कोरोना वायरस संकट के बीच भारत में पहली बार अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के फैलने की खबर है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, बीते रविवार को असम सरकार ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि राज्य में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू से अब तक 306 गांवों में करीब 2,500 सूअरों की मौत हो चुकी है। उसने बताया कि केंद्र सरकार ने सूअरों को मारने की अनुमति दे दी है, लेकिन फिलहाल वह इस संक्रामक रोग को रोकने के लिए कोई और विकल्प देख रही है। असम के पशुपालन और पशु चिकित्सा मंत्री अतुल बोरा ने साफ किया कि अफ्रीकी स्वाइन फ्लू का कोविड-19 से कोई संबंध नहीं है। वहीं, आशंका जताई गई है कि यह बीमारी चीन होते हुए पहले अरुणाचल प्रदेश पहुंची और वहां से असम में फैल गई। खबरों के मुताबिक, बीती चार मई तक चीन में 40 प्रतिशत सूअर इस बीमारी की चपेट में आ चुके हैं।
अतुल बोरा ने विभागीय आंकड़ों के हवाले से बताया कि इस समय देश में सूअरों की संख्या करीब 30 लाख है। उन्हें मारने के विकल्प को लेकर मंत्री ने कहा, 'हमने विशेषज्ञों से बात की है कि क्या सूअरों को मारे बिना ही बचाया जा सकता है। इस बीमारी से सूअरों के मरने की दर सौ प्रतिशत है। इसलिए हमने उन सूअरों को बचाने की रणनीति तैयार की है, जो वायरस के प्रभाव में नहीं आए हैं।' अतुल बोरा ने कहा कि टेस्टिंग के बाद जिन सूअरों में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू की पुष्टि होगी, उन्हीं को मारा जाएगा। उनके मुताबिक, अभी यह बीमारी ज्यादा नहीं फैली है और इसे रोकने के लिए उनकी सरकार ने पड़ोसी राज्यों को भी आगाह कर दिया है ताकि सूअरों की गतिविधि नियंत्रित की जाए।
क्या है अफ्रीकी स्वाइन फ्लू वायरस?
यह पालतू और जंगली सूअरों में रक्तस्राव से होने वाला बुखार है, जो 'ऐजफारविरिडाई' नामक वायरस परिवार के विषाणुओं से फैलता है। इसके प्रभाव में सूअरों को बुखार, घाव, नब्ज और हृदय गति का बढ़ना, मतली आना, खूनी दस्त, कान और थूथन के लाल होने जैसी समस्याएं होती हैं। उनमें इस बीमारी के लक्षण दिखने का समय पांच से 15 दिन है, जिसके चलते सामान्यतः सूअरों की मौत हो जाती है। जानकारों के मुताबिक, एक बार फैलने के बाद इस बीमारी को जड़ से खत्म करना मुश्किल होता है। हालांकि, अफ्रीकी स्वाइन फ्लू वायरस या एएसएफवी का इन्सानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
बताया जाता है कि सूअरों के लिए जानलेवा इस फ्लू की पहचान सबसे पहले 1910 में केन्या में हुई थी। तब से यह सब-सहारा अफ्रीका और यूरोप के देशों के अलावा चीन और कैरिबियाई देशों में फैलता रहा है। जानकार बताते हैं एएसएफवी संक्रमित और स्वस्थ सूअरों के आपस में संपर्क में आने से फैलता है। वहीं, फोमाइट्स यानी आम जीवन से जुड़ी वस्तुओं के जरिये भी अप्रत्यक्ष रूप से यह बीमारी फैल सकती है। इसके अलावा संक्रमित सूअर के मांस या चिचड़ियों के जरिये भी वायरस एक जगह से दूसरी जगहों में फैल सकता है।
एएसएफवी से सूअरों की मृत्यु दर ज्यादा होने के चलते विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन ने इसे सूचनीय रोग की श्रेणी में रखा है। इसका मतलब है कि पशुओं में इस बीमारी के होने का पता चलने पर उनके पालकों को इस बारे में रिपोर्ट देनी होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक, अभी तक एएसएफवी का कोई इलाज या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। इसीलिए अगर सूअरों में इसके वायरस का पता चलता है तो संक्रमण को और फैलने से रोकने के लिए उन्हें मार दिया जाता है।
इन्सानों के लिए कितना खतरनाक?
एएसएफवी को अभी तक इन्सानों के लिए खतरनाक नहीं पाया गया है। हालांकि विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि वायरस के परिवर्तित होने की संभावना है। उनके मुताबिक, ऐसा पहले भी हो चुका है, जिसका उदाहरण एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू है, जो जानवरों से इन्सानों में फैला था।
अफ्रीकी स्वाइन फ्लू युक्त मीट से क्या खतरा है?
इस बीमारी से ग्रस्त सूअर का मांस खाने से इन्सानों को नुकसान पहुंचने के सबूत अभी तक नहीं मिले हैं। जर्मन फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर रिस्क असेस्मेंट के मुताबिक, हालांकि अधपका या मैली जगहों पर बने मीट को खाने से बचना चाहिए।
अफ्रीकी स्वाइन फ्लू और स्वाइन फ्लू में क्या अंतर है?
अफ्रीकी स्वाइन फ्लू डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए वाले वायरस से होने वाला रोग है, जो पालतू और जंगली सूअरों को प्रभावित करता है। उनके लिए यह बीमारी जानलेवा है, जिसका कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह इन्सानों के लिए खतरनाक नहीं है।
वहीं, स्वाइन फ्लू सूअरों में फैला इन्फ्लूएंजा है जो इन्सानों को भी संक्रमित करता है। सन् 1919 में पहली बार इससे इन्फ्लूएंजा महामारी फैली थी। स्वाइन फ्लू का आरएनए वायरस स्ट्रेन पहले सूअरों में बनना शुरू होता है। इसे हम एच1एन1 के नाम से जानते हैं। अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के विपरीत स्वाइन फ्लू की वैक्सीन बना ली गई है। इसके संक्रमण से बुखार, अवसाद (डिप्रेशन) और नाक या आंख से स्राव होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यहां बता दें कि यह बीमारी सूअरों से सीधे इन्सानों में फैलती है, न कि मांस उत्पादों के जरिये।