जब ट्यूबरक्‍युलोसिस (टीबी) पैदा करने वाला बैक्‍टीरिया यानि माइकोबैक्‍टीरियम ट्यूबरक्‍युलोसिस इस बीमारी के इलाज के लिए उपयोगी एंटीमाइक्रोबियल दवाओं पर प्रतिरोधी हो जाता है तो ड्रग रेसिस्‍टेंट ट्यूबरक्‍युलोसिस की स्थिति पैदा होती है।

टीबी का इलाज पूरा होने से पहले, इसे छोडना ड्रग रेसिस्‍टेंट ट्यूबरक्‍युलोसिस का प्रमुख कारण है। इसकी वजह से स्‍वस्‍थ लोगों को भी टीबी होने का अधिक खतरा रहता है और मरीज के परिवार को भी यह बीमारी लग सकती है।

मरीज के परिवार को लगता है कि बताई गई दवा लेने के बाद मरीज ठीक हो गया है और वो मरीज के आसपास रहने के लिए जरूरी सावधानियां बरतना बंद कर देते हैं और कभी-कभी मरीज खुद बीमारी की जांच के लिए फॉलो-अप टेस्‍ट के लिए नहीं जाते हैं। इससे परिवार के सदस्‍यों और दोस्‍तों को भी टीबी फैलने का खतरा बढ़ जाता है।

(और पढ़ें - टीबी हो तो क्या करें)

  1. भारत में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी - Drug-resistant TB in India in hindi
  2. ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के प्रकार - Types of Drug-resistant TB in hindi
  3. ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का निदान - Diagnosis of Drug-resistant TB in hindi
  4. मल्‍टीड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी और एक्‍सटेंसिवली रेसिस्‍टेंट टीबी के लिए पहले हुई ट्रीटमेंट का मूल्‍यांकन - Pre-treatment evaluation for Multidrug-resistant TB and Extensively Drug-resistant TB in hindi
  5. मल्‍टीड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी का उपचार - Treatment regimen for Multidrug-Resistant TB in hindi
  6. एक्‍सटेंसिवली रेसिस्‍टेंट टीबी का इलाज - Treatment regimen for Extensively Drug-Resistant TB in hindi
  7. ड्रग रेसिस्टेंट टीबी से बचाव - Prevention of Drug-resistant TB in hindi
  8. ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल - Treatment protocol for previously treated tuberculosis in hindi
  9. टीबी से जुड़े तथ्‍य - Tuberculosis: fact sheet
ड्रग रेसिस्टेंट टीबी के डॉक्टर

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी भारत में 40 साल से भी ज्‍यादा समय से मौजूद है।

साल 2016 में दुनियाभर में लगभग 490,000 लोग मल्‍टीड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) से ग्रस्‍त थे और लगभग 110,000 लोग रिफैम्पिसिन टीबी (आरआर-टीबी) से ग्रस्‍त थे। एमडीआर-टीबी और आरआर-टीबी से ग्रस्‍त देशों में सबसे ऊपर चीन, भारत और रशियन फेडरेशन का नाम था। टीबी के मरीजों के लिए अक्‍सर डॉक्‍टर सबसे पहली दवा के रूप में रिफैम्पिसिन लिखा करते थे।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के अनुसार भारत में 2017 में लगभग 65 हजार मामले ड्रग रेसिस्‍टेंट के आए थे। भारत को एमडीआर-टीबी और व्यापक रूप से ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी (एक्सडीआर-टीबी) के अधिकांश मामलों वाले शीर्ष 30 देशों में सूचीबद्ध किया गया है।

(और पढ़ें - महिलाओं में टीबी के लक्षण)

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मरीज के इलाज में कितनी दवाएं बेअसर हुई हैं, इस आधार पर ड्रग रेसिस्‍टेंट को निम्‍न रूप में बांटा गया है :

  • मल्‍टीड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी (एमडीआर टीबी) : जिस टीबी पर आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन यानि टीबी की दो सबसे शक्‍तिशाली दवाएं बेअसर होती हैं।
  • एक्‍सटेंसिवली ड्रग रेसिस्‍टेंस टीबी (एक्‍सडीआर टीबी) : यह एमडीआर टीबी का दुर्लभ प्रकार है। आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन के साथ फ्लोरोक्‍यूनोलोन पर भी यह टीबी असर नहीं करता है। इस तरह का टीबी में दूसरे नंबर पर इस्‍तेमाल होने वाली इंजेक्‍शन से लेने वाली तीन दवाओं एमिकेसिन, केनामाइसिन या कैपरिओमाइसिन असर नहीं करती हैं।

