आयुर्वेद में लिवर रोग को यकृत विकार बताया गया है। इसमें दवाओं, ड्रग्‍स और शराब पीने के कारण होने वाली लिवर से संबंधित कई समस्‍याओं को शामिल किया गया है। अधिकतर लिवर रोगों का सबसे पहला लक्षण पीलिया को माना जाता है।

विभिन्‍न लिवर रोगों को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सक विरेचन कर्म (दस्‍त की विधि) की सलाह देते हैं। लिवर रोगों के इलाज में जिन जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्‍तेमाल किया जाता है उनमें कालमेघ (हरा चिरायता), कुटकी, भृंगराज, दारुहरिद्रा, मकोय, पिप्पली, भूमिआमलकी, गुडूची, कुमारी आसव, भृंगराजासव, पुनर्नवासव, गोक्षुरादि चूर्ण, गुड़ पिप्‍पली और वासा कंटकारी लेह शामिल हैं।

  1. आयुर्वेद के दृष्टिकोण से लिवर रोग
  2. लिवर रोग का आयुर्वेदिक उपाय
  3. लिवर रोग की आयुर्वेदिक दवा, जड़ी बूटी और औषधि
  4. आयुर्वेद के अनुसार लिवर रोग होने पर क्या करें और क्या न करें
  5. लिवर रोग में आयुर्वेदिक दवा कितनी लाभदायक है
  6. लिवर रोग की आयुर्वेदिक दवा के नुकसान
  7. लिवर रोग के आयुर्वेदिक उपाय से जुड़े अन्य सुझाव
लिवर रोग की आयुर्वेदिक दवा और उपाय के डॉक्टर

कई समस्‍याओं के कारण लिवर रोग हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार यकृत विकार के विभिन्‍न निम्‍न प्रकार होते हैं:

  • प्रत्‍यक्ष : इसमें निम्‍न प्रकार शामिल हैं:
    • यकृत व्‍याधि : इसमें लिवर के बढ़ने के साथ-साथ कफ और पित्त दोष के खराब होने के लक्षण सामने आते हैं, जैसे कि हल्‍का बुखार, कमजोरी और पाचन अग्नि का खत्‍म होना। (और पढ़ें - वात पित्त और कफ प्रकृति के लक्षण क्या हैं )
    • यकृदालयुदार (लिवर सिरोसिस): लिवर के ठीक तरह से काम न कर पाने पर पेट फूलने लगता है।
    • यकृतघात दोष (हेपेटाइटिस) : लिवर में विकृत दोष के मौजूद होने की वजह से सूजन होने लगती है।
  • अप्रत्‍यक्ष : इसके निम्‍न प्रकार हैं:
    • कमला (पीलिया)
    • पानकी (पीलिया के साथ दस्त)
    • हलीमक (बुखार के साथ पीलिया)
    • कुंभ कामला (जलोदर और एडिमा के साथ पीलिया)
    • लोध्र (क्‍लोरोसिस)
    • लाघरक् (हेपेटाइटिस)
    • अलस (हेपेटाइटिस)
    • आयुर्वेद के अनुसार, कमला रोग प्रमुख तौर पर एनीमिया की वजह से होता है। किसी अन्‍य रोग के लक्षण या स्‍वयं एक रोग के रूप में ये स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या हो सकती है।

लिवर रोगों के सबसे सामान्‍य कारणों में अत्‍यधिक दवाओं और ड्रग्‍स का सेवन एवं भोजन के ज़रिए रसायनों का शरीर में जाना शामिल है। इनसे पैदा होने वाली समस्‍याओं को शराब की लत जैसी बुरी आदतों से और ज्यादा बढ़ावा मिलता है। आयुर्वेदिक उपचार में लिवर रोग को नियंत्रित करने के लिए असंतुलित हुए दोष की पहचान की जाती है।

