दुधारू पशुओं के थनों में विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं, जिनमें थनैला रोग सबसे आम माना जाता है। भारत में यह रोग अधिकतर भैंसों में देखा जाता है। थनैला रोग में भैंसों के थनों में गंभीर दर्द, सूजन व अकड़न हो जाती है, जो आमतौर पर संक्रमण एलर्जी या थन पर चोट आदि लगने के कारण होती है। भैंस के थन में सूजन, लालिमा, घाव और दर्द होना ही थनैला रोग के सबसे प्रमुख लक्षण हैं।

भैंस के आस-पास साफ-सफाई रखना और उसकी शारीरिक स्वच्छता बनाए रखना ही थनैला रोग से बचाव करने का सबसे अच्छा तरीका है। कुछ मामलों में थनैला रोग गंभीर नहीं होता है और अपने आप ठीक हो जाता है। जबकि अन्य मामलों में इसका इलाज करने के लिए पशु चिकित्सकों को परीक्षण करके पहले रोग के अंदरूनी कारण का पता लगाना पड़ता है और फिर उसके अनुसार ही रोग का इलाज शुरू किया जाता है।

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  1. भैंस को थनैला रोग होना क्या है - Bhains ko thanaila rog hona kya hai
  2. भैंस को थनैला रोग के लक्षण - Bhains ko thanaila rog ke lakshan
  3. भैंस को थनैला रोग के कारण - Bhains ko thanaila rog ke karan
  4. भैंस को थनैला रोग से बचाव - Bhains ko thanaila rog se bachav
  5. भैंस को थनैला रोग का परीक्षण - Bhains ko thanaila rog ka parikshan
  6. भैंस को थनैला रोग का इलाज - Bhains ko thanaila rog ka ilaaj

भैंसों में थनैला रोग काफी आम देखा गया है। इस रोग में भैंस के थन में सूजन, लालिमा, जलन व दर्द से ग्रस्त हो जाते हैं। कई मामलों में थनैला रोग अधिक गंभीर हो जाता है, जिसके कारण भैंस का थन स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है।

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भैंस के थन में सूजन, लालिमा व दर्द होना थनैला रोग का सबसे मुख्य लक्षण है। हालांकि, भैंस के स्वास्थ्य, रोग की गंभीरता व अंदरूनी कारणों के अनुसार थनैला रोग के लक्षण भी अलग-अलग हो सकते हैं। थनैला रोग से होने वाले कुछ स्पष्ट संकेत जिनमें निम्न शामिल हो सकते हैं -

  • एक या अधिक थनों में सूजन आना
  • थनों का आकार छोटा-बड़ा होना
  • थनों को स्पर्श करने पर तीव्र दर्द होना
  • दूध निकालते समय थन से द्रव, पस या रक्त आना
  • दूध के रंग में बदलाव होना (भैंस के दूध में खून आना)
  • थन के छिद्र में घाव बन जाना

कुछ मामलों में थनैला रोग गंभीर हो जाता है, जिस कारण से थन में तीव्र दर्द होने लगता है। ऐसी स्थिति में भैंस अपने पैरों को पटकती रहती है और दूध दुहने के लिए थन को छूने पर लात मारने लगती है। थनैला रोग विभिन्न कारणों से हो सकता है, जिसके कारण भैंस के स्वास्थ्य से जुड़े अन्य लक्षण भी देखे जा सकते हैं -

  • भैंस को बुखार होना
  • एक या दोनों आंखों से पानी आना
  • जुगाली न करना
  • घास न खाना व पानी न पीना
  • भैंस को चिड़चिड़ापन होना
  • बार-बार पेशाब व गोबर करना
  • पतला गोबर करना (भैंस को दस्त होना)
  • बार-बार जीभ से लेवटी व थनों को खुजाना

पशु चिकित्सक को कब दिखाएं

कई बार भैंसों में थनैला रोग अधिक गंभीर नहीं होता है, जिसमें थन में न तो सूजन आती है और न ही दर्द होता है। अधिक गंभीरता न होने के कारण यह रोग अपने आप ठीक हो जाता है और ऐसे में पशु चिकित्सक को दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती है। हालांकि, यदि रोग गंभीर है या फिर आपको किसी भी प्रकार का संदेह हो रहा है तो पशु चिकित्सक को दिखा लेना चाहिए।

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ऐसी कई स्थितियां हैं, जो भैंसों में थनैला रोग का कारण बन सकती हैं, जिनमें से कुछ की तो अभी पहचान भी नहीं हो पाई है। विशेषज्ञों का मानना है, थनैला रोग किसी भी कारण से हुआ हो लेकिन भैंस के थनों व शरीर के अन्य अंगों को स्वच्छ न रख पाना ही इसके पीछे की मुख्य वजह होती है। हालांकि, आमतौर पर संक्रमण, एलर्जी और चोट लगने की स्थिति आदि को ही थनैला रोग के मुख्य कारणों में शामिल किया जाता है।