(और पढ़ें - टीबी टेस्ट कैसे होता है)

  • भारत में लाइन प्रोब असेस जैसे टेस्‍टों और जीन एक्‍सपर्ट मशीनों का इस्‍तेमाल कर के थूक में माइकोबैक्‍टीरियम ट्यूबरक्‍युलोसिस का पता चलता है।
  • संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम द्वारा प्रमाणीकृत लैबों को ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी का शक होने पर इसका टेस्‍ट करने की अनुमति है।
  • माइक्रोस्‍कोपिक ऑब्‍जर्वेशन ड्रग ससेप्‍टिबलिटी असे एक रैपिड टेस्‍ट में माइक्रोस्‍कोप से माइकोबैक्‍टीरियम ट्यूबरक्‍युलोसिस की जांच की जाती है।
  • टीके मीडियम एक अन्‍य टेस्‍ट है जो थूक में बैक्‍टीरिया की पहचान करने के लिए किया जाता है। यह कोलोरिमेट्रिक सिस्‍टम होता है जो टीबी के बैक्‍टीरिया की ओर इशारा करता है।
  • माइकोबैक्‍टीरिया ग्रोथ इंडिकेटर ट्यूब सिस्‍टम को मेडिकल टेक्‍नोलॉजी कंपनी बेक्‍टन डिकिनसन ने अमेरिका में शुरू किया था। यह टीबी की सबसे पहले और दूसरे नंबर पर इस्‍तेमाल होने वाली दवाओं के बेअसर होने की त्‍वरित जांच करता है।

(और पढ़ें - टीबी का आयुर्वेदिक इलाज)

पहले लिए इलाज का मूल्यांकन करने के लिए मरीज को अस्‍पताल में भर्ती होना चाहिए। इसमें चिकित्‍सकीय जांच, छाती का एक्‍स-रे और हेमाटोलॉजिकल टेस्‍ट जैसे कि कंप्‍लीट ब्‍लड काउंट, ब्‍लड शुगर टेस्‍ट, लिवर फंक्‍शन टेस्‍ट और बायोकेमिकल टेस्‍ट जैसे कि ब्‍लड यूरिया टेस्‍ट, सीरम क्रिएटिनिन, टीएसएच और यूरिन टेस्‍ट करवाया जाता है।

पहले ली गई ट्रीटमेंट के लिए एक्‍सटेंसिवली ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी में इलेक्‍ट्रोकार्डियोग्राफी (ईसीजी), सीरम इलेक्‍ट्रोलाइट और सर्जरी आदि शामिल हैं।

सभी मरीजों को शुरुआत में मल्‍टीपल ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी के नियम फॉलो करने चाहिए।

(और पढ़ें - टीबी रोग के घरेलू उपाय)

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  • मल्‍टीड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी का इलाज 24 से 27 महीने तक चलता है।
  • ट्रीटमेंट दो फेज में दी जाती है, इंटेसिव फेज और कंटिनुएशन फेज।
  • इंटेंसिव फेज नियम (आहार और व्‍यायाम से जुड़े) में 6 दवाएं होती हैं जो 6 से 9 महीने तक दी जाती हैं।
  • कंटिनुएशन फेज नियम में चार दवाएं अगले 18 महीने तक दी जाती हैं।
  • सभी दवाएं डॉक्‍टर की देखरेख में रोजाना एक बार की खुराक में ही दी जाती हैं।
  • एमडीआर-टीबी के नियमों में सभी मरीजों को पाइरिडोक्सिन दी जानी चाहिए।

(और पढ़ें - टीबी का होम्योपैथिक इलाज)

