भारत में भैंस को आर्थिक रूप से एक महत्वपूर्ण जानवर माना जाता है, क्योंकि इससे प्राप्त होने वाला दूध, मीट और खाल उच्च गुणवत्ता का होता है। भैंस के पेट में पनपने वाले परजीवियों से गंभीर संक्रमण हो जाता है, जिससे उसके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
इसके लक्षण मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करते हैं कि भैंस के पेट के किस हिस्से में संक्रमण अधिक हुआ है। इसके लक्षणों में मुख्य रूप से जुगाली न करना, चारा न खाना और पतला गोबर करना आदि शामिल हैं। कुछ गंभीर मामलों में भैंस का वजन भी काफी घट जाता है।
भैंस के शरीर में ये परजीवी मुख्य रूप से स्वच्छ घास न खाने और साफ पानी न पीने के कारण होता है। उदाहरण के लिए यदि भैंस तालाब का पानी पीती है, तो उसे परजीवी संक्रमण होने का खतरा हो सकता है। परजीवी व उससे होने वाले संक्रमण का पता लगाने के लिए पशु चिकित्सक भैंस के कुछ टेस्ट कर सकते हैं।
टेस्ट से प्राप्त हुए परिणामों के अनुसार ही इलाज प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसके इलाज में मुख्य रूप से डिवर्मिंग प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। यदि इस स्थिति का समय पर इलाज न किया जाए तो ऐसे में भैंस दूध देना पूरी तरह से बंद कर सकती है और कुछ गंभीर मामलों में भैंस की मृत्यु भी हो सकती है।