विटामिन ई की कमी के साथ अटैक्सिया क्या है?
विटामिन ई की कमी के साथ अटैक्सिया (एवीईडी) एक विकार है जो कि आहार से प्राप्त विटामिन ई को उपयोग करने की शरीर की क्षमता को बाधित करता है। यह रोग समय के साथ बढ़ता है और मोटर कंट्रोल एवं मूवमेंट (इच्छा से मांसपेशियों द्वारा कोई कार्य कर पाना) को प्रभावित करता है।
इस रोग की वजह से ऐसे कार्य करने में परेशानी होती है, जिनमें मांसपेशियों या शारीरिक गतिविधियों की जरूरत पड़ती है। विटामिन ई की कमी की वजह से नसों से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं जैसे कि बोलने या शारीरिक गतिविधि करते समय तालमेल बैठाने में कठिनाई और पैरों में रिफ्लेक्सेस (छूने पर दी गई प्रतिक्रिया) महसूस न होना।
हालांकि, इस स्थिति से ग्रस्त कुछ मामलों में रेटिनिटिस पिगमेंटोसा नामक आंखो से संबंधित विकार भी होता है, जिसमें आंखों की रोशनी जा सकती है। विटामिन ई की कमी के साथ अटैक्सिया से जूझ रहे ज्यादातर लोगों को 5 से 15 साल की उम्र के बीच शारीरिक गतिविधियों में तालमेल बैठाने में दिक्कत आती है और यह समस्या उम्र बढ़ने के साथ-साथ खराब हो जाती है।
विटामिन ई की कमी के साथ अटैक्सिया के लक्षण
इस बीमारी के लक्षण और संकेत बचपन और किशोरावस्था में अंतिम चरणों में, जाती या नस्ल के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।
एवीईडी के लक्षणों में डिसअर्थिया (बोलते समय इस्तेमाल होने वाली मांसपेशियों में कमजोरी या सामंजस्य बैठाने में दिक्कत), गतिविधियों में तालमेल बैठाने में कठिनाई, हाथ-पैर सुन्न होना (पेरिफेरल न्यूरोपैथी), पैर का धीरे-धीरे कमजोर होना शामिल है। कुछ मामलों में रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (आंखों के पीछे का हिस्सा) के प्रभावित होने से आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम हो सकती है।
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर बचपन या किशोरावस्था के दौरान शुरू होते हैं और उम्र बढ़ने के साथ खराब हो जाते हैं। इसमें वयस्कता की शुरुआत में व्हीलचेयर की आवश्यकता पड़ सकती है।
विटामिन ई की कमी के साथ अटैक्सिया का कारण
एवीईडी टीटीपीए नामक जीन में गड़बड़ी के कारण होता है। टीटीपीए जीन α-टोकोफेरोल ट्रांस्फर (α-टीटीपी) नामक प्रोटीन बनाने के निर्देश देता है। यह प्रोटीन लिवर और मस्तिष्क में पाया जाता है। यह प्रोटीन आहार से प्राप्त विटामिन ई को पूरे शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों तक पहुंचाने का कार्य नियंत्रित करता है।
जब टीटीपीए जीन को किसी कारण से नुकसान पहुंचता है, तो पूरे शरीर में विटामिन ई नहीं पहुंच पाता है। विटामिन ई काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह तंत्रिका प्रणाली (न्यूरोलॉजिकल सिस्टम) की कोशिकाओं को खतरनाक अणुओं से बचाता है। इन अणुओं को फ्री रेडिकल्स (ऐसे तत्व जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं) के नाम से जाना जाता है।
विटामिन ई की कमी के साथ अटैक्सिया का इलाज
एवीईडी के लिए उपचार में विटामिन ई सप्लीमेंट शामिल हैं। अगर लक्षण शुरू होने से पहले इन्हें दिया जाए, तो यह एवीईडी को विकसित होने से रोक सकते हैं। यदि विटामिन ई सप्लीमेंट एवीईडी विकसित होने के बाद दिए जाएं, तो इससे कुछ न्यूरोलॉजिकल लक्षणों को ठीक किया जा सकता है।
अगर शुरुआती चरण में ही उपचार शुरू कर दिया जाए, तो कुछ लक्षणों जैसे कि अटैक्सिया और बौद्धिक क्षमता में आई कमी को ठीक किया जा सकता है। वृद्ध मरीजों में उपचार से बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है लेकिन कुछ लक्षण बने रहते हैं।
इस विषय पर किया गया एक शोध इस बात की ओर इशारा करता है कि अगर लक्षण दिखने से पहले ही टीटीपीए जीन में गड़बड़ी वाले लोगों को विटामिन ई ट्रीटमेंट दे दी जाए तो इससे एवीईडी के लक्षण विकसित नहीं होंगे।