  • एक्‍सटेंसिवली ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी के मामले में पहले वाले इलाज के मूल्‍यांकन के साथ मरीज को थोरैसिक सर्जन से भी सलाह लेनी चाहिए।
  • एक्‍सडीआर-टीबी के ट्रीटमेंट के इंटेसिव फेज में सात दवाएं 6 से 12 महीने के लिए दी जाती हैं।
  • इंटेसिव फेज की ट्रीटमेंट को और आगे बढ़ाना है या नहीं, यह जानने के लिए मिड ट्रीटमेंट स्‍पुटम कल्‍चर टेस्‍ट किया जाता है। अगर फिर से स्‍पुटम टेस्‍ट पॉजिटिव आता है तो इंटेंसिव फेज को अगले 3 महीने तक चलाना होता है।
  • एक्‍सटेंसिव रेसिस्‍टेंस टीबी में कंटिनुएशन फेज में टीबी की 6 दवाएं 18 महीने तक दी जाती हैं।
  • भिन्‍न टॉक्सिसिटी प्रोफाइलों के साथ दवाओं के इस्‍तेमाल की वजह से एक्‍सडीआर टीबी में फॉलो-अप के दौरान ज्‍यादा इंटेंसिव मॉनिटरिंग की जरूरत होती है जिसमें मंथली कंप्‍लीट ब्‍लड काउंट, किडनी फंक्‍शन टेस्‍ट, सीरम इलेक्‍ट्रोलाइट, लिवर फंक्‍शन टेस्‍ट इंटेंसिव फेज के दौरान और कंटिनुएशन फेज के दौरान हर तीन महीने में किए जाते हैं।
  • हर 6 महीने में छाती का एक्‍स-रे किया जाता है।

(और पढ़ें - बच्चों में टीबी का इलाज)

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में अनुमानित ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी के मामलों और इलाज लेने वाले लोगों के बीच बहुत अंतर है। ऐसा आंशिक रूप से ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी के उपचार पर होने वाले खर्चे और लगने वाले समय की वजह से है।

इसकी एक वजह जागरूकता की कमी और नियमित टेस्‍ट के लिए न जाने की इच्‍छा है।

जिन लोगों को पूर्व में टीबी हो चुका है, उनके परिवार के सदस्यों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रोगी को उचित उपचार मिले। दवा का कोर्स पूरा होने के बाद मरीज को अपने डॉक्‍टर से भी बात करनी चाहिए। बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन है या पूरी तरह से खत्‍म हो गया है, यह जांचने के लिए डॉक्‍टर और टेस्‍ट लिख सकते हैं।

टीबी, ड्रग रेसिस्‍टेंस टीबी बहुत ज्‍यादा संक्रामक है। हाे सके तो घर से बाहर निकलने पर मास्‍क लगाकर रखें।

(और पढ़ें - टीबी में परहेज)

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विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की ग्‍लोबल ट्यूबरक्युलोसिस रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत में ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी के 91 पर्सेंट मामले उन लोगों में होते हैं जो पहले टीबी का इलाज ले चुके होते हैं।

हालांकि, जरूरी नहीं है कि सभी मामलों में ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी हो। यहां उन लोगों के लिए विशेष प्रोटोकॉल दिया गया है, जिनका पहले टीबी का इलाज हो चुका है, लेकिन उन्हें ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी नहीं है :

  • पहले टीबी का इलाज ले चुके मामले में इंटेंसिव फेज में दो महीने के लिए स्‍ट्रेप्‍टोमाइसिन के साथ आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, पाइरेजिनामाइड, एथमबुटोल दी जाती है।
  • इसके बाद एक महीने के लिए आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, पाइरेजिनामाइड, इथैमबुटोल दी जाती है।
  • तीन महीने बाद फॉलो-अप के लिए मरीज के थूक की जांच की जाती है।
  • अगर इलाज के तीन महीने खत्‍म होने पर थूक का टेस्‍ट पॉजिटिव आए तो इंटेंसिव फेस को एक महीने के लिए और बढ़ा दिया जाता है।
  • थूक के टेस्‍ट के रिजल्‍ट के अलावा इंटेंसिव फेज के एक और महीने के खत्‍म होने पर डॉक्‍टर कंटिनुएशन फेज शुरू करते हैं। इस फेज के दौरान मरीज को हफ्ते में तीन बार पांच महीने के लिए एक दिन छोड़कर एक दिन आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, एथमबुटोल दी जाती है।

(और पढ़ें - डॉट्स उपचार के फायदे)

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार विश्‍वस्‍तर पर भारत में 27 प्रतिशत टीबी के मामले हुए थे। हर साल टीबी के 30 लाख और 20 लाख नए मामले सामने आते हैं। भारत में हर साल लगभग 280,000 लोग टीबी से मर जाते हैं।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के आंकड़ों की मानें तो भारत में साल 2017 में 20 लाख 70 हजार टीबी के नए मामले सामने आए थे जिनमें आधे से ज्‍यादा मरीज पुरुष थे।

ट्यूबरक्युलोसिस क्‍या है?

