कोलेजन क्या है?
कोलेजन एक ठोस, अघुलनशील (बिना घुलने वाला) और रेशेदार प्रोटीन है। शरीर में जितना प्रोटीन होता है, यह उसका एक-तिहाई हिस्सा होता है।
अधिकांश कोलेजन के अणु एक दूसरे के साथ मिलकर लंबे और पतले रेशे बनाते हैं, जिन्हे "फाइब्रिल" (fibril) कहा जाता है। यह फाइब्रिल एक साथ बंधे होते हैं जिससे यह एक दूसरे को मजबूती प्रदान करते हैं। और इन्ही से त्वचा को ताकत और लोच मिलती है।
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वैसे तो करीब 16 विभिन्न प्रकार के कोलेजन होते हैं, लेकिन शरीर में 80 से 90 प्रतिशत कोलेजन की मात्रा सिर्फ तीन प्रकार के कोलेजन की ही होती है। इन तीन प्रकार के कोलेजन के नाम हैं कोलेजन टाइप 1, कोलेजन टाइप 2, और कोलेजन टाइप 3।
इन विभिन्न प्रकार के कोलेजन की अलग-अलग बनावट और कार्य हैं। शरीर के अंदर मौजूद कोलेजन मजबूत और लचीले होते हैं। टाइप 1 प्रकार के कोलेजन के रेशे विशेष रूप से लचीले और मजबूत होते हैं। अगर स्टील और टाइप 1 कोलेजन के रेशों की समान मात्रा लेकर तुलना करें, तो ये रेशे स्टील से अधिक मजबूत होते हैं।
कोलेजन के कार्य क्या हैं?
कोलेजन कई कोशिकाओं से निकलता है, लेकिन मुख्य रूप से, संयोजी ऊतक (connective tissue: कनेक्टिव टिश्यु) की कोशिकाओं से स्रावित होता है।
त्वचा के अंदर की मध्यम परत (जिसे "डर्मिस" कहते हैं) में कोलेजन रेशों की मदद से कोशिकाओं का एक रेशेदार जाल सा बनाता है, जिसको "फाइब्रोब्लास्ट" (Fibroblast) नाम से जाना जाता है। यह त्वचा की मृत कोशिकाएं को हटाने व नई कोशिकाओं को बनाने का कार्य करता है।
इसके अलावा, कुछ कोलेजन किडनी जैसे अन्य नाजुक अंगों को बचाने के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करते हैं।
आयु के साथ शरीर में कोलेजन की कमी होने लगती है, जिससे त्वचा सम्बन्धी परेशानियां शुरू हो जाती हैं। उद्धरण के तौर पर, चहरे पर झुर्रियां आने लग जाती हैं। महिलाओं में ख़ास तौर से, रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के बाद तेजी से कोलेजन की कमी होने लगती है। और 60 की उम्र के बाद तो कोलेजन के बनने में गिरावट आना एक बहुत ही सामान्य बात है।
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