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  • विरेचन कर्म
    • विरेचन कर्म, आंतों से मल को साफ करने के लिए जड़ी बूटियों या औषधियों द्वारा दस्‍त लाने की विधि है। ये शरीर से अमा (विषाक्‍त पदार्थों) और अत्‍यधिक दोष को साफ करने में मदद करता है जिससे रोग का इलाज होता है।
    • सेन्‍ना, एलोवेरा और रूबर्ब जैसी कड़वी जड़ी बूटियों का इस्‍तेमाल दस्‍त लाने के लिए किया जाता है। हालांकि, लिवर रोग के लिए विरेचन कर्म में हिंगु त्रिगुण तेल लगाया जाता है।
    • इस चिकित्‍सा से लिवर, पित्ताशय और छोटी आंत से अत्‍यधिक पित्त को साफ करने में मदद मिलती है। ये कफ दोष के कारण होने वाले विकारों को भी नियंत्रित करने में उपयोगी है।
    • व्‍यक्‍ति की स्थिति और पाचन क्षमता के आधार पर इस चिकित्‍सा को दोबारा दिया जा सकता है।

(और पढ़ें - लिवर फैटी हो तो क्या करे)

लिवर रोग के लिए आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

  • कालमेघ
    • कालमेघ के गुण इसे रेचन, अत्‍यधिक पित्त को साफ करने और कीड़ों को नष्‍ट करने में उपयोगी बनाते हैं। इस जड़ी बूटी में मौजूद विभिन्‍न जैविक घटक अग्नि मांद्य (पाचन अग्नि को कम करने) और यकृत वृद्धि (लिवर बढ़ने) पर असरकारी है। (और पढ़ें - पेट के कीड़े मारने के उपाय)
    • कालमेघ लिवर और प्‍लीहा को उत्तेजित करती है जिससे इन अंगों के कार्य में सुधार आने में मदद मिलती है। कालमेघ दीपन (भूख बढ़ाने) की प्रकिया और पाचन में सुधार लाने में भी उपयोगी है। (और पढ़ें - भूख बढ़ाने का उपाय)
    • कालमेघ चूर्ण के रूप में उपलब्‍ध है। आप इस जड़ी बूटी को पानी, गन्ने के जूस या शहद के साथ या आयुवेर्दिक चिकित्‍सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
       
  • कटुकी
    • कटुकी उत्‍सर्जन, पाचन, तंत्रिका, परिसंचरण और स्‍त्री प्रजनन तंत्र पर कार्य करती है। कड़वे स्‍वाद वाली कटुकी भूख बढ़ाती है और इसकी कम खुराक लेने पर ये रेचक (मल त्‍याग की क्रिया को नियंत्रित करना) के रूप में कार्य करती है। अधिक खुराक लेने पर ये मलेरिया जैसे कुछ रोगों को दोबारा होने से रोकती है।
    • लिवर रोगों, शरीर में भारी मात्रा में विषाक्‍त धातुओं के जमने, मिर्गीऔर पित्त बुखार को नियंत्रित करने में कुटकी मदद करती है। यष्टिमधु (मुलेठी) और नीम की छाल के साथ लेने पर कटुकी मलेरिया और बुखार के लक्षणों में सुधार लाने में उपयोगी है।
    • आप अपमिश्रण, अर्क, गोली और पाउडर के रूप में इसका इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • भृंगराज
    • भृंगराज तंत्रिका, परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। इसमें रेचक, ऊर्जादायक, खून के थक्‍कों को ठीक करने, नसों को आराम देने और बुखार से राहत दिलाने वाले गुण होते हैं। भृंगराज वृक्ष की जड़ों का इस्‍तेमाल उल्‍टी और आंत को साफ करने के लिए किया जाता है। भृंगराज की पत्तियों से तैयार रस लिवर को शक्‍ति प्रदान करता है। इसका इस्‍तेमाल लिवर के कार्य में सुधार लाने के लिए किया जाता है।
    • किडनी और लिवर पर भृंगराज ऊर्जावर्द्धक प्रभाव डालती है। ये सिरोसिस को नियंत्रित करने में बहुत असरकारी है। भृंगराज को तेल में मिलाकर या सिर पर लगाने से सिरदर्द से राहत एवं गहरी नींद आने में मदद मिलती है। इसकी जड़ का पाउडर लिवर में सूजन, प्‍लीहा के बढ़ने और विभिन्‍न त्‍वचा विकारों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
    • इसे अर्क, पाउडर, काढ़े, औषधीय तेल और घी के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं। (और पढ़ें - काढ़ा बनाने की विधि)
    • इस जड़ी बूटी के कारण अत्‍यधिक ठंड लग सकती है इसलिए इसका इस्‍तेमाल करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
       
  • दारुहरिद्रा
    • ये परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। ये भूख को बढ़ाती है और कड़वे टॉनिक की तरह काम करती है। दारुहरिद्रा बुखार के इलाज में भी बहुत उपयोगी है।
    • दारुहरिद्रा को पीलिया के इलाज में सर्वोत्तम जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। ये लिवर और प्‍लीहा के बढ़ने की स्थिति को नियंत्रित करने एवं लिवर के कार्य में सुधार लाने में मदद करती है। ये रुमेटिज्‍म, मलेरिया, त्‍वचा रोगों, डायबिटीज का इलाज एवं शरीर से अमा को बाहर निकालती है। चूंकि, अधिकतर रोगों का कारण अमा ही होता है इसलिए इसे साफ कर के लिवर विकारों के लक्षणों को दूर करने में मदद मिलती है।
    • दारुहरिद्रा को पाउडर, काढ़े, औषधीय घी, आंखों को धोने वाले मिश्रण और पेस्‍ट के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    • अधिक वात और ऊतकों की कमी होने की स्थिति में दारुहरिद्रा का इस्‍तेमाल सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
       
  • मकोय
    • मकोय में कैंसर-रोधी, एंटीऑक्सीडेंट, सूजन-रोधी, लिवर को सुरक्षा प्रदान करने वाले, मूत्रवर्द्धक और बुखार कम करने वाले गुण होते हैं।
    • ये बुखार, पेचिश, हेपेटाइटिस और पेट से जुड़ी परेशानियों को नियंत्रित करने में उपयोगी है। इसके पेड़ के रस को लगाने से अल्सर और अन्‍य त्‍वचा रोगों को ठीक करने में मदद मिल सकती है।
    • अस्‍थमा के इलाज और भूख बढ़ाने में मकोय फल उपयोगी है। इसे रेचक (दस्‍त लाने) के लिए भी इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • पिप्‍पली
    • पिप्‍पली में कई विकारों जैसे कि पेट फूलने, ट्यूमर, कफ विकारों, जुकाम, खांसी, रुमेटिक दर्द और साइटिका के दर्द के इलाज में उपयोगी जैविक घटकों की श्रृंख्‍ला मौजूद है। पिप्‍पली पेट फूलने की समस्‍या से राहत दिलाने में भी असरकारी है जो कि लीवर सिरोसिस का ही एक लक्षण है। (और पढ़ें - साइटिका का घरेलू उपाय)
    • ये लिवर की कोशिकाओं को ऊर्जा देती है और इसी वजह से लिवर रोगों के इलाज के लिए अन्‍य औषधियों एवं जड़ी बूटियों के साथ इसका इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • पिप्‍पली को अर्क, पाउडर और तेल के रूप में इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
       
  • भूमि आमलकी
    • भूमि आमलकी पाचन, प्रजनन और मूत्र प्रणाली पर कार्य करती है।
    • लिवर रोगों के इलाज में इस्‍तेमाल होने वाली जड़ी बूटियों में भूमि आमलकी प्रमुख है। ये पीलिया, पेचिश, डायबिटीज, आंतों में सूजन (कोलाइटिस) और कुछ प्रकार के एडिमा के इलाज में भी असरकारी है।
    • अल्‍सर, सूजन, घाव, त्‍वचा रोगों, मसूड़ों से खून आने और टॉन्सिलाइटिस को नियंत्रित करने के लिए इस जड़ी बूटी की पुल्टिस का इस्‍तेमाल किया जाता है।
    • ये विभिन्‍न रोगों के इलाज में असरकारी है एवं पाउडर, पुल्टिस, अर्क, जूस या गोली के रूप में भूमि आमलकी का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
       
