ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनी माइलन को भारत में अपनी एंटी-ट्यूबरकुलोसिस की दवा बेचने की इजाजत दे दी है। इस दवा का नाम 'प्रिटोमानिड' है। डीसीजीआई ने टीबी के खिलाफ चलाए अभियान नैशनल ट्यूबरकुलोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम (एनटीईपी) के तहत केवल खास परिस्थितियों में दवा के इस्तेमाल और बिक्री की अनुमति दी है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, भारत दुनिया का दूसरा देश ने जहां दवा से जुड़े किसी नियामक प्राधिकरण ने इस ड्रग को अप्रवूल दिया है।
तीन दवाओं के कॉम्बिनेशन के साथ मंजूरी
खबरों की मानें तो प्रिटोनामिड को तीन दवाओं के कॉम्बिनेशन के हिस्से के रूप में अप्रूव किया गया है। इस कॉम्बिनेशन में बेडाक्वीलाइन और लाइनजोलिड के साथ प्रिटोनामिड को शामिल किया जाता है, जिसका संयुक्त नाम 'बीपीएएल' है। यह ड्रग कॉम्बिनेशन टीबी के वयस्क मरीजों के लिए है, जिन्हें यह दवा तब देनी है, जब फेफड़ों में परेशानी उत्पन्न होने के लिए मेडिकेशन की जरूरत पड़े या ट्रीटमेंट बर्दाश्त करने योग्य न रह जाए और या टीबी को रोकने में इस्तेमाल होने वाली अन्य दवाएं असर न दिखाएं (ड्रग रेजिस्टेंट)।
डीसीजीआई से अप्रूवल मिलने के बाद माइलन अपनी एंटी-टीबी दवा के 400 ट्रीटमेंट कोर्सेज दान के रूप में उपलब्ध कराएगी। कंपनी टीबी के खिलाफ सरकार के अभियान एनटीईपी के तहत ये ट्रीटमेंट कोर्सेज बिल्कुल मुफ्त देगी। इसके अलावा, माइलन कंपनी दवा को कमर्शियली भी एनटीईपी को पहले से घोषित कीमत (27 हजार रुपये) पर उपलब्ध कराएगी। दवा की यह कीमत छह महीने के ट्रीटमेंट के लिए होगी। इसके अलावा माइलन भारत में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति के लिए भी दवा की मैन्यूफैक्चरिंग करेगी।
(और पढ़ें - 2019 में टीबी से करीब 80 हजार लोगों की मौत, कोविड-19 संकट की वजह से हजारों अतिरिक्त मौतों की बन सकता है वजह)
क्या है टीबी की बीमारी?
ट्यूबरकुलोसिस (तपेदिक या क्षयरोग) या टीबी एक संक्रामक रोग है, जो आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में हवा के द्वारा फैलता है। सांस लेने के दौरान टीबी के बैक्टीरिया स्वस्थ व्यक्ति को भी बीमार बना सकते हैं। अन्य रोगों के मुकाबले टीबी दुनियाभर में दूसरा सबसे बड़ा जानलेवा रोग बताया जाता है। इसके लक्षणों में लगातार तीन हफ्ते से ज्यादा समय तक खांसी होना, थकान लगना और वजन घटना शामिल हैं। टीबी आमतौर पर उपचार से ठीक हो जाता है। इसके इलाज में एंटीबायोटिक दवाओं के कोर्स शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि टीबी के इलाज में 6-9 महीने लग सकते हैं। कुछ स्थितियों में दो साल तक का समय भी लग सकता है।
क्षय रोग या तपेदिक की बीमारी कितनी घातक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर दिन इससे सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्टें बताती हैं कि टीबी दुनिया के सबसे घातक संक्रामक रोगों में से एक है। इसके चलते हर दिन 4,000 से अधिक लोग अपनी जान गंवाते हैं, जबकि 30,000 से अधिक मामले प्रतिदिन सामने आते हैं। भारत सरकार के नेशनल हेल्थ पोर्टल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशकों में टीबी की रोकथाम को लेकर कई अहम फैसले लिए गए हैं। लेकिन इसके बाद भी यह बीमारी अभी भी पूरी दुनिया में होने वाली मौतों के जिम्मेदार शीर्ष दस कारणों में से एक बनी हुई है।
(और पढ़ें - कोरोना वायरस को रोकने के लिए अब टीबी की दवा का इस्तेमाल, जानें ऑस्ट्रेलिया में इसके परीक्षण की वजह)
गौरतलब है कि पूरी दुनिया में टीबी एक चौथाई मामले केवल भारत में हैं। रिपोर्टों के मुताबिक, यहां हर साल टीबी के करीब 27 लाख मामले सामने आते हैं। इनमें एक लाख 30 हजार मरीजों को ड्रग-रेजिस्टेंट की समस्या रहती है। इसके अलावा उन्हें बीमारी के साथ-साथ तेजी से बदलने वाले जटिल और लंबे ट्रीटमेंट का भी सामना कर पड़ता है, जो अपनेआप में एक समस्या है। इन ट्रीटमेंट्स के परिणाम अक्सर अच्छे नहीं निकलते हैं। साल 2019 में माइलन और टीबी अलायंस ने वैश्विक सहयोग के तहत प्रिटोनामिड को टीबी के इलाज में इस्तेमाल हो रही दो इन्वेस्टिगेशनल ड्रग्स के साथ निम्न और मध्यम आय वाले देशों को उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। इन ड्रग्स में बीपीएएल के अलावा बीपीएएमजेड (बेडाक्वीलाइन, प्रिटोनामिड, मॉक्सिफ्लोक्ससिन और पाइराजीनामिड) शामिल हैं।