाने के लिए क्या खाएं)

ऑक्सीटोसिन के कारण होने वाले नुकसान आमतौर पर इसके डोज के कारण होते हैं। इसके कॉमन दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • हृदय संबंधी समस्याएं: सिरदर्द, दिल की धड़कन का धीमा या तेज होना, रक्तचाप में गिरावट।
  • उल्टी आनाः कुछ रोगियों को मतली और उल्टी का अनुभव हो सकता है
  • वाटर इंटॉक्सिकेशनः ऑक्सीटोसिन की उच्च खुराक का प्रभाव एंटीडायरेक्टिक हार्मोन के समान हो सकता है। यह मूत्र उत्पादन को कम करने के साथ सोडियम रेशिनेशन को बढ़ा सकता है। इस वजह से रोगी को सूजन, फुंसियां और कभी-कभी पल्मनरी एडिमा भी हो सकता है।
  • गर्भाशय का फटनाः यदि गर्भाशय के संकुचन की तीव्रता, आवृत्ति और अवधि में होने वाली वृद्धि अनियंत्रित हो जाती है, तो यह गर्भाशय के फटने का भी कारण बन सकता है।
  • नवजात शिशुओं में प्रभावः लेबर के दौरान दिए जाने वाले ऑक्सीटोसिन के दुष्प्रभाव के रूप में नवजात में पीलिया की शिकायत देखने को मिल सकती है।
  • गर्भाशय के भीतर शिशु की मृत्यु: गर्भाशय का संकुचन अत्यधिक बढ़ जाने  की स्थिति में बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। संकुचन लंबे समय तक बने रहने के कारण बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।
Dr. Narayanan N K

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एंडोक्राइन ग्रंथियों और होर्मोनेस सम्बन्धी विज्ञान
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Dr. Tanmay Bharani

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एंडोक्राइन ग्रंथियों और होर्मोनेस सम्बन्धी विज्ञान
19 वर्षों का अनुभव

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