कोर ट्रायट्रिएटम क्या है?
कोर ट्रायट्रिएटम एक अत्यधिक दुर्लभ कंजेनिटल (जन्म से मौजूद) हृदय विकृति है। आमतौर पर मानव का हृदय चार चैम्बर (खंडों) में विभाजित होता है जिसमें प्रत्येक की दो एट्रिया होती है। ये दोनों एक दूसरे को एट्रियल सेप्टम से अलग करते हैं। अन्य दो चैम्बर जिन्हें वेंट्रिकल कहते हैं, वे एक दूसरे को सेप्टम से अलग करते हैं। कोर ट्रायट्रिएटम एक ऐसी स्थिति है जिसमें हृदय के बाएं एट्रियम के ऊपर एक अतिरिक्त छोटा चैम्बर बना होता है। पल्मोनरी नसें जो कि फेफड़ों में से रक्त ला रही होती हैं, उनसे रक्त इस अतिरिक्त ‘थर्ड एट्रियम’ में चला जाता है। फेफड़ों से हृदय तक रक्त का बहाव (बाएं एट्रियम और वेंट्रिकल से होते हुऐ) इस अतिरिक्त चैम्बर के कारण धीमा पड़ जाता है। कोर ट्रायट्रिएटम स्वयं ही कंजेस्टिव हार्ट फेलियर या खून में पूरी तरह से रुकावट पैदा कर सकता है।
लक्षण
कोर ट्रायट्रिएटम के लक्षण मुख्य रूप से इस पर निर्भर करते हैं कि असामान्य रूप से बने हुए अतिरिक्त एट्रियम और हृदय के बाएं चैम्बर के बीच में मौजूद छिद्र का आकार कितना है। यदि छिद्र छोटा है तो लक्षण जन्म के बाद से लेकर दो वर्ष में दिखने लग सकते हैं जिनमें निम्न शामिल हैं:
- असामान्य रूप से तेज सांस लेना (टेकप्निया)
- घरघराहट महसूस होना
- खांसी होना
- फेफड़ों में असामान्य रूप से द्रव्य का जमाव (पल्मोनरी कंजेस्शन)
यदि हृदय का आकार बड़ा (कार्डियोमेगाली) हो रहा है, तो इसके परिणामस्वरूप कंजेस्टिव हार्ट फेलियर हो सकता है। इससे आर्टरी में असामान्य रूप से दबाव बढ़ जाता है, जो कि हृदय में फेफड़ों का दबाव बढ़ा देता है। कुछ नवजात शिशुओ में ट्रायट्रिएटम के कारण उनके हृदय से असामान्य आवाजें भी आने लगती हैं, जिसे "हार्ट मर्मर" कहा जाता है।
बड़े लोगों में कोर ट्रायट्रिएटम के निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
- शरीर के कुछ भागों में असामान्य रूप से सूजन आना
- सांस लेने में दिक्कत या दर्द
- हृदय की धड़कन तेज होना (टैकीकार्डिया)
- फेफड़ों में अत्यधिक द्रव का जमा हो जाना
- फेफड़ों में सूजन (निमोनिया)
- ब्रोंकाइटिस बार-बार हो सकता है जिसके कारण कंजेस्टिव हार्ट फेलियर की स्थिति हो सकती है।
कोर ट्रायट्रिएटम से ग्रस्त लोगों को हृदय की नाजुक झिल्लियों के आस-पास में बैक्टीरियल संक्रमण (एंडोकार्डिटिस) होने का खतरा अधिक होता है।
कारण
कोर ट्रायट्रिएटम किस कारण से होता है, इसकी जांच की जा रही है। आज तक इसके सटीक कारण का पता नहीं लग पाया है।
परीक्षण
कोर ट्रायट्रिएटम का परीक्षण आमतौर पर इमेजिंग तकनीक द्वारा किया जाता है जैसे मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) और इकोकार्डियोग्राफी (इसी) व अन्य प्रक्रिया जैसे कार्डियक कैथेटराइजेशन आदि। कार्डियक कैथेटराइजेशन में एक लंबी ट्यूब (कैथीटर) को लंबी नस में डाला जाता है और सीधे हृदय से जोड़ दिया जाता है। जिससे डॉक्टर को हृदय में हुए किसी भी विकार का पता लगाने और हृदय में प्रवाहित हो रहे रक्त की गति का भी पता करने में मदद मिलती है। एंजियोग्राफी एक बहुत ही लाभदायक परीक्षण प्रक्रिया है इससे डॉक्टर को हृदय का एक विस्तृत एक्स-रे देखने में मदद मिलती है। जिन बच्चों को कोर ट्रायट्रिएटम होता है उनके भी ईकेजी के पैटर्न असामान्य आते है।
इलाज
जिन बच्चों को कोर ट्रायट्रिएटम होता है उन्हें अस्पताल ले जाना चाहिए ताकि एक उचित परीक्षण और कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी की जा सके। बहुत से लोग जिन्हें कोर ट्रायट्रिएटम होता है उन्हें छोटी उम्र में ही सर्जरी की जरूरत पड़ती है, आमतौर पर एक वर्ष की उम्र से पहले ही सर्जरी करवाई जानी चाहिए।
सर्जरी से पहले कोर ट्रायट्रिएटम से जुड़े कंजेस्टिव हार्ट फेलियर को द्रव की मात्रा कम कर के नियंत्रित किया जाता है। ऐसा डाईयुरेटिक दवाओं द्वारा द्रव के आयतन को कम कर के किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर आहार में नमक की मात्रा को कम करके और तरल पेय पदार्थों के सेवन को सीमित करके भी द्रव की वोल्यूम को कम किया जा सकता है। हृदय की गति को कम करने और हृदय के संकुचन के बल को बढ़ाने के लिए डिजिटेलिस (Digitalis) नामक दवा भी दी जा सकती है। ऑक्सीजन थेरेपी भी लाभदायक साबित हो सकती है।
कोर ट्रायट्रिएटम से ग्रस्त लोगों को एंडोकार्डिटिस (हृदय के चारों-ओर बनी पतली झिल्ली में बैक्टीरियल संक्रमण) होने का खतरा होता है, इसलिए श्वसन से संबंधित किसी भी संक्रमण का जल्द से जल्द इलाज करवाना चाहिए। प्रभावित लोगों को डेंटल प्रक्रियाएं या अन्य सर्जिकल प्रक्रियाएं करवाने से पहले (रूट कैनाल आदि) एंटीबायोटिक दिए जाने चाहिए ताकि घातक संक्रमणों से बचा जा सके।