आयुर्वेद में लिवर रोग को यकृत विकार बताया गया है। इसमें दवाओं, ड्रग्स और शराब पीने के कारण होने वाली लिवर से संबंधित कई समस्याओं को शामिल किया गया है। अधिकतर लिवर रोगों का सबसे पहला लक्षण पीलिया को माना जाता है।
विभिन्न लिवर रोगों को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक विरेचन कर्म (दस्त की विधि) की सलाह देते हैं। लिवर रोगों के इलाज में जिन जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है उनमें कालमेघ (हरा चिरायता), कुटकी, भृंगराज, दारुहरिद्रा, मकोय, पिप्पली, भूमिआमलकी, गुडूची, कुमारी आसव, भृंगराजासव, पुनर्नवासव, गोक्षुरादि चूर्ण, गुड़ पिप्पली और वासा कंटकारी लेह शामिल हैं।