ट्यूबरक्युलोसिस यानी टीबी एक संक्रमण है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। ये स्थिति आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है और मरीज के खांसने, छींकने या थूकने पर हवा के जरिए फैलती है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों, नवजात शिशु और चार साल से कम उम्र के बच्चे, डायबिटीज के मरीज, धीरे-धीरे किडनी फेल होने की स्थिति से ग्रस्त, तंबाकू लेने वाले, बंद या कम हवादार क्षेत्रों में रहने वाले लोगों और एचआईवी पॉजीटिव मरीजों में टीबी इंफेक्शन होने का खतरा ज्यादा रहता है।
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ट्यूबरक्युलोसिस के तीन चरण हैं :
प्राइमरी इंफेक्शन :
सांस लेने पर बैक्टीरिया शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है। शुरुआती हफ्तों में बेसिली लिम्फ नोड्स के जरिए रक्त वाहिकाओं में प्रवेश करता है। ये संक्रमण शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कि फेफड़ों, हड्डियों, किडनी और मस्तिष्क के मेनिन्जेस (मेनिन्जेस तीन झिल्लियां होती हैं, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढककर रखती हैं) में फैल सकता है। हालांकि, वैक्सीनेशन ले चुके और पहले टीबी के संक्रमण से ग्रस्त हो चुके मरीजों में इसका खतरा कम ही होता है।
लेटेंट इंफेक्शन :
ये प्राइमरी इंफेक्शन के बाद होता है। 95 फीसदी मामलों में व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली टीबी के बैक्टीरिया को दबा देती है (इसे बढ़ने से रोकती है)। इसकी वजह से मरीज में टीबी के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, हालांकि उसके शरीर में कम मात्रा में माइकोबैक्टीरियम टीबी मौजूद रहता है।
सक्रिय टीबी :
इस स्टेज पर लेटेंट डिजीज दोबारा सक्रिय हो जाती है या मरीज को दोबारा इंफेक्शन हो जाता है।
हो सकता है कि टीबी से संक्रमित व्यक्ति में टीबी के कोई लक्षण (लेटेंट टीबी) दिखाई न दें या फिर दो हफ्ते से ज्यादा समय तक बलगम वाली खांसी, हल्का बुखार, ठंड लगना, सांस लेने में दिक्कत, लिम्फ नोड्स का बढ़ना, थकान, वजन घटना, भूख में कमी, बलगम में खून आना और रात को पसीना आने जैसे सक्रिय टीबी के लक्षण दिख सकते हैं।
बलगम और स्पुटम कल्चर, चेस्ट एक्स-रे, ब्लड टेस्ट, ट्युबरक्यूलिन स्किन टेस्ट या इंटेरफेरोन-गाम्मा रिलीज एस्से से टीबी का निदान किया जाता है। इसके इलाज में 6 महीने तक कई तरह की एंटीबायोटिक दवाएं ली जा सकती हैं।
वहीं दूसरी ओर, होम्योपैथिक उपचार प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है (जिससे कि प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही इंफेक्शन को साफ कर दे) और मरीज को जल्दी रिकवर करने में मदद करता है। मरीज के व्यक्तित्व और प्रकृति के आधार पर होम्योपैथिक दवा लेने की सलाह दी जाती है। टीबी के लिए लाइकोपोडियम क्लेवेटम, केलियम कार्बोनिकम, फॉस्फोरस, पल्सेटिला, सिलिसिया, स्पोंजिया टोस्टा, स्टेनम मेटालिकम और ट्यूबरकुलिनम बोविनम आदि होम्योपैथिक दवाएं दी जाती हैं। हर मरीज में दवाओं की खुराक अलग-अलग होती है।