किसी व्यक्ति की आंखों के रंग में अंतर को हेट्रोक्रोमिया के नाम से जाना जाता है। सामान्य रूप से हेट्रोक्रोमिया के कारण कोई समस्या नहीं होती है। आंखों के निर्माण के दौरान किसी प्रकार के दोष अथवा माता-पिता से मिले जीन के कारण आंखों के रंगों में भिन्नता देखने को मिल सकती है। वहीं जिन लोगों को सेंट्रल हेट्रोक्रोमिया की शिकायत होती है, उनके एक आंख के भीतर ही अलग-अलग रंग होते हैं। कुछ दुर्लभ मामलों में यह किसी रोग के लक्षण के रूप में भी सामने आ सकता है। कई प्रकार के जानवरों में हेट्रोक्रोमिया की स्थिति आम है। हालांकि, मनुष्यों में यह एक दुर्लभ स्थिति है। अमेरिका में करीब दो लाख लोग हेट्रोक्रोमिया से प्रभावित हैं।
हेट्रोक्रोमिया को इसके शाब्दिक अर्थ से और आसानी से समझा जा सकता है। हेट्रोक्रोमिया ग्रीक भाषा का शब्द है। यहां हेट्रोस का मतलब अलग जबकि क्रोमा का अर्थ रंग से है। यानी अलग-अलग रंग। आंखों के अलग-अलग रंगों की स्थिति को हेट्रोक्रोमिया इरडिस या हेट्रोक्रोमिया इरडिम के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो इंसानों में हेट्रोक्रोमिया इरडिस के कारण कोई नुकसान नहीं होता है, फिर भी यह किन कारणों से हो रहा है यह जानना जरूरी है। नेत्र विशेषज्ञ की मदद से इस स्थिति का निदान कर कारणों के बारे में जाना जा सकता है। अंतर्निहित कारणों को ठीक करके इस स्थिति का इलाज किया जा सकता है।
इस लेख में हम हेट्रोक्रोमिया इरडिस के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानेंगे।