आयुर्वेद का सिद्धांत है कि लोग एक विशिष्ट अवस्था के साथ पैदा होते हैं, जिसे प्रकृति कहा जाता है। गर्भाधान के समय स्थापित प्रकृति को भौतिक और मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के एक अनोखे संयोजन के रूप में देखा जाता है जो प्रत्येक व्यक्ति के कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है।
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जीवन भर, व्यक्ति की अंतर्निहित प्रकृति समान रहती है। हालांकि, व्यक्ति की प्रकृति दिन और रात, मौसमी बदलाव, आहार, जीवन शैली तथा विभिन्न आंतरिक, बाहरी व पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होती रहती है। आयुर्वेद बीमारी से बचाव पर बहुत जोर देता है। इसके लिए दैनिक और मौसमी आधार पर उचित आहार नियम के माध्यम से स्वास्थ्य बनाए रखने की सलाह देता है, जिससे व्यक्ति की प्रकृति में संतुलन बना रहता है।
आयुर्वेद कहता है कि तीन गुण होते हैं जिनसे व्यक्ति की प्रकृति की विशेषताएं निर्धारित होती हैं। इन तीन गुणों को “दोष” कहा जाता है। इन दोषों को वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है। तीनों गुणों के व्यक्ति के शारीरिक कार्यों पर विशेष प्रभाव होते हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा के विद्वानों का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति में तीन दोषों का एक नपा-तुला संतुलन है। व्यक्तिगत दोष लगातार परिवर्तित होते रहते हैं। ये व्यक्ति के भोजन, व्यायाम और अन्य कारकों से प्रभावित होते हैं।
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विद्वानों का यह भी मानना है कि किसी दोष के असंतुलन से उस दोष से संबंधित लक्षण उत्पन्न होते हैं, ये लक्षण किसी अन्य दोष के असंतुलन से पैदा होने वाले लक्षणों से भिन्न होते हैं। कई कारक जैसे खराब भोजन, बहुत कम या बहुत अधिक शारीरिक अथवा मानसिक तनाव, केमिकल्स या रोगाणु आदि दोषों में असंतुलन का कारण बन सकते हैं।
दोषों में संतुलन की तरह ही, सात धातु या सप्तधातु में एक संतुलित स्थिति व्यक्ति के स्वास्थ्य का निर्धारण करने के लिए महत्वपूर्ण पैरामीटर है। ये धातु शरीर की ऊतक प्रणाली है और सात धातु में से प्रत्येक का परस्पर संबंध होता है। इनको रस धातू (प्लाज्मा और लसीका तरल पदार्थ, स्तन ग्रंथियों और इनके तरल पदार्थ तथा मासिक धर्म प्रवाह से बना है), रक्त धातू (लाल रक्त कोशिकाओं, रक्त वाहिकाओं और मांसपेशियों के टेंडन से बना है), मांस धातू (मांसपेशियों और त्वचा से बना है), मेद धातू (वसा, संयोजी ऊतकों और त्वचा के नीचे के वसायुक्त ऊतकों से बना है), अस्थि धातू (हड्डियों और दांतों से बना है), मज्जा धातू (तंत्रिका ऊतकों और अस्थि मज्जा से बना है), शुक्र धातू (प्रजनन द्रव्यों से बना है) के नाम से जाना जाता है।
प्रत्येक धातु को पोषण आहार रस (पोषक तत्वों) से मिलता है, जो फिर अगले धातु को दिया जाता है। प्रत्येक धातु शरीर से विशिष्ट अपशिष्ट उत्पादों जैसे कि खराब सांस, आँसू, श्लेष्म और पाचन पित्त को बाहर निकालता है। धात्वग्नि (चयापचय ऊर्जा) में धातु अपने कार्य का फैसला करते हैं।
सभी धातु तीन में से किसी एक दोष द्वारा नियंत्रित होते हैं। उदाहरण के लिए, कफ दोष रस, मांस, मेद और शुक्र धातुओं को नियंत्रित करता है। पित्त दोष मज्जा और रक्त धातुओं को नियंत्रित करता है और वात दोष अस्थि धातु को नियंत्रित करता है।
ओजस सभी धातुओं का अंतिम सार है और हमारी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का आधार है। यह शरीर के हर हिस्से में व्याप्त है। ओजस कम होने के कारण चिंता, भय, खुशी में कमी, खराब रंगत, संवेदी अंग में दर्द, दुर्बलता, प्रतिरक्षा प्रणाली संबंधी विकार जैसे लक्षण होते हैं।
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