इमारत या संरचना गिरने की घटना के तुरंत बाद का 24 से लेकर 48 घंटे का समय बेहद अहम होता है। शुरुआती 24 घंटों में जितनी भी मौतें होती हैं उनमें से ज्यादातर सदमे के कारण या वायुमार्ग में उत्पन्न बाधा के कारण और सांस लेने से जुड़ी समस्याओं के कारण होती हैं। इसके बाद जिन लोगों की मौतें होती हैं उसके पीछे अक्सर सेप्सिस और मल्टीऑर्गन फेलियर की समस्या जिम्मेदार होती है।
किसी संरचना या इमारत के गिरने पर विशिष्ट तरह की चोटों में फ्रैक्चर, आघात, घाव जो किसी व्यक्ति को पंगु बना दे (खुला घाव), सिर की चोट, हाइपोथर्मिया (शरीर का तापमान बेहद कम), शरीर में पानी की कमी और क्रश चोट/क्रश सिंड्रोम शामिल है। साथ ही इस दौरान पीड़ित सांस के जरिए जहरीला धुआं या धूल मिट्टी को भी शरीर के अंदर ले लेते हैं जिससे आगे उन्हें कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं।
उपचार के विकल्प व्यक्ति की चोट की स्थिति के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं, स्थिति चाहे जो हो (बचावकर्मियों और चिकित्सा कर्मचारियों के लिए गिर चुकी संरचना के अंदर जाना सुरक्षित हो या चिकित्सा सहायता की पेशकश करने से पहले ढह गई संरचना के अंदर मौजूद सभी लोगों को बाहर लाना बेहतर हो) उस वक्त उपलब्ध सहायता के आधार पर किया जाता है। यहां कुछ व्यापक चीजें बतायी जा रही हैं जो बचावकर्मी और चिकित्सक अक्सर संरचना के गिरने के मामले में जीवन बचाने के लिए करते हैं:
- बचाव के प्रयास के दौरान, उन सभी चीजों को हटाना जरूरी होता है जो अंदर मौजूद लोगों की सांस लेने में बाधा उत्पन्न कर रहा हो। लोगों की सांस लेने की प्रक्रिया को फिर से बहाल करने के लिए, एनडीआरएफ बचावकर्मी अपने पास नेबुलाइज़र, मैनुअल सक्शन यूनिट, ऑक्सीजन कॉन्सन्टेटर, बैग वॉल्व मास्क और पल्स ऑक्सीमीटर जैसे उपकरण भी रखते हैं।
- मौजूदा स्थिति को समझना महत्वपूर्ण होता है कि क्या अगर निर्माण सामग्री के मलबे या टुकड़े को हटाने से वहां फंसे व्यक्ति का रक्तस्राव बढ़ सकता है- इन मामलों में, चिकित्सक या प्रशिक्षित बचावकर्मी को आदर्श रूप से रक्तस्राव को रोकने के लिए व्यक्ति के घाव को प्रेशर से दबाना होता है।
- उन्हें टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने की भी आवश्यकता हो सकती है- और मरीज को सुरक्षित क्षेत्र में स्थानांतरित करने से पहले या बाद में यह किया जा सकता है।
- मस्तिष्क आघात और सिर की चोटों के लिए तत्काल अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। एक कठोर नेक कॉलर (सर्वाइकल कॉलर) का उपयोग किया जाता है ताकि सिर और गर्दन को स्थिर रखा जा सके और सिर, गर्दन और रीढ़ को आगे और अधिक नुकसान न हो।
- कभी-कभी, इमारत की गिरने वाली साइट पर ही व्यक्ति का अंग-विच्छेदन करना जरूरी होता है ताकि व्यक्ति की जान बचाकर उसे वहां से बाहर निकाला जा सके। यह भी एक प्रशिक्षित चिकित्सीय कार्यकर्ता द्वारा ही किया जाना चाहिए।
- अगर कोई व्यक्ति 15 मिनट से अधिक समय तक मलबे में दबा हुआ है तो इस मामले में अचानक भारी दबाव से छुटकारा पाना भी गलत हो सकता है- चिकित्सा कर्मचारी आदर्श रूप से धीरे-धीरे दबाव को कम करते हैं। यदि उन्हें क्रश सिंड्रोम का संदेह हो तो मरीज फ्लूइड थेरेपी दी जाती है जिसमें सोडियम बाइकार्ब जैसे लवण होते हैं जिससे मरीज के यूरिन को अल्कलाइन या क्षारीय बनाया जा सकता है।
बचावकर्मियों को हमेशा प्रोटेक्टिव (सुरक्षा संबंधी) गियर पहनना चाहिए, जिसमें हेलमेट, डस्ट मास्क, इयरप्लग, सुरक्षा ग्लास, भारी-भरकम दस्ताने, स्टील के जूते और कवरऑल जैसी चीजें शामिल हैं।
बचाव कार्य और सीमित स्थान में चिकित्सीय देखभाल करने के लिए बहुत सारे प्रशिक्षण और कौशल की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, इमारत के ढहने से जुड़े पीड़ितों में वायुमार्ग प्रबंधन के लिए, रेस्क्यू एक्सपर्ट को "सक्शन, बैग वॉल्व मास्क, ओरल एयरवेज, लैरिंजोस्कोप, नेजोट्रैचियल ट्यूब और एंडोट्रैचियल ट्यूब (सामान्य श्वसन को बहाल करने के लिए) का उपयोग करना चाहिए .... यदि पीड़ित व्यक्ति द्वारा धूल मिट्टी को सांस के जरिए अंदर लेने की चिंता हो तो ऐसे मामले में एल्ब्यूटेरोल या इप्राट्रोपियम जैसी दवाइयां उपयोगी हो सकती हैं। (एल्ब्यूटेरोल वैसी दवाइयां हैं फेफड़ों में मौजूद मध्यम और बड़े वायुमार्ग को खोलती हैं)
संदिग्ध क्रश सिंड्रोम के मामले में, डॉक्टरों या प्रशिक्षित बचाव कर्मचारियों को तुरंत इंट्राविनिस ड्रिप शुरू करने की आवश्यकता हो सकती है- या फिर जिस जगह ऐसा करना संभव न हो वहां पर व्यक्ति को उसकी आयु के अनुरूप उचित मात्रा में सलाइन देने के लिए इंट्रोओसियस (दवाइयों और तरल पदार्थों को सीधे बोन मैरो तक पहुंचाना) लाइन शुरू की जाती है। इसके लिए आजीवन प्रशिक्षण की जरूरत होती है ताकि जिसके लिए प्रतिबद्धता की जरूरत होती है और इस तरह का काम वास्तव में सराहनीय है।
(यह लेख उन संभावित चोटों का एक संक्षिप्त अवलोकन है- विशेष रूप से घातक चोटों का- जो तब हो सकती हैं जब कोई इमारत या संरचना ढह जाती है।)