बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर क्या है?
छोटे बच्चों में बाइपोलर डिसऑर्डर होना संभव है, लेकिन यह ज्यादातर बड़े बच्चों व किशोरों (टीनएजर्स) को प्रभावित करता है। हालांकि यह किसी भी उम्र के बच्चों को अपनी चपेट में ले सकता है। बाइपोलर डिसऑर्डर के कारण मेनिया (बहुत उत्साहित या ऊर्जावान होना) के साथ-साथ डिप्रेशन जैसा एहसास होता है।
बच्चों का कभी रो देना या शैतानी करना आम बात है और ज्यादातर मामलों में इस तरह का व्यवहार किसी ऐसी मानसिक स्वास्थ्य समस्या का संकेत नहीं होता है जिसका इलाज करवाने की आवश्यकता हो।
आमतौर पर सभी बच्चे कभी रोते हैं तो कभी गुस्सा करते हैं, कभी बहुत ज्यादा शैतानी करते हैं तो कभी जिद करने लगते हैं। बच्चों में ये सब होना सामान्य बात है, लेकिन यदि यह लक्षण बच्चों में बहुत ज्यादा या बार-बार दिख रहे हैं या इनकी वजह से कोई परेशानी हो रही है तो यह किसी स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है।
बच्चों व किशोरों में बाइपोलर डिसऑर्डर के लक्षण
बाइपोलर डिसऑर्डर के कुछ संकेत व लक्षण इस प्रकार हैं:
- बहुत ज्यादा मूड बदलना जो कि सामान्य न लगे
- जरूरत से ज्यादा सक्रिय होना, बिना सोचे-समझे अचनाक से कुछ करना, आक्रामक होना या दूसरों के साथ गलत व्यवहार करना
- नींद न आना
- दिन के अधिकांश समय उदास या चिड़चिड़ा रहना, लगभग हर दिन अवसादग्रस्त रहना
- बड़े बच्चों और किशोरों में आत्महत्या करने के विचार आना
बच्चों व किशोरों में बाइपोलर डिसऑर्डर के कारण
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में यह विकार दुर्लभ ही होता है और कई बार ये विकार न होने पर भी बच्चे को इसका शिकार समझ लिया जाता है, जबकि कुछ विशेषज्ञों का ऐसा मानना नहीं है। इसलिए इस स्थिति में यह कहना मुश्किल है कि यह विकार बच्चों में आम है। अत: ये लक्षण दिखने पर किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने की गलती न करें। यदि आपके बच्चे में इस बीमारी का निदान किया गया है, तो इसका इलाज शुरू करने से पहले किसी और की राय जरूर लें।
बच्चों व किशोरों में बाइपोलर डिसऑर्डर का इलाज
अगर डॉक्टर आपके बच्चे में बाइपोलर डिसऑर्डर का निदान करते हैं तो निम्न विकल्पों से इलाज किया जा सकता है:
- दवाइयां समय पर लेते रहें:
बच्चे को समय पर दवा देते रहें। दवा का समय याद रखने के लिए आप मोबाइल या घड़ी में टाइमर या नोट आदि की मदद ले सकते हैं। यदि बच्चे को स्कूल के समय में दवा लेनी है, तो स्कूल टीचर से इस बारे में बात करें और बच्चे को समय पर दवा देने के लिए कहें।
- हानिकारक प्रभावों पर नजर रखें:
इस बीमारी में इस्तेमाल की जाने वाली अधिकांश दवाइयों का परीक्षण मूल रूप से वयस्कों पर किया गया था। बच्चों और किशोरों पर केवल कुछ ही अध्ययन किए गए हैं। इसलिए बच्चों में दवा के साइड इफेक्ट को लेकर सतर्क रहें।
- बच्चे के शिक्षकों से बात करें:
कुछ मामलों में इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों को स्कूल में विशेष देखभाल की जरूरत पड़ सकती है। बच्चे के शिक्षकों या स्कूल के प्रिंसिपल को इस बीमारी के बारे में पता होना जरूरी है।
- रूटीन बनाए रखें:
इस विकार से ग्रस्त बच्चों को एक नियमित रूटीन से फायदा हो सकता है। बच्चों को रोज एक ही समय पर सुबह उठने, खाना खाने, व्यायाम करने और सोने में मदद करें।