भारत में भैंस को आर्थिक रूप से एक महत्वपूर्ण जानवर माना जाता है, क्योंकि इससे प्राप्त होने वाला दूध, मीट और खाल उच्च गुणवत्ता का होता है। भैंस के पेट में पनपने वाले परजीवियों से गंभीर संक्रमण हो जाता है, जिससे उसके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

इसके लक्षण मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करते हैं कि भैंस के पेट के किस हिस्से में संक्रमण अधिक हुआ है। इसके लक्षणों में मुख्य रूप से जुगाली न करना, चारा न खाना और पतला गोबर करना आदि शामिल हैं। कुछ गंभीर मामलों में भैंस का वजन भी काफी घट जाता है।

भैंस के शरीर में ये परजीवी मुख्य रूप से स्वच्छ घास न खाने और साफ पानी न पीने के कारण होता है। उदाहरण के लिए यदि भैंस तालाब का पानी पीती है, तो उसे परजीवी संक्रमण होने का खतरा हो सकता है। परजीवी व उससे होने वाले संक्रमण का पता लगाने के लिए पशु चिकित्सक भैंस के कुछ टेस्ट कर सकते हैं।

टेस्ट से प्राप्त हुए परिणामों के अनुसार ही इलाज प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसके इलाज में मुख्य रूप से डिवर्मिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। यदि इस स्थिति का समय पर इलाज न किया जाए तो ऐसे में भैंस दूध देना पूरी तरह से बंद कर सकती है और कुछ गंभीर मामलों में भैंस की मृत्यु भी हो सकती है।

  1. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण क्या है? - Bhains ko Gastrointestinal parasites
  2. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण के लक्षण - Bhains ko Gastrointestinal parasites ke lakshan
  3. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण के कारण - Bhains ke pet me parjivi sankraman ka karan
  4. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण की रोकथाम - Bhains ke pet me parasite infection ki roktham
  5. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण का परीक्षण - Bhains ke pet me parasite infection ki janch
  6. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण का इलाज - Bhains ko Gastrointestinal parasites infection ka ilaaj
  7. भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण की जटिलताएं - Bhains ke pet me parjivi sankraman ki jatiltayen

भैंस के पेट में पाए जाने वाले परजीवियों को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल पैरासाइट कहा जाता है। यह एक वयस्क भैंस की तुलना में उनके छोटे बच्चों में अधिक पाए जाते हैं। यह काफी आम समस्या है, जिसके कारण पशुओं में मृत्यु दर काफी बढ़ हो जाती है और किसानों को आर्थिक रूप से काफी नुकसान हो जाता है।

भैंस के पेट में मौजूद परजीवी उनके शरीर के अंगों को संक्रमित कर क्षति पहुंचाने लगते हैं, जिससे कमजोरी आने लगती है। साथ ही साथ इन परजीवियों के कारण भैंस का वजन नहीं बढ़ पाता और कुछ स्थितियों में वह गाभिन भी नही हो पाती है। पेट में परजीवी होने के कारण दूध देने वाली भैंस के उत्पादन में भी कमी हो जाती है।

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परजीवी संक्रमण होना पशु के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है। भैंस पर इन परजीवियों का प्रभाव उसके स्वास्थ्य, उम्र, शारीरिक स्थिति और संक्रमण की गंभीरता के अनुसार पड़ता है। भैंस के शरीर के अनुसार परजीवियों के लक्षण भी अलग-अलग हो सकते हैं। हालांकि, कुछ लक्षण हैं जो आमतौर पर देखे जा सकते हैं -

  • भैंस का जुगाली न करना
  • चारा न खाना या बहुत कम खास खाना
  • अधिक पतला गोबर करना
  • गोबर के रंग में बदलाव होना
  • पेशाब कम आना
  • भैंस का वजन कम होना, लेकिन अक्सर पेट फूल जाना
  • शरीर में खून की कमी होना
  • दूध का उत्पादन कम हो जाना
  • गाभिन न हो पाना
  • गाभिन है तो गर्भपात हो जाना (गंभीर मामलों में)
  • भैंस की आंखों से पानी आना (कुछ मामलों में)

पशु चिकित्सक को कब दिखाएं?

पेट में परजीवी संक्रमण एक गंभीर स्थिति है, जिसका जल्द से जल्द इलाज करवाना जरूरी है। यदि भैंस ने चारा खाना अचानक से बंद कर दिया है या फिर ऊपरोक्त में कोई अन्य गंभीर लक्षण महसूस हो रहा है, तो पशु चिकित्सक से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए। हालांकि, यदि आपकी भैंस गाभिन है तो इस बारे में पशु चिकित्सक को अवश्य बता दें।

भैंस के शरीर में परजीवी मुख्य रूप से साफ-सुथरा चारा न खाने या फिर स्वच्छ पानी न पीने के कारण होते हैं। कई बार भैंस सड़ा हुआ या कई दिन का बासी चारा खा लेती है, जिसके कारण उसके पेट में परजीवी संक्रमण हो जाता है। यदि हरी घास को कटे हुए अधिक समय हो गया है, तो उसका ढेर गर्म हो जाता है, जिससे उसमें विभिन्न प्रकार के कीड़े पैदा हो जाते हैं जो भैंस के पेट में जाकर संक्रमण पैदा करते हैं। कई बार खुरली (चारे का बर्तन) के किनारों में हरी घास फंस जाती है, यदि उसे साफ न कियी जाए तो उसमें कीड़े पैदा हो जाते हैं। ये कीड़े बहुत ही हानिकारक होते हैं, जो भैंस के पेट में विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन का कारण बन सकते हैं।

