ज्ञान (चिन) मुद्रा का अर्थ है, 'अंतर्ज्ञान की स्थिति'। चिन शब्द 'चित' से बना है, जिसका अर्थ है, 'चेतना'। इस प्रकार ज्ञान (चिन) मुद्रा चेतना की अतीन्द्रिय (आंतरिक चेतना की) स्थिति है।
प्रतीकात्मक रूप से कनिष्ठा, अनामिका और मध्यमा उंगलियां प्रकृति के तीन गुणों - तमस, रजस और सत्त्व का बोध कराती हैं। चेतना को अज्ञान से ज्ञान लोक में ले जाने के लिए इन तीन अवस्थाओं को पार करना आवश्यक है।
तर्जनी जीवात्मा की प्रतीक है और अंगूठा परम चेतना का। ज्ञान और चिन मुद्राओं में जीवात्म (तर्जनी), परम चेतना (अंगूठे) के प्रति नतमस्तक होता है और उसकी अपार शक्ति को स्वीकारता है।
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