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टर्बिनेक्टमी एक ऐसी सर्जरी है जो नासिका गुहा से टर्बिनेट (कोंचा) का सारा या कुछ हिस्‍सा निकालने के लिए की जाती है। नाक के अंदर नथुनों से घुसने वाली हवा को फिल्‍टर और रेगुलेट करने वाली संरचना को टर्बिनेट कहते हैं। हर एक नासिक गुहा में तीन टर्बिनेट होते हैं - इंफीरियर (नीचे) मध्‍य और सुपीरियर (ऊपर) टर्बिनेट।

इंफेक्‍शन या एलर्जी के दौरान टर्बिनेट में सूजन आ जाती है और ज्‍यादा म्‍यूकस बनने लगता है जिसकी वजह से नाक में रुकावट और सांस लेने में दिक्‍कत होने लगती है। टर्बिनेक्टमी इन सभी लक्षणों से राहत देती है।

यह सर्जरी जनरल एनेस्‍थीसिया (बेहोश करने के लिए) या लोकल एनेस्‍थीसिया (ऑपरेशनी वाली जगह को सुन्‍न करने) देकर की जाती है। इस प्रक्रिया के दारान सर्जन माइक्रोडेब्रिडर (तेज स्‍पीड वाला उपकरण), लेजर, रेडियो फ्रीक्‍वेंसी एनर्जी, इलेक्ट्रिक करंट या टर्बिनेट पर बहुत ज्‍यादा ठंडा लगाकर बढ़े हुए टर्बिनेट को ट्रिम या हटा देते हैं।

इस सर्जरी में 15 से 30 मिनट का समय लगता है और मरीज को सर्जरी वाले दिन ही या अगले दिन छुट्टी मिल जाती है।

  1. टर्बिनेक्टमी क्या है - What is Turbinectomy in Hindi
  2. टर्बिनेक्टमी क्यों की जाती है - Why Turbinectomy is done in Hindi
  3. टर्बिनेक्टमी कब नहीं करवानी चाहिए - When Turbinectomy is not done in Hindi
  4. टर्बिनेक्टमी से पहले की तैयारी - Preparations before Turbinectomy in Hindi
  5. टर्बिनेक्टमी कैसे की जाती है - How Turbinectomy is done in Hindi
  6. टर्बिनेक्टमी के बाद देखभाल - Turbinectomy after care in Hindi
  7. टर्बिनेक्टमी की जटिलताएं - Turbinectomy Complications in Hindi
टर्बिनेक्टमी के डॉक्टर

नाक के अंदर के सभी या कुछ टर्बिनेटों को हटाने या ट्रिम करने के लिए टर्बिनेक्‍टमी की जाती है। टर्बिनेट (जिन्‍हें कोंचा भी कहते हैं) छोटी, मुड़ी हुई हड्डी वाले उभार होते हैं जो नासिक गुहा की बगल की दीवार पर होते हैं।

ये रक्‍त वाहिकाओं, नसों और ऊतक बनाने वाले म्‍यूकस से ढके होते हैं। हर एक नासिक गुहा के तीन टर्बिनेट होते हैं जो नथुनों में आने वाली हवा को गर्म, फिल्‍टर और नम करते हैं।

इंफीरियर टर्बिनेट नथुनों में आने वाली हवा के सबसे पहले संपर्क में आते हैं और बाहरी तत्‍वों और पैथोजीन पर इम्‍यून प्रतिक्रिया देते हैं। बाकी टर्बिनेट इम्‍यून प्रतिक्रिया नहीं दे सकते हैं।

इंफेक्‍शन या एलर्जी होने पर टर्बिनेट में सूजन आ जाती है और ज्‍यादा म्‍यूकस बनने लगता है जिससे न‍ासिका गुहा के अंदर हवा नहीं जा पाती है और कंजेशन हो जाता है। कुछ मामलों में इंफीरियर कोंचा हमेशा के लिए बढ़ जाता है और नाक को बंद कर देता है।

जब दवा से भी इसका इलाज न किया जाए सके तो टर्बिनेक्‍टमी की सलाह दी जाती है। इससे बढ़े हुए या सूजे हुए टर्बिनेट को ट्रिम या निकाला जाता है। खासतौर पर इंफीरियर कोंचा को जिससे नासिक गुहा खुल जाए।

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निम्‍न स्थितियों की वजह से नाक में आ रही रुकावट से राहत पाने के लिए इस सर्जरी की सलाह दी जाती है :

ब्‍लीडिंग यानि खून से संबंधिति विकारों से ग्रस्‍त व्‍यक्‍ति की यह सर्जरी नहीं की जाती है।