बाहर के तालाबों से पानी पीना भी उनके शरीर में कई प्रकार के परजीवी संक्रमणों का कारण बन सकता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कुछ तालाबों में नालों का पानी आता है, जिस कारण से पूरा तालाब दूषित हो जाता है।

कई बार अधिक धूप के कारण हरी घास में कुछ कीड़े पैदा होकर एसिड बनाने लग जाते हैं और इस घास को खाने पर भी भैंस का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।

इसके अलावा कुछ अन्य स्थितियां हैं, जो पेट में परजीवी संक्रमण होने का कारण बन सकती हैं -

  • भैंस द्वारा अपने या किसी दूसरे जानवर के खुर चाटना
  • खुद के या किसी दूसरे जानवर के शरीर पर बना हुआ घाव चाटना जैसे पूंछ, सींग या टांग का घाव
  • किसी दूषित तालाब से पानी पीना
  • कूड़े-कचरे वाली जगह पर पड़ा हुआ घास खा लेना
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भैंस के पेट में परजीवी पैदा होने से बचाव करना बहुत जरूरी है, क्योंकि ये गंभीर संक्रमण का कारण बन सकते हैं। ऐसा करने के लिए ध्यान रखें कि भैंस किसी भी प्रकार का बाहरी घास या अन्य कोई खाद्य पदार्थ न खा पाए। खेतों में उच्च उर्वरक व कीटनाशकों द्वारा तैयार हरी व ताजी खास खिलाएं। हालांकि, घास में किस कीटनाशक व ऊर्वरक का इस्तेमाल करना उचित है, इस बारे में डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।

भैंस को कहीं बाहर न जाने दें और ना ही किसी तालाब का पानी पीने दें। घर पर ताजा पानी पिलाएं और समय-समय पर पानी व चारे के बर्तन को साफ करते रहें। यदि किसी दूसरे पशु के शरीर पर घाव बना हुआ है, तो कोशिश करें कि भैंस चाटने न पाए।

भैंस की समय-समय पर पशु चिकित्सक से जांच करवाते रहें और यदि भैंस गाभिन है तो जांच के दौरान डॉक्टर को इस बारे में अवश्य बता दें।

भैंस के पेट में परजीवियों और उनसे होने वाले संक्रमण का पता लगाने के लिए परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के दौरान पशु चिकित्सक भैंस के शरीर के तापमान व अन्य जांच करते हैं और साथ ही मालिक से कुछ सवाल भी पूछते हैं। ये सवाल मुख्य रूप से भैंस के स्वास्थ्य संबंधी पिछली स्थितियों से जुड़े होते हैं, जिनमें निम्न शामिल है -

  • भैंस को पहले कोई बीमारी तो नहीं है?
  • चारा व पानी ठीक से ले रही है या नहीं?
  • जुगाली कर रही है और यदि नहीं तो कितने समय से?

सवालों से मिले जवाब और भैंस की शारीरिक स्थिति के अनुसार कुछ विशेष टेस्ट किए जाते हैं। टेस्ट करने के लिए भैंस के गोबर, मूत्र या खून से सैंपल लिए जाते हैं। टेस्ट की मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि किस परजीवी के कारण संक्रमण हुआ है। साथ ही परीक्षण की मदद से यह भी पता लगाने की कोशिश की जाती है कि संक्रमण पेट के अंदर किस भाग में हैं (लिवर, फेफड़े, गुर्दे या आंत)। परीक्षण के दौरान यह बताना बेहद आवश्यक है कि भैंस गाभिन है या नहीं।

भैंस के पेट में परजीवी संक्रमण का इलाज मुख्य रूप से परीक्षण के परिणाम के अनुसार किया जाता है, इसका मुख्य लक्ष्य परजीवियों को मारकर शरीर से बाहर निकालना होता है। शरीर से परजीवियों को नष्ट करने की इलाज प्रक्रिया को भी डिवर्मिंग (Deworming) कहा जाता है।

डिवर्मिंग में पशु चिकित्सक परजीवी के प्रकार व संक्रमण किस भाग में है उसके अनुसार दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। इन दवाओं की मदद से ये परजीवी या तो भैंस के शरीर के अंदर ही नष्ट हो जाते हैं या फिर गोबर आदि के माध्यम से शरीर से बाहर निकलने लगते हैं।

डिवर्मिंग प्रक्रिया की मदद से भैंस के स्वास्थ्य में सुधार आने लगता है, वह धीरे-धीरे चारा व पानी लेने लग जाती है। एक दो दिन के भीतर भैंस स्वस्थ दिखने लगती है और उसका दूध उत्पादन भी जल्द ही बढ़ने लगता है। हालांकि, यदि भैंस गाभिन है तो पशु चिकित्सक को यह पता होना जरूरी है।

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यदि भैंस के शरीर में परजीवी संक्रमण हो गया है, तो वह खाना-पीना बंद कर देती है, जिससे उसका वजन घटने लगता है और दूध के उत्पादन में भी कमी आने लगती है। यदि समय पर इसकी जांच करवाकर इसकी इलाज प्रक्रिया शुरू न की जाए तो संक्रमण गंभीर रूप धारण कर लेता है और संक्रमित अंग को क्षतिग्रस्त कर देता है। ऐसी स्थिति में संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगता है, जिसके कारण भैंस की मृत्यु भी हो सकती है। यदि भैंस गाभिन है, तो संक्रमण के कारण गर्भपात भी हो सकता है या फिर गर्भ में पल रहे बच्चे तक भी संक्रमण फैल सकता है।

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