  • गुडूची
    • गुडूची परिसंचरण और पाचन तंत्र पर कार्य करती है। ये कड़वे टॉनिक, मूत्रवर्द्धक, इम्‍युनिटी बढ़ाने और खून को साफ करने का काम करती है। (और पढ़ें - खून को साफ करने वाले आहार)
    • ये कई रोगों जैसे कि बुखार, पीलिया, गठिया, टीबी, कैंसर और रुमेटिज्‍म को नियंत्रित करने में उपयोगी है। शक्‍तिवर्द्धक होने के कारण ये शरीर को संपूर्ण रूप से मजबूती प्रदान करने में मदद करती है।

लिवर रोग के लिए आयुर्वेदिक औषधियां

  • कुमारी आसव
    • कुमारी आसव में कई सामग्रियां जैसे कि पिप्‍पली की जड़, कटुकी, हल्दी, धनिया, आमलकी, एलोवेरा जूस, आयरन, शहद, पुराना गुड़, त्रिकटु, गोक्षुरा आदि मौजूद हैं।
    • आयरन की कमी के कारण होने वाले एनीमिया के इलाज में कुमारी आसव खून बढ़ाने का काम करता है। इससे बार-बार पेशाब आता है और भूख में भी सुधार होता है। ये गैस्ट्रिक और ड्यूडोनल अल्‍सर (छोटी आंत के पहले हिस्‍से में अल्सर) को भी नियंत्रित करने में मदद करता है। (और पढ़ें - बार बार पेशाब आने के कारण)
    • आयुर्वेद के अनुसार, अधिकतर लिवर रोगों का प्रमुख लक्षण पीलिया होता है और ये एनीमिया के कारण हो सकता है। कुमारीआसव से एनीमिया का इलाज होता है इसलिए ये लिवर रोगों को नियंत्रित करने में भी मददगार है।
       
  • भृंगराजासव
    • भृंगराजासव में कई चीजें मौजूद हैं जैसे कि भृंगराज का रस, पुराना गुड़, हरीतकी, जायफल, लौंग, दालचीनी की छाल, इलायची की पत्तियां, पिप्‍पली और नागकेसर पुष्‍प केसर आदि।
    • सामान्य तौर पर एनीमिया के कारण पीलिया रोग होता है एवं भृंगराजासव इसे नियंत्रित करने में उपयोगी है। ये लंबे समय से हो रहे बुखार और लिवर एवं प्‍लीहा के बढ़ने को रोकने में भी असरकारी है।
       
  • पुनर्नवासव
    • इसमें त्रिकटु, पुनर्नवा, कटुकी, गुडूची, अरंडी की जड़, गोक्षुरा, किशमिश, चीनी, शहद आदि मौजूद हैं।
    • इस मिश्रण में खून बढ़ाने वाले और मूत्रवर्द्धक गुण होते हैं। ये एडिमा, लिवर और प्‍लीहा के बढ़ने, पीलिया एवं एनीमिया के इलाज में उपयोगी है।
    • लिवर से संबंधित विभन्‍न रोगों के इलाज के लिए पुनर्नवासव का इस्‍तेमाल गोक्षुरादि चूर्ण के साथ किया जा सकता है।
       
  • गोक्षुरादि चूर्ण
    • गोक्षुरादि चूर्ण को गोक्षुरा, हरीतकी, पुनर्नवा जैसी जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है।
    • ये लिवर रोग के सामान्‍य लक्षण पीलिया को नियंत्रित करने में मदद करता है। इस औषधि से एडिमा, जलोदर और शरीर में पानी जमने (वॉटर रिटेंशन) की समस्‍या को भी ठीक किया जा सकता है।
       
  • गुडापिप्‍पली
    • गुडापिप्‍पली में आमलकी, त्रिकटु, कुष्‍ठा की जड़, हिंगु (हींग), पिप्‍पली, पुराना गुड़ आदि मौजूद है।
    • ये पाचक और वायुनाशक (पेट फूलने से राहत) के तौर पर कार्य करता है एवं विषाक्‍त पदार्थों को भी बनने से रोकता है।
    • इस औषधि का इस्‍तेमाल बढ़े हुए प्‍लीहा और लिवर, घाव, पेट फूलने, अपच और अन्‍य गैस्ट्रिक एवं आंतों के विकार के इलाज में किया जाता है।
       