सर्जरी से कुछ दिन पहले मरीज को डॉक्‍टर से मिलने जाना होगा। इस दौरान डॉक्‍टर निम्‍न सवाल पूछेंगे :

  • फिलहाल या पहले कोई बीमारी हो
  • एनेस्‍थीसिया लिया हो या इससे एलर्जी है
  • कोई एलर्जी है
  • प्रेगनेंट तो नहीं हैं
  • कौन सी दवा, सप्‍लीमेंट, जड़ी बूटी या डॉक्‍टर के पर्चे के बिना मिलने वाली दवा ले रहे हैं।

इसके अलावा डॉक्‍टर निम्‍न टेस्‍ट करवाएंगे

डॉक्‍टर ऑपरेशन के लिए मरीज को निम्‍न निर्देश देंगे :

  • एस्प्रिन जैसी खून पतला करने वाली दवा ले रहे हैं तो सर्जरी से पहले बंद कर दें।
  • सिगरेट पीते हैं तो छोड़ दें।
  • सर्जरी से कुछ दिन पहले जुकाम, फ्लू या बुखार रहा है तो डॉक्‍टर को बताएं। ऐसे में सर्जरी टाली जा सकती है।
  • सर्जरी से एक रात पहले कुछ भी खाने-पीने से मना किया जाता है। इससे सर्जरी के दौरान एनेस्‍थीसिया की वजह से उल्‍टी नहीं होती है।
  • सर्जरी वाले दिन नहाकर जाएं और नेल पॉलिश, ज्‍वेलरी और मेकअप उतार दें।
  • ऑपरेशन के बाद घर ले जाने के लिए कोई दोस्‍त या परिवार का सदस्‍य हो।
  • मरीज की अनु‍मति के लिए एक फॉर्म साइन करवाया जाता है।

हॉस्‍पीटल पहुंचने के बाद मरीज को गाउन पहनाई जाती है। इसके बाद सर्जरी के लिए जरूरी दवाएं और तरल पदार्थ देने के लिए मरीज के हाथ या बांह में ड्रिप लगाई जाती है।

फिर जनरल या लोकल एनेस्‍थीसिया दिया जाता है। इसके बाद निम्‍न तरीकों से सर्जन टर्बिनेटों को ट्रिम या निकालते हैं :

  • डायथर्मी : टर्बिनेट पर एक सुईं रखी जाती है और उसके जरिए इलेक्ट्रिक करंट दिया जाता है।
  • माइक्रोडेब्राइडर एसिस्‍टिड टर्बिनेक्‍टोमी : यह एक हाई स्‍पीड का उपकरण होता है जो टर्बिनेट को निकालने के लिए नासिक गुहा में लगाया जाता है।
  • क्राइयोटर्बिनेक्‍टमी : इसमें टर्बिनेट के ऊतक को जमाने और नष्ट करने के लिए सुई की तरह एप्लीकेटर का उपयोग करके आर्गन गैस या तरल नाइट्रोजन से भरा जाता है।
  • रेडियोफ्रीक्‍वेंसी टर्बिनेट रिडक्‍शन या लेजर एब्‍लेशन : इस प्रक्रिया में रेडियोफ्रीक्‍वेंसी एनर्जी का इस्‍तेमाल किया जाता है। इसमें सुई जैसे उपकरण से रेडियोफ्रीक्‍वेंसी एनर्जी भेजी जाती है जो एक नियंत्रित तरीके में टर्बिनेट को कम या नुकसान पहुंचाता है।
  • लेजर टर्बिनेक्‍टमी : यह रेडियोफ्रीक्‍वेंसी की तरह ही है इस इसमें टर्बिनेट को कम करने के लिए लेजर लाइट का इस्‍तेमाल किया जाता है।

सर्जन इस सर्जरी के लिए एंडोस्‍कोप की मदद ले सकते हैं। ये एक पतली, लंबी सी ट्यूब होती है जिसके एक सिरे पर कैमरा और लाइट लगी होती है। एंडोस्‍कोप नासिका गुहा के अंदर की तस्‍वीरों को बाहर स्‍क्रीन पर दिखाता है।

टर्बिनेटों को ट्रिम या हटाने के बाद सर्जन ब्‍लीडिंग को रोकने के लिए नाक के अंदर घुलने वाले या अघुलनशील पैकिंग लगा दी जाती है।

इस सर्जरी में 15 से 30 मिनट लग सकते हैं। अगर जनरल एनेस्‍थीसिया में सर्जरी हुई है तो मरीज को थकान, बेचैनी और बेसुध महसूस हो सकता है। होश में आने पर मुंह में सूखापन और गले में खराश हो सकती है। ये जनरल एनेस्‍थीसिया के साइड इफेक्‍ट्स होते हैं जो कुछ घंