सर्दियों का मौसम आते ही बच्चों को कई तरह के रोग होना शुरू हो जाते हैं। सर्दियों में बच्चों को सर्दी जुकाम होना एक आम समस्या है। लेकिन इसके साथ ही बच्चों को फ्लू होने का खतरा भी बढ़ जाता है। कई बार माता पिता फ्लू और सर्दी जुकाम के बीच अंतर ही नहीं कर पाते हैं। वैसे यह दोनों ही समस्या अलग-अलग होती हैं। सर्दी जुकाम ऊपरी श्वसन तंत्र (नाक, मुंह और गला) में कई तरह के वायरस से संक्रमण के कारण होता है, जबकि फ्लू विशेष तरह के इन्फ्लूएंजा समूह के वायरस की वजह से होता है। फ्लू सर्दी जुकाम की अपेक्षा ज्यादा गंभीर रोग माना जाता है, जो मुख्य रूप से 5 साल से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों के लिए बड़ी समस्या का कारण होता है।

कई बार फ्लू के कारण निमोनिया होने की संभावना बढ़ जाती है। इस लेख में आपको बच्चों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही आपको बच्चों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के प्रकार, बच्चों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के लक्षण, बच्चों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के कारण, बच्चों का फ्लू (इन्फ्लूएंजा) से बचाव और इलाज आदि के बारे में भी विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है। 

(और पढ़ें - फ्लू के घरेलू उपाय)

  1. बच्चो में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के प्रकार - Bacho me flu (influenza) ke prakar
  2. बच्चों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के लक्षण - Bacho me flu (influenza) ke lakshan
  3. बच्चों में फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के कारण - Bacho me flu (influenza) ke karan
  4. बच्चों का फ्लू (इन्फ्लूएंजा) से बचाव - Bacho ka flu (influenza) se bachav
  5. बच्चों के फ्लू (इन्फ्लूएंजा) का इलाज - Bacho ke flu (influenza) ka ilaj

फ्लू (इन्फ्लूएंजा) के वायरस के चार प्रकार (ए, बी, सी और डी) होते हैं। जिसको नीचे बताया गया है।

  • फ्लू (इन्फ्लूएंजा) का वायरस ए और बी:
    आमतौर पर सर्दियों में फ्लू का वायरस ए और बी संक्रमण की वजह बनता है।  
  • वायरस सी:
    फ्लू के सी प्रकार के वायरस से श्वसन तंत्र में हल्के दुष्प्रभाव होते हैं। इससे संक्रमित होने के बाद भी व्यक्ति को कई बार कोई लक्षण महसूस नहीं होते हैं। फ्लू का यह प्रकार महामारी का कारण नहीं बनता है। (और पढ़ें - नवजात शिशु के बुखार का इलाज)
  • वायरस डी:  
    डी प्रकार का वायरस मुख्य रूप से जानवरों को प्रभावित करते है और यह व्यक्तियों को संक्रमित नहीं करता है।

(और पढ़ें - स्वाइन फ्लू का इलाज)   

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फ्लू या इन्फ्लूएंजा को श्वसन रोग कहा जाता है, लेकिन जब बच्चे को फ्लू होता है तो उसके पूरे शरीर में इसके दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। आमतौर पर वायरस की चपेट में आने के दो से चार दिनों बाद इसके लक्षण दिखाई देते है और यह लक्षण तेजी से बढ़ते हैं। नवजात शिशु में फ्लू के लक्षणों और संकेतों को पहचान पाना मुश्किल होता है और कई बार इसको बैक्टीरियल इन्फेक्शन समझ लिया जाता है। इसके साथ ही 6 महिनों से कम आयु के शिशुओं को बेहद ही कम मामलों में फ्लू की समस्या होती है। बच्चों में फ्लू के अन्य लक्षणों को आगे बताया जा रहा है।

बच्चे को डॉक्टर के पास तुरंत कब ले जाएं

यदि बच्चे को निम्न तरह के लक्षण महसूस हो तो उसको जल्द से जल्द डॉक्टर के पास लेकर जाएं:

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बच्चों में इन्फ्लूएंजा या फ्लू होने का मुख्य कारण वायरस होता है। फ्लू के तीनों प्रकार के वायरस (ए, बी और सी) इस संक्रमण की वजह बनते हैं। इसमें ए और बी प्रकार के वायरस हर साल फ्लू और इन्फ्लूएंजा का कारण होता हैं, जबकि सी प्रकार के वायरस से हल्के लक्षण महसूस होते हैं और इसके कम मामले देखने को मिलते हैं।

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इन्फ्लूएंजा का वायरस सामान्यतः हवा के जरिए एक बच्चे से दूसरे तक फैलता है। फ्लू से संक्रमित बच्चा जब छींकता या खांसता है, तो छिंक में मौजूद वायरस हवा के माध्यम से अन्य बच्चों को भी संक्रमित कर देते हैं। ये वायरस बाहर के माहौल में कम समय के लिए जीवित रह सकते हैं। फ्लू से संक्रमित व्यक्ति की चीजें छूने के बाद जब बच्चा हाथों को अपने चेहरे या नाक पर लगता है तो इससे भी फ्लू का वायरस बच्चों को संक्रमित कर देता है। 

