आज यानी 5 जून 2020 को इस साल का दूसरा चंद्रग्रहण लग रहा। यह भारतीय समय के अनुसार 5 जून की रात 11 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर रात में 2 बजकर 32 मिनट तक जारी रहेगा। इससे पहले साल का पहला चंद्रग्रहण 10 जनवरी को लगा था। दरअसल, चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते हैं, जिसमें चंद्रमा, धरती के ठीक पीछे उसकी प्रतिछाया में आ जाता है और ऐसा तभी होता है जब सूर्य, धरती और चन्द्रमा तीनों लगभग एक सीधी रेखा में स्थित हों। चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन ही घटित होता है। आज 5 जून को लगने वाला चंद्रग्रहण उपछाया ग्रहण है और इस चंद्रग्रहण को एशिया, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देश के लोग देख पाएंगे।
जैसे ही ग्रहण की बात होती है फिर चाहे सूर्य ग्रहण हो या चंद्रग्रहण, इनसे जुड़ी इतनी सारी मान्यताएं हैं कि लोग इससे डरने लगते हैं। कोई कहता है कि ग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिए तो कोई कहता है पानी नहीं पीना चाहिए तो कोई ग्रहण के समय घर से बाहर निकलने से मना करता है। कोई कहता है कि गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का बुरा असर होता है। लेकिन इन सारी बातों में क्या कोई सच्चाई है। चंद्रग्रहण के हमारी सेहत पर असर पड़ने वाले मिथक और उनकी हकीकत क्या है, इस बारे में हम आपको बता रहे हैं।
इंसान के शरीर पर चंद्रग्रहण का असर
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा की मानें तो इस बात के कोई पुख्ता सबूत मौजूद नहीं हैं जो ये साबित कर पाएं कि चंद्रग्रहण का लोगों के शरीर पर कोई वास्तविक असर होता है, लेकिन चंद्रग्रहण का मनौवैज्ञानिक स्तर पर गंभीर असर हो सकता है। इसकी वजह से शारीरिक असर भी दिख सकते हैं और इसकी वजह है चंद्रग्रहण को लेकर लोगों की मान्यताएं। लिहाजा हम यह मान सकते हैं कि चंद्रग्रहण का हमारे शरीर और सेहत पर सीधे तौर पर कोई असर नहीं होता, लेकिन इससे जुड़े कई मिथक जरूर हैं।
मिथक 1 : चंद्रग्रहण के समय भोजन करने से हो सकती है बदहजमी
आपने देखा होगा कि बड़ी संख्या में लोग चंद्रग्रहण के समय भोजन नहीं करते और साथ ही ग्रहण के समय भोजन पकाने से भी मना करते हैं। यह सदियों पुरानी मान्यता है, जिसके मुताबिक ग्रहण के समय खाने बनाने से खाना दूषित हो जाता है और खाना खाने से अपच और बदहजमी होने का खतरा रहता है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने स्पष्ट तौर पर यह बात कह दी है कि ग्रहण के समय भोजन करने या पानी पीने का हमारे शरीर पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता और इससे हमारे पाचन तंत्र को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
मिथक 2 : चंद्रग्रहण को देखने से आंखों को होता है नुकसान
सूर्यग्रहण के दौरान अगर आंखों पर स्पेशल प्रोटेक्शन वाला चश्मा लगाए बिना सूर्यग्रहण को देखा जाए तो हो सकता है कि आंखों के रेटिना को नुकसान पहुंचें। लेकिन एक्सपर्ट्स की मानें तो चंद्रग्रहण को सीधे आंखों से देखने पर आंखों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता और यह पूरी तरह से सुरक्षित भी है।
मिथक 3 : चंद्रग्रहण के समय बाहर निकलने से स्किन से जुड़ी बीमारियों का खतरा
आयुर्वेद के मुताबिक इंसान के शरीर में 3 तरह के दोष होते हैं- वात, पित्त और कफ और इन दोषों में असंतुलन के कारण ही शरीर में बीमारियां होती हैं। ऐसी मान्यता है कि चंद्रग्रहण के समय हमारे शरीर का कफ दोष असंतुलित रहता है और ऐसे में चंद्रग्रहण के समय बाहर निकलने से त्वचा से संबंधी बीमारियों का खतरा अधिक होता है। लेकिन विज्ञान में इस बात को भी साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिले हैं।
मिथक 4 : गर्भवती महिलाओं के लिए हानिकारक है चंद्रग्रहण!
भारत समेत कई देशों और संस्कृतियों में सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण दोनों को ही गर्भवती महिला के लिए हानिकारक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर गर्भवती महिला चंद्रग्रहण को देख ले तो इससे उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण को नुकसान पहुंचता है और जन्म के समय बच्चे में जन्मजात दोष और विकृत होने का खतरा रहता है। यही वजह है कि ग्रहण के समय प्रेगनेंट महिलाओं को घर में ही रहने की सलाह दी जाती है। हालांकि, वैज्ञानिकों की मानें तो अब तक इस बात के भी कोई सबूत नहीं मिले हैं जो यह साबित कर पाएं कि चंद्रग्रहण का गर्भावस्था पर किसी तरह का असर होता है।
मिथक 5 : चंद्रग्रहण का हमारे व्यवहार और मूड पर होता है असर
बहुत से लोगों का ऐसा मानना है कि चंद्रग्रहण का इंसान के व्यवहार और मूड पर असर होता है। साल 2008 में करेंट बायोलॉजी नाम की पत्रिका में एक स्टडी प्रकाशित की गई, जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और लुडविग मैक्सीमिलन यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने मिलकर किया था। इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की कि आखिर इंसान के व्यवहार का चंद्रग्रहण से कैसा कनेक्शन है। अपनी स्टडी में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इस बात के बेहद कम सबूत हैं जो इस धारणा को साबित कर पाएं कि चंद्रग्रहण का इंसान के व्यवहार और मूड के साथ कोई वास्तविक कनेक्शन है।
ऐसे में भले ही चांद, ज्वारभाटा को कंट्रोल करता हो, लेकिन इसका इंसान के शरीर, व्यवहार और मूड पर कोई सीधा असर नहीं होता है।