पोषक तत्वों से युक्त मखाना एक जलीय उत्पाद है। इसे दलदली क्षेत्र, झील या तालाब के पास उगाया जाता है। पूर्वी एशिया से संबंधित मखाने के जामुनी रंग के फूल होते हैं। भारतीय व्यंजनों में मखाने के बीजों का अत्यधिक महत्व है। इसमें अनेक प्रकार के औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। चीनी औषधियों में भी मखाने के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
आमतौर पर, ये वॉटर लिली आर्द्रभूमि और तालाब के पानी में बढ़ती है और इसे बढ़ने के लिए उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इस पौधे की जड़ पानी में 5 मीटर की गहराई तक फैल सकती है। भारत में विभिन्न जगहों जैसे कि लोकटक झील मणिपुर और बिहार में मखाने का पुष्पीय पौधा पाया जाता है।
सबसे ज्यादा मखाने का फल का इस्तेमाल किया जाता है। इस पौधे का फल गूदेदार और मुलायम होता है। चीन में इसका इस्तेमाल शीतल शक्तिवर्द्धक खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। इसके अलावा मखाने के फल के बीज को ताजा या सुखाकर खा सकते हैं। प्रत्येक फल में लगभग 8 से 15 बीज होते हैं जिनका आकार मटर के दाने जितना होता है। मखाने को खाने से पहले भूना जाता है।
मखाने के बारे में तथ्य:
- वानस्पतिक नाम: यूरेल फेरॉक्स
- कुल: निम्फ़ेसिए
- सामान्य नाम: मखाना
- उपयोगी भाग: चीन में मखाने के फल का इस्तेमाल शीतल शक्तिवर्द्धक खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। चीन में सूप के अंदर मखाने के बीज का इस्तेमाल किया जाता है।
- भौगोलिक विवरण: लगभग 3000 वर्ष पूर्व चीन में सबसे पहले मखाने के पौधे की खेती की गई थी। ये भारत, जापान और कोरिया में भी पाया जाता है।
- रोचक तथ्य: भारत में मखाना धार्मिक महत्व भी रखता है। त्योहारों पर मखाने की खीर बनाई जाती है।