लिवर शरीर का सबसे बड़ा आंतरिक अंग है। यह कई महत्वपूर्ण कार्य करता है जैसे, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का संश्लेषण तथा चयापचय करने में सहायता करता है। लिवर वसा और विटामिन के पाचन तथा अवशोषण में मदद करने वाले पित्त का स्राव करता है और शरीर से अपशिष्ट पदार्थों के डिटॉक्सीफिकेशन और उन्मूलन में भी मदद करता है। लिवर की संरचना और कार्य में कोई भी असामान्यता लिवर रोग के रूप में जानी जाती है।
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लिवर की आम बीमारियों में वायरस के कारण होने वाले संक्रमण जैसे, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी, शराब या ड्रग से होने वाला लिवर रोग, लिवर कैंसर और विल्सन रोग तथा हेमोक्रोमैटोसिस (Hemochromatosis) जैसे आनुवंशिक विकार आदि शामिल हैं। धीरे धीरे होने वाली लिवर की बीमारी अंततः सिरोसिस (लिवर पर निशान बन जाना) में बदल सकती है। लिवर की बीमारी वाले रोगी में पीलिया या त्वचा और आंखों का पीलापन, थकान, भूख न लगना, हल्का वजन घटना, काले रंग का मूत्र , पीला मल आना, पैरों और पेट की सूजन (जलोदर - पेट में पानी भर जाना), त्वचा में खुजली, आसानी से छील जाना और असामान्य रक्तस्राव आदि लक्षण दिख सकते हैं। लिवर बढ़ना (हेपटोमेगेली), उन नसों में ब्लड प्रेशर अधिक होना जो आंत से खून को लिवर (पोर्टल हाइपरटेंशन) में ले जाती हैं, विषाक्त पदार्थों के जमा होने के कारण मस्तिष्क के कार्यों में कमी (हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी) और लिवर फेल होना जैसी कुछ अन्य स्थितियां भी हैं जो लिवर रोग से जुड़ी हैं।
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लिवर फंक्शन टेस्ट, पेट का अल्ट्रासाउंड, लिवर बायोप्सी, एमआरआई और सीटी स्कैन जैसे विभिन्न टेस्ट लिवर की बीमारी के कारण और सीमा की पहचान करने में मदद करते हैं।
शोध अध्ययनों से पता चला है कि लिवर रोग के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए होम्योपैथिक दवाएं जैसे कार्डुअस मैरिएनस, चेलिडोनियम मेजस, लाइकोपोडियम, फास्फोरस और नक्स वोमिका उपयोगी हैं। होम्योपैथिक उपचार का उद्देश्य रोगी के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करना है, जो लिवर रोगों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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