  • वासा कंटकारी लेह
    • इस औषधि को वासा (अडूसा), त्रिकटु, गुड़, गुडूची, मुस्‍ता, पिप्‍पली की जड़ें, घी, पिप्‍पली, शहद और वंशलोचन आ‍दि से तैयार किया गया है।
    • ये शामक, भूख बढ़ाने, पाचन, वायुनाशक और कफ-निस्‍सारक (बलगम से राहत) का काम करता है।
    • वासा कंटकारी लेह का इस्‍तेमाल लिवर और प्‍लीहा के बढ़ने, खांसी, ब्रोंकाइटिस, अपच और बच्चों में बदहजमी (डिस्पेप्सिया ) को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है।

व्‍यक्‍ति की प्रकृति और कई कारणों के आधार पर चिकित्‍सा पद्धति निर्धारित की जाती है। उचित औषधि और रोग के निदान हेतु आयुर्वेदिक चिकित्‍सक से परामर्श करें।

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क्‍या करें

क्‍या न करें

जलोदर (पेट में पानी भरना) से ग्रस्‍त एक 63 वर्षीय वृद्ध व्‍यक्‍ति को इलाज के प्रथम स्‍तर पर विरेचन कर्म दिया गया। इसके बाद मरीज़ की स्थिति में सुधार के लिए वर्धमान पिप्‍पली रसायन का इस्‍तेमाल किया गया। अध्‍ययन के अंत में मरीज़ को जलोदर और लिवर में सूजन से पूरी तरह से राहत मिली।

अध्‍ययन के निष्‍कर्ष के अनुसार पिप्‍पली के ऊर्जादायक प्रभाव से भी जलोदर को नियंत्रित करने में मदद मिली। एक वर्ष तक मरीज़ पर नज़र रखी गई लेकिन उसमें दोबारा जलोदर रोग के कोई लक्षण नहीं पाए गए।

(और पढ़ें - लिवर को साफ और स्वस्थ कैसे रखें)

अनेक रोगों के इलाज के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍साएं सुरक्षित और असरकारी हैं। इसमें मरीज़ को जड़ी बूटी या औषधि देने से पहले प्रभावित दोष की जांच की जाती है। लिवर रोग को नियंत्रित करने की उपरोक्‍त चिकित्‍सा के दौरान कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी है। उदाहरण के तौर पर-

  • विरेचन पाचन अग्नि को कमजोर करता है इसलिए बढ़े हुए वात दोष की स्थिति में विरेचन कर्म की सलाह नहीं दी जाती है। कमजोर व्‍यक्‍ति, बच्‍चों, गर्भवती महिला और बुजुर्ग व्‍यक्‍ति को विरेचन नहीं देना चाहिए।
  • पिप्‍पली का खासतौर पर इस्‍तेमाल अत्‍यधिक पित्त की स्थि‍ति में सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए क्‍योंकि पिप्‍पली पित्त के स्‍तर को बढ़ा सकती है।

(और पढ़ें - लीवर बढ़ने के कारण)

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लिवर रोग के सबसे सामान्‍य कारणों में अत्‍यधिक दवाओं और शराब का सेवन शामिल है। आमतौर पर लिवर रोग पीलिया के रूप में सामने आता है। लिवर रोग के लक्षणों के इलाज के साथ-साथ जिगर को शक्‍ति प्रदान करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्‍सा की मदद ली जा सकती है।

ये लिवर के कार्य में भी सुधार लाने में मदद करती है। अत्‍यधिक दोष और अमा को साफ कर बीमारी को जड़ से खत्‍म किया जा सकता है। आयुर्वेदिक चिकित्‍सा के साथ स्‍वस्‍थ जीवनशैली और खानपान की सही आदतों को अपनाकर लिवर रोग को ठीक एवं स्‍वस्‍थ जीवन की ओर बढ़ा जा सकता है।

(और पढ़ें - लिवर फंक्शन टेस्ट क्या है)

Dr. Harshaprabha Katole

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Dr. Dhruviben C.Patel

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Dr Prashant Kumar

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आयुर्वेद
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Dr Rudra Gosai

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संदर्भ

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