संक्रमण -
थनैला रोग मुख्यत: थनों में बैक्टीरियल संक्रमण के कारण होता है, जबकि कुछ कम मामलों में यह वायरस से होने वाले संक्रमण के कारण भी विकसित हो सकता है। ये संक्रमण आमतौर पर निम्न कारणों से होते हैं -

  • भैंस का किसी संक्रमित जानवर के संपर्क में आना
  • अस्वच्छ जगह पर बैठना
  • गंदे तालाब में नहाना

इसके अलावा यदि मालिक दूध दुहने से पहले अपने हाथों को अच्छे से नहीं धो रहा है, तो भी भैंस के थनों में संक्रमण हो सकता है जो थनैला रोग को जन्म देता है।

एलर्जी -
कई बार किसी विशेष वस्तु या पदार्थ के कारण भैंस को एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है जैसे किसी दवा, मानव नाखून या मिट्टी आदि। ऐसी स्थिति में जब थन इनमें से किसी के संपर्क में आते हैं, तो उनमें एलर्जी होने लगती है। एलर्जी के कारण सूजन व लालिमा विकसित हो जाती है जिससे थनैला रोग विकसित हो सकता है।

चोट लगना -
किसी गतिविधि के दौरान भैंस के थन में चोट लगने के कारण भी थनैला रोग हो सकता है। ऐसा आमतौर पर निम्न स्थितियों में होता है -

  • कटड़े/कटड़ी का दांत लगना
  • दूध दुहते समय मानव नाखून लगना
  • बैठते समय थन टांग या खुर के नीचे आ जाना

भैंस के शरीर व उसके आस-पास के क्षेत्र की सफाई रखना ही थनैला रोग की रोकथाम करने का सबसे बेहतरीन तरीका माना जाता है। निम्न बातों का ध्यान रख कर आप उचित सफाई को बनाए रख सकते हैं -

  • भैंस को समय-समय पर नहलाते रहें इस दौरान उसके थनों को भी स्वच्छ पानी से धोएं
  • उसके गोबर व पेशाब को साफ करते रहें
  • भैंस के नीचे की जगह को सूखी स्वच्छ रखें
  • समय-समय पर भैंस के रखे गए स्थान पर उचित कीटनाशकों का इस्तेमाल करते रहें

इसके अलावा भैंस को स्वच्छ आहार व पानी देना भी बहुत जरूरी है। क्योंकि स्वास्थ्यवर्धक व ताजे आहार से ही भैंस के शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी जिससे संक्रमण से बचाव रखने में मदद मिलेगी। यदि थन में दर्द कम है तो धीरे-धीरे दुहने की कोशिश करें, इसके विपरीत अगर दर्द ज्यादा है तो दूध को दुहने की प्रक्रिया से संबंधी पशु चिकित्सक से बात करें।

थनैला रोग का परीक्षण सामान्य रूप से थन को करीब से देखकर या फिर स्पर्श करके किया जा सकता है। हांलाकि, कुछ मामलों में पशु चिकित्सक थन से निकलने वाले पस या खून का सैंपल ले लेते हैं। सैंपल को लैबोरेटरी में जांच के लिए भेजा जा सकता है, जिसकी मदद से थनैला रोग के अंदरूनी कारण का पता लगा लिया जाता है।

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यदि थनैला रोग अधिक गंभीर नहीं है, तो यह अक्सर एक या दो दिन में अपने आप ही ठीक होने लग जाता है। यदि रोग गंभीर हो गया है या फिर एक या दो दिन के भीतर ठीक नहीं हुआ है, तो पशु चिकित्सक इलाज करने पर विचार करते हैं। थनैला रोग का इलाज भी उसके अंदरूनी कारण के अनुसार किया जाता है। यदि संक्रमण के कारण थनैला रोग हुआ है, तो सबसे पहले परीक्षण की मदद से संक्रमण की पहचान की जाती है। संक्रमण के अनुसार ही पशु चिकित्सक दवाएं देते हैं, जिनमें मुख्यत: एंटीबायोटिक व एंटीवायरल दवाएं शामिल हैं।

यदि एलर्जी के कारण थनैला रोग हुआ है, तो एलर्जिक रिएक्शन को ठीक करने के लिए पशु चिकित्सक भैंस को कुछ एंटी-एलर्जिक दवाएं दे सकते हैं। साथ ही लक्षणों को कम करने के लिए कुछ विशेष दवाएं भी दी जा सकती हैं।

जिन मामलों में थन में चोट लगने के कारण थनैला रोग हुआ है, ऐसे में थन पर हुए घाव को जल्दी ठीक करने वाली दवाएं देते हैं। साथ ही सूजन को रोकने वाली और दर्द को कम करने वाली दवाएं भी दी जा सकती हैं।

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