वैश्विक स्तर पर, भारत में क्षय रोग (टीबी) का बोझ सबसे अधिक होने का अनुमान लगाया जाता है। 2010 में, 8.8 मिलियन टीबी मामलों की अनुमानित वैश्विक वार्षिक घटनाओं में से, भारत में लगभग 2.2 मिलियन मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 0.9 मिलियन संक्रामक मामले थे यानी ऐसे मामलें जो इस रोग के किसी अन्य व्यक्ति से संक्रमण के कारण हुए हैं।
टीबी नियंत्रण की सफलता टीबी मामलों के शुरुआती स्तर पर ही पता लगाने और उचित उपचार पर निर्भर करती है और यह टीबी को रोकने के लिए वैश्विक योजना का आधार है।
भारत सरकार के संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के तहत 13,000 स्पुटम स्मीयर माइक्रोस्कोपी केंद्रों (टीबी का पता लगाने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक से युक्त केंद्र) के नेटवर्क के माध्यम से विकेंद्रीकृत तरीके से जाँच और उपचार सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने के लिए प्रावधान किए गए हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के अंतर्गत 6,50,000 डॉट्स केंद्र की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुशंसित डॉट्स रणनीति के आधार पर आरएनटीसीपी, टीबी के प्रसार को नियंत्रित करने और मृत्यु दर पर कटौती के लिए 1997 में लॉन्च किया गया था।
2006 तक डॉट्स कार्यक्रम पूरे भारत में 600 जिलों तक पहुंच गया था। लेकिन कुछ समस्याएं थीं। रोगियों की जाँच करने और दवाओं को निर्धारित करने में देरी रोग संचरण के चक्र को जारी रख रही थी। यह सुनिश्चित करने में भी कठिनाई थी कि रोगियों ने अपने कोर्स को पूरा किया या नहीं।
2007 में दवा प्रतिरोधी टीबी के प्रबंधन के लिए डॉट्स-प्लस लॉन्च किया गया था। 2012 तक डॉट्स-प्लस सेवा (जिसे अब "ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के प्रोग्रामेटिक प्रबंधन" के रूप में जाना जाता है) पूरे देश में विस्तारित किया गया था और 2013 तक यह सेवा सभी जिलों में उपलब्ध हो गयी थी। इस समय डॉट्स-प्लस सेवाओं को विकेंद्रीकृत करने का फैसला करने के बारे में सोचने का निर्णय लिया गया। इन सेवाओं को मुख्य आरएनटीसीपी सेवाओं में स्थानीय स्तर पर पूरी तरह से एकीकृत किया जाना था।
2014 में भारत ने बहु-दवा प्रतिरोधी टीबी की जाँच और उपचार सेवाओं की सुविधा पूरे देश में उपलब्ध करवाने में सफलता प्राप्त कर ली। भारत में टीबी केयर के लिए मानक भी विकसित किए गए और 2014 में प्रकाशित किये गए थे। इसमें निर्धारित किया गया कि टीबी उपचार और देखभाल पूरे भारत में प्रदान करने के लिए क्या किया जाना चाहिए और जिसमें निजी क्षेत्र की क्या भूमिका होनी चाहिए और सार्वजनिक क्षेत्र की क्या भूमिका होनी चाहिए।
नेशनल स्ट्रेटेजिक प्लान (एनएसपी) 2017-2025, भारत सरकार द्वारा बनाई गयी एक योजना है जो भारत में टीबी को खत्म करने के लिए सरकार के रोड मैप को निर्धारित करती है। एनएसपी 2017 - 2025 उन गतिविधियों और बदलावों का वर्णन करती है जो भारत सरकार के अनुसार टीबी की घटनाओं के प्रसार और मृत्यु दर में कमी ला सकते हैं।
वर्तमान में सरकारी केंद्रों में टीबी दवाएं मुफ्त में मिलती हैं। एनएसपी की योजना है कि बाद में टीबी दवाएं निजी मेडिकल से भी मुफ्त में उपलब्ध होंगी। वर्तमान में यह माना जाता है कि सभी टीबी रोगियों में से केवल आधे ही मुफ्त दवाओं का उपयोग करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि निजी अस्पतालों में उपलब्ध टीबी दवाएं समाज के उस वर्ग के बीच हीन सोच को दूर करने में मदद करेंगी जो दवा लेने के लिए सरकार द्वारा चलाये जा रहे सेंटर से संपर्क करने में संकोच करते हैं।
दिसंबर 2015 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक टोल फ्री नंबर (1800-11-6666) लॉन्च किया है जहां लोग टीबी के लिए परामर्श और उपचार सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
नोट - ये लेख केवल जानकारी के लिए है। myUpchar किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है। आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।