ट्यूबरक्युलोसिस यानि टीबी एक इंफेक्‍शन है जो कि माइकाबैक्‍टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस नामक बैक्‍टीरिया की वजह से होता है और यह फेफड़ों को प्रभावित करता है। तीन हफ्ते से ज्‍यादा दिनों तक लगातार खांसी और बलगम आने पर टीबी की जांच करवानी चाहिए।

लक्षण : टीबी में दो हफ्ते से ज्‍यादा समय से खांसी के साथ बलगम बनना शामिल है, कभी-कभी इसमें खांसी में खून भी आ जाता है और छाती में दर्द, कमजोरी, वजन घटना, बुखार और रात में पसीना आता है।

  • टीका : 12 महीने से उम्र कम के नवजात शिशु को 0.05 मिली की बैसिलस कैलमेट-गुएरिन इंजेक्‍शन के जरिए लगाई जाती है। वयस्‍कों के 0.1 मिली का टीका लगाया जाता है।
  • कैसे फैलता है : माइकाबैक्‍टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस हवा से फैलता है।
  • टीबी के प्रकार : टीबी के तीन प्रकार होते हैं : टीबी की बीमारी, लेटेंट टीबी और ड्रग रेसिस्‍टेंट टीबी हैं। टीबी के मरीजों में टीबी के कीटाणु रहते हैं जो खांसने पर फैल सकते हैं और इसमें टीबी के सभी लक्षण होते हैं। लेटेंट टीबी में कोई लक्षण नहीं होता है और ये न ही दूसरों में फैलता है। लेकिन अगर कीटाणु एक्टिव हो जाएं तो यह टीबी की बीमारी पैदा कर सकते हैं।
  • पहली बार टीबी होने का इलाज : जिस व्‍यक्‍ति को पहली बार टीबी हुआ हो, उसके लिए दो फेज में ट्रीटमेंट की जाती है :
    • इंटेंसिव फेज : मरीज को दो महीने के लिए आइसोनियाजिड, रिफैम्पिसिन, पाइरेजिनामाइड और एथमबुटोल दी जाती है।
    • कंटिनुएशन फेज : इसमें मरीज को आमतौर पर आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन चार महीने के लिए दी जाती है।
  • DOTS कार्यक्रम के अंतर्गत पल्‍मोनरी और एक्‍स्‍ट्रा पल्‍मोनरी टीबी के मरीजों दोनों को ही हफ्ते में तीन बार दवाएं दी जाती हैं।
  • अगर इलाज के दो महीने बाद स्‍पुटम स्मियर टेस्‍ट पॉजिटिव आता है तो इंटेंसिव फेज की चार दवाओं को एक और महीने के लिए बढ़ा दिया जाता है।
  • स्‍पुटम रिजल्‍ट के अलावा इंटेंसिव ट्रीटमेंट के बढ़ाए हुए एक महीने के बाद चार महीने के लिए कंटिनुएशन फेज ट्रीटमेंट को शुरू किया जाता है।
  • अगर इलाज के पांच या इससे ज्‍यादा महीनों के बाद स्‍पुटम स्मियर टेस्‍ट पॉजिटिव आता है तो ट्रीटमेंट को फेल बता दिया जाता है और मरीज को पहले की ट्रीटमेंट की दी जाती है।
  • संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के अंतर्गत Non-DOTS ट्रीटमेंट
    • यह ट्रीटमेंट उन मरीजों को दी जाती है जिनमें रिफैम्पिसिन और/या पाइराजिनामाइड उल्‍टा असर दिखाने लगे और जो टीबी के नए मरीज DOTS का इलाज लेने से मना कर दें। यह ट्रीटमेंट 12 महीने तक चलती है जिसमें स्‍ट्रेप्‍टोमाइसिन, आइसोनियाजिड, एथमबुटोल और 10 महीने के लिए आइसोनियाजिड, एथमबुटोल दी जाती है।
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