तनाव और चिंता को दूर करने के लिए आयुर्वेद में कई प्रकार की थेरेपी मौजूद हैं. ऐसी ही एक थेरेपी का नाम पिज्हिचिल है. इसे सर्वांगधारा, काया सेका और थिलाधारा के नाम से भी जाना जाता है. पिज्हिचिल एक मलयालम शब्द है, जिसका अर्थ निचोड़ना होता है.

इसमें औषधीय तेल को मरीज के शरीर पर एक कपड़े से निचोड़कर डाला जाता है, जिसके बाद एक हल्की मालिश दी जाती है. इससे चिंता, दर्द व तनाव को कम करने के अलावा मस्तिष्क को शांति और आराम देने में मदद मिलती है.

आज इस लेख में आप पिज्हिचिल का अर्थ, प्रक्रिया, फायदे, नुकसान व सावधानियों के बारे में विस्तार से जानेंगे-

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  1. क्या है सर्वांगधारा?
  2. सर्वांगधारा की प्रक्रिया
  3. पिज्हिचिल के फायदे
  4. पिज्हिचिल के नुकसान
  5. पिज्हिचिल में सावधानियां
  6. सारांश
सर्वांगधारा के डॉक्टर

यह पारंपरिक आयुर्वेदिक थेरेपी है, जिसमें गुनगुने औषधीय तेलों की धाराओं को प्रवाहित करके पूरे शरीर की कोमल मालिश की जाती है. पुराने समय में यह थेरेपी विशेष रूप से राजाओं महाराजाओं को दी जाती थी. इसलिए इसे "अभिजात वर्ग के लिए उपचार" या "आयुर्वेदिक चिकित्सा का राजा" के तौर पर भी जाना जाता था.

पिज्हिचिल पंचकर्म आयुर्वेदिक उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो शरीर के ब्लड सर्कुलेशन में सुधार और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है.

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पिज्हिचिल की प्रक्रिया शुरू होने से पहले व्यक्ति की शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में पता लगाया जाता है, इसके बाद यह प्रक्रिया शुरू की जाती है. यह पूरी प्रक्रिया लगभग 60-90 मिनट तक चल सकती है, जो इस प्रकार है-

  • सर्वांगधारा की प्रक्रिया रोगी के सिर और शरीर पर एक स्थिर और निरंतर धारा में औषधीय तेल डालने से शुरू होती है.
  • उपचार के लिए उपयोग किए जाने वाले औषधीय तेल का प्रकार मरीज की आवश्यकताओं और चिकित्सा स्थितियों पर निर्भर करता है. आमतौर पर चंदनबाला लक्ष्मी तेल, क्षीरबाला तेल, धनवंतरम तेल, शतावरी तेल व यष्टिमधु तेल को सबसे प्रभावी माना जाता है.
  • वैसे तो इसमें पूरे शरीर की मालिश शामिल है, लेकिन शरीर के एक निश्चित हिस्से पर भी लक्षित किया जा सकता है, जिसे 'इखंगा पिज्हिचिल' कहा जाता है. वहीं, शरीर के आधे हिस्से पर इस्तेमाल होने पर 'अर्धांग पिज्हिचिल' कहा जाता है.
  • मसाज के दौरान मरीज को कई पोजीशन में रहना होता है, जिसमें बैठना, पेट के बल लेटना, फिर पीठ के बल, दाहिनी ओर लेटना और फिर बाईं ओर होना शामिल है.
  • पूरे शरीर की मालिश करने के लिए दो से चार लोगों की आवश्यकता होती है.

इस थेरेपी का एक सेशन अच्छे परिणाम दे सकता है, लेकिन लंबे समय से चिंता या फिर अन्य समस्याओं से ग्रसित व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से लाभ लेने के लिए कम से कम 7 सेशन लेने की सलाह दी जाती है, ताकि मरीज को अच्छे से ठीक किया जा सके. कभी-कभी पिज्हिचिल थेरेपी से गुजरने वाले व्यक्ति को उसके बाद शिरोधारा उपचार भी दिया जाता है, जहां उसके माथे पर लगातार औषधीय तेल डाला जाता है.

