सैंडहॉफ आनुवंशिक रूप से होने वाला एक दुर्लभ विकार है, इसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं। इस बीमारी का सबसे आम और गंभीर रूप शैशवावस्था (जन्म के बाद के कुछ महीनों) में दिखाई दे सकता है। आमतौर पर इस विकार से ग्रस्त शिशु 3 से 6 महीने की उम्र तक सामान्य दिखाई दे सकते हैं, लेकिन उसके बाद उनका विकास धीमा होने लगता है और हिलने-डुलने के लिए इस्तेमाल होने वाली मांसपेशियां में कमजोरी हो जाती है। इसके अलावा मोटर स्किल्स में भी कमी आ जाती है, जिसकी वजह से मुड़ने, बैठने और चलने में दिक्कत आ सकती है।
इस बीमारी की एक और पहचान है - आंख का असामान्य दिखना, जिसे चेरी-रेड स्पॉट के नाम से जाना जाता है। कुछ बच्चों में उनके अंग या हड्डी का बढ़ना जैसी स्थिति को नोटिस किया जा सकता है। इस बीमारी से ग्रस्त गंभीर मामलों में शिशु आमतौर पर दो वर्ष से ज्यादा जीवित नहीं रह पाते हैं।
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सैंडहॉफ रोग के लक्षण
इस बीमारी के संकेत और लक्षणों में शामिल हो सकते हैं -
- खाना खाने में दिक्कत आना
- कमजोरी (सुस्ती)
- अचानक शोर या तेज आवाज सुनने पर चौंक जाना
- चिकित्सक द्वारा परीक्षण (जिसमें विशेष उपकरण का प्रयोग होता है) में आमतौर पर आंखों में गोल व लाल धब्बे देखे जा सकते हैं।
अन्य लक्षणों के तौर पर फाइन मोटर व ग्रॉस मोटर एबिलिटी के विकास में कमी आ सकती है। फाइन मोटर का मतलब छोटी-छोटी वस्तुओं को उठाना व उन्हें पकड़ने से है, जबकि ग्रॉस मोटर में ऐसे मूवमेंट्स शामिल हैं, जिन्हें बड़ी मांसपेशियों जैसे हाथ व पैर से किया जाता है।
इसके अतिरिक्त मानसिक स्वास्थ में लगातार कमी आ सकती है, जिसकी वजह से मांसपेशियों में कमजोरी, मंदबुद्धि, दौरे पड़ना, अंधापन या असामान्य रूप से प्लीहा का बढ़ना जैसी समस्या देखी जा सकती है।
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सैंडहॉफ रोग के कारण
सैंडहॉफ रोग एक ऑटोसोमल रिसेसिव जेनेटिक डिसऑर्डर (एआरजीडी) है, जिसका मतलब है कि प्रभावित व्यक्ति में उसके माता-पिता से दोषपूर्ण जीन पारित हुआ है। यह बीमारी एचईएक्सबी नामक जीन में गड़बड़ी के कारण होती है। एचईएक्सबी जीन प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है, जो तंत्रिका तंत्र में दो महत्वपूर्ण एंजाइमों बीटा-हेक्सोसामिनिडेस ए और बीटा-हेक्सोसामिनिडेस बी का हिस्सा है।
यदि एचईएक्सबी जीन में गड़बड़ी हो जाएगी, तो बीटा-हेक्सोसामिनिडेस ए और बीटा-हेक्सोसामिनिडेस बी नामक एंजाइम के कार्यों में बाधा आ सकती है। ये एंजाइम, लाइसोसोम में स्थित हैं। लाइसोसोम एक तरह का कोशिका अंग है, जिसमें पाचन एंजाइम होते हैं। यह विषाक्त पदार्थों को नष्ट करते हैं। लाइसोसोम के अंदर ये एंजाइम वसायुक्त पदार्थ व अन्य हानिकारक अणुओं को तोड़ते हैं। विशेष रूप से, बीटा-हेक्सोसामिनिडेस ए जीएम2 गैंग्लियोसाइड नामक वसायुक्त पदार्थ को तोड़ने में मदद करता है।
सैंडहॉफ रोग का निदान
सैंडहॉफ रोग हेक्सोसैमिनीडेज ए और बी एंजाइम की गतिविधि का निर्धारण करने के लिए एचईएक्सबी नामक एंजाइम के कार्यों की जांच करके निदान किया जा सकता है। प्रभावित व्यक्तियों में दोनों एंजाइमों की या तो अनुपस्थित होगी या फिर इनके कार्य करने की क्षमता बेहद कम होगी। दोनों में से किसी स्थिति के होने पर इस बीमारी का निदान आसानी से किया जा सकता है।
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सैंडहॉफ रोग का इलाज
सैंडहॉफ बीमारी के लिए कोई विशिष्ट उपचार नहीं है, लेकिन सहायक उपचार के तौर पर सैंडहॉफ रोग से ग्रसित व्यक्तियों को उचित पोषण, पानी की कमी न होने देना और वायुमार्ग को खुला रखना जैसी सावधानियों पर ध्यान रखना जरूरी है। डॉक्टरों का मानना है कि मिर्गी रोधी दवाएं, दौरे पड़ने की समस्या को ठीक करने में फायदेमंद हो सकती हैं।
जैसे-जैसे इस बीमारी का असर बढ़ता जाता है, सैंडहॉफ रोग से ग्रसित बच्चों को दौरे पड़ने, देखने और सुनने की क्षमता में कमी, बौद्धिक क्षमता में कमी (नए कौशल को सीखने में सामान्य लोगों की अपेक्षा देरी या मानसिक विकास में देरी) और लकवा जैसी बीमारी का अनुभव हो सकता है। ऐसे में मांसपेशियों से जुड़ी दिक्कतों को नोटिस करने के बाद तुरंत अपने डॉक्टर को बताएं, ताकि जल्द से जल्द उपचार के लिए उपलब्ध विकल्प का इस्तेमाल किया जा सके।