खेती किए जाने वाले सबसे प्राचीन खाद्य होने के बावजूद चौलाई मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चौलाई की खेती सबसे पहले 8000 साल पहले एज़टेक (Aztecs) और अन्य स्वदेशी संस्कृतियों में की गई थी। इसके फूल बैंगनी और लाल रंग के होते हैं। चौलाई के बीजों को राजगिरा और रामदाना भी कहा जाता है। चौलाई को सबसे अधिक स्वास्थ्य खाद्य की दुकानों में बेचा जाता है, क्योंकि यह अभी भी व्यापक रूप से खेती के प्रकार का अनाज नहीं है, लेकिन इस पोषक तत्वों से भरे हुए अनाज की मांग बढ़ रही है। चौलाई सबसे अधिक संयुक्त राज्य में उगाई जाती है। चौलाई की कई प्रजातियां भारत में उगाई और उपयोग की जाती हैं। चौलाई के पत्ते भी मूल्यवान होते हैं, हालांकि अनाज की तुलना में बहुत कम लोकप्रिय हैं।
चौलाई को कच्चा नहीं खाया जाना चाहिए, क्योंकि इसमें ऑक्सालेट और नाइट्रेट्स जैसे कुछ विषाक्त या अवांछनीय घटक (component) होते हैं जिन्हें उबालकर और उचित तैयारी से समाप्त किया जा सकता है। हालांकि इसमें मूल्यवान एंटीऑक्सिडेंट और फेनालिक यौगिक (Compound) भी होते हैं। इसके पत्तों और बीजों में प्रोटीन, विटामिन ए और खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। यह अनेक औषधीय गुणों से भरपूर होती है।