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पिज्हिचिल थेरेपी तनाव और चिंता को जड़ से दूर करने लिए सबसे फायदेमंद आयुर्वेदिक थेरेपी मानी जाती है. इसके अलावा, यह थेरेपी कई समस्याओं जैसे गठिया, जोड़ों में दर्द और मांसपेशियों के विकार को दूर करने में प्रभावी होती है. आइए, जानते हैं पिज्हिचिल थेरेपी के कुछ अन्य लाभ के बारे में -

  • यह गठिया के लिए एक लाभकारी थेरेपी है.
  • यह जोड़ों और मांसपेशियों के विकारों को दूर करने में फायदेमंद है.
  • इस थेरेपी के माध्यम से न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी ठीक की जा सकती हैं.
  • यह उच्च रक्तचाप और मधुमेह की समस्या में भी लाभकारी है.
  • इससे मस्तिष्क को शांति और आराम प्रदान होता है.
  • इससे स्वस्थ व मुलायम त्वचा पाने में मदद मिलती है.

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प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा किए जाने पर सर्वांगधारा का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है. अगर इस थेरेपी को गलत तरीके से किया जाता है, तो मरीज को निम्न नुकसान भी हो सकते हैं -

  • गलत तरीके से थेरेपी लेने से त्वचा में जलनदाद की समस्या हो सकती है.
  • कुछ लोगों को इस थेरेपी को लेने के बाद थकान महसूस हो सकती है.
  • इससे कर्कश आवाज होने की समस्या हो सकती है.
  • पिज्हिचिल थेरेपी के चलते जोड़ों में दर्द व सूजन कम होने की जगह बढ़ भी सकती है.
  • इससे उल्टी, रक्तस्रावबुखार जैसी अन्य जटिलताएं भी हो सकती हैं.

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पिज्हिचिल आयुर्वेदिक थेरेपी आमतौर पर एक प्राकृतिक और सुरक्षित थेरेपी मानी जानी जाती है, लेकिन इसे करते समय सावधानी बरतना जरूरी है, ताकि मरीज को पूरा लाभ मिल सके -

  • पिज्हिचिल थेरेपी के लिए लगभग तीन से चार लीटर तेल की आवश्यकता होती है, जिसका पूरी प्रक्रिया के दौरान हल्का गुनगुना रहना जरूरी है.
  • पिज्हिचिल थेरेपी प्रक्रिया पूरा होने के बाद, ठंड के तत्काल संपर्क से बचने के लिए देखभाल सुनिश्चित की जाती है.
  • पिज्हिचिल थेरेपी में मालिश आमतौर पर सुबह के साथ-साथ शाम को भी की जाती है, जिसके बाद आपको गर्म या गुनगुना स्नान दिया जाता है.
  • चूंकि थेरेपी आपके दिमाग और शरीर के लिए काफी सुखदायक है, इसलिए प्रक्रिया के बाद आपको रात की अच्छी नींद या आराम मिलता है.
  • पिज्हिचिल थेरेपी के दौरान मांसपेशियों को ढीला रखें.
  • इस थेरेपी के दौरान हल्का भोजन लें.
  • भारी शारीरिक और मानसिक काम से परहेज करें.
  • थेरेपी मसाज के बाद स्नान लेने से पहले 1 घंटे तक विश्राम करें.
  • योग, वॉकिंगमेडिटेशन जैसी गतिविधियों में सक्रिय रहें.

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तनाव और चिंता को दूर करने के लिए पिज्हिचिल आयुर्वेदिक थेरेपी एक सुरक्षित और असरदार उपचार विकल्प है. इस थेरेपी में औषधीय तेल को शरीर पर एक कपड़े से निचोड़ कर डाला जाता है, जिसके बाद एक हल्की मालिश दी जाती है. इससे तनाव व चिंता दूर करने अलावा जड़ों और मांसपेशियों के विकारों को कम करने व मस्तिष्क को आराम देने में भी मदद मिलती है. हालांकि, थेरेपी के दौरान हल्का भोजन लेना चाहिए और साथ में योग व वॉकिंग जैसी गतिविधियों में सक्रिय रहना चाहिए. पिज्हिचिल थेरेपी लेने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें.

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