1898 में, फ्रेडरिक लोफ्लर और पॉल फ्रॉश ने शोध में पाया कि पशुओं में पैर और मुंह की बीमारी का कारण कोई बैक्टीरिया से भी छोटा संक्रामक कण है। यह वायरस की प्रकृति का पहला संकेत था, एक ऐसा जेनेटिक तत्व जो जीवित और निर्जीव अवस्थाओं के बीच में कहीं आता है।
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वैज्ञानिक लंबे समय से वायरस की संरचना और कार्य को उजागर करने का प्रयास करते रहे हैं। वायरस इस मामलें में अद्वितीय हैं कि उन्हें जीव विज्ञान के इतिहास मेंअलग-अलग समय पर जीवित और निर्जीव दोनों रूपों में वर्गीकृत किया जाता रहा है। वायरस कोशिकाएं नहीं बल्कि गैर-जीवित, संक्रामक कण होते हैं। वे विभिन्न प्रकार के जीवों में कैंसर समेत कई बीमारियों को जन्म देने में सक्षम हैं।
वायरल रोग जनक न केवल मनुष्यों और जानवरों को संक्रमित करते हैं, बल्कि पौधों, बैक्टीरिया इत्यादि को भी संक्रमित करते हैं। ये बेहद छोटे कण बैक्टीरिया से लगभग 1000 गुना छोटे होते हैं और लगभग किसी भी पर्यावरण में पाए जा सकते हैं। वायरस अन्य जीवों से अलग स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह सकते क्योंकि उन्हें पुनरुत्पादन के लिए एक जीवित कोशिका पर निर्भर रहना पड़ता है।
इस लेख में वायरस क्या है, इनके प्रकार, वायरस कैसे फैलते हैं और वायरस से होने वाली बीमारियां और बचने के उपाय के बारे में विस्तार से बताया गया है।