(और पढ़ें - स्वाइन फ्लू का इलाज)

क्या फ्लू से बच्चों में अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं

बच्चों में फ्लू के बाद अन्य समस्या जैसे साइनस इन्फेक्शन, कान का संक्रमण और निमोनिया आदि होने की संभावनाएं अधिक होती हैं। अगर बच्चे को चार दिनों से ज्यादा बुखार रहे तो ऐसे में आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए। साथ ही अगर बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो, कान में दर्द हो, सिर और नाक में भारीपन लगे और अन्य गंभीर समस्या होने लगे तो तुरंत डॉकटर से संपर्क करें। दो साल से कम आयु के बच्चों में फ्लू की जटिलताएं होने की संभावनाएं अधिक होती है।  

(और पढ़ें - वायरल इन्फेक्शन का इलाज)      

बच्चों का फ्लू से बचाव करने के लिए आपको कई उपाय अपनाने होते हैं। इसके कुछ उपायों को निम्नतः बताया गया है।

  • बच्चे के हाथों को साबुन से साफ करें या अल्कोहल युक्त हैंड सेनिटाइजर का उपयोग करें।
  • बच्चे को बिना हाथ धोए मुंह, नाक या आंखों पर हाथ ना लगाने दें। (और पढ़ें - शिशु की खांसी के घरेलू उपाय)
  • बच्चे को फ्लू से संक्रमित व्यक्ति से दूर रखें, क्योंकि खांसने और छींकने से फ्लू के वायरस करीब 6 फीट तक मौजूद लोगों को अपनी चपेट में ले सकते हैं। (और पढ़ें - सूखी खांसी का इलाज)
  • बच्चों के खिलौनों को साफ रखें। 
  • 6 माह से अधिक आयु के बच्चे को फ्लू से बचाव का टीका लगाना चाहिए। अगर बच्चा टीका देने की निश्चित आयु से कम हो तो इस बात का ध्यान दें कि बच्चे के आसपास रहने वाले लोगों को ये टीका अवश्य लगा हो। इससे बच्चे को फ्लू होने की संभावना कम हो जाती है। 

(और पढ़ें - बच्चों का टीकाकरण चार्ट)

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बच्चों में होने वाले फ्लू का इलाज कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे बच्चे की आयु व पहले की स्वास्थ्य स्थिति आदि। फ्लू के इलाज का मुख्य उद्देश्य लक्षणों की गंभीरता को कम करना होता है। यदि डॉक्टर को लगे कि बच्चे को फ्लू होने पर अन्य समस्याएं या जटिलताएं भी हो सकती हैं, तो वह बच्चे को एंटीवायरल दवाएं जैसे बैलोक्सावीर मारबोक्सिल (baloxavir marboxil : Xofluza), ओसिल्टामिवीर (Oseltamivir: Tamiflu) व जानामिवीर (Zanamivir :  relenza) दे सकते हैं।

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यह एंटीवायरल दवाएं रोग की अवधि को करीब दो दिनों तक कम कर देती हैं। कई मामलों में यह दवाएं वायरस को बढ़ाने से रोक देती है, जिससे यह रोग फैलता नहीं है। फ्लू से बचाव का सबसे बेहतर तरीका टीकाकरण है।

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इस रोग में एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं करती हैं, क्योंकि यह केवल बैक्टीरियल इन्फेक्शन का इलाज करती हैं, जबकि फ्लू एक वायरल इन्फेक्शन होता है।  

बच्चों के फ्लू का घरेलू इलाज

फ्लू के लक्षण एक सप्ताह से अधिक समय तक भी रह सकते हैं। घेरलू देखभाल से इस दौरान बच्चे को होने वाले दर्द को कम किया जा सकता है। इसके उपाय आगे बताए गए हैं।

  • बच्चे को आवश्यकतानुसार आराम करने दें। (और पढ़ें - बच्चों की इम्यूनिटी कैसे बढ़ाएं​)
  • बच्चे को पसंदीदा व हेल्दी ड्रींक्स पीने के लिए दें, ताकि उसके शरीर में पानी की कमी न हो।
  • बच्चे के कमरे में ह्युमिडिटीफायर का उपयोग करें। इस उपकरण से बच्चे के कमरे में नमी बनी रहती है, जिससे उसको सांस लेने में आसानी होती है।
  • फ्लू होने पर बच्चे की नाक बलगम से भर जाती है, ऐसे में शिशु मुहं से सांस नहीं ले पाते हैं। वहीं मुंह से सांस लेते समय खाने का निवाला अंदर निगलना बच्चों के लिए मुश्किल हो जाता है। ऐसे में खाना खाने से पहले और सोने से पहले बच्चें की नाक को अंदर से अच्छी तरह से साफ करें। शिशुओं की नाक को साफ करने के लिए कई तरह के सक्शन बल्ब आते हैं, जिनकी मदद से उनकी बंद नाक को आसानी से साफ किया जा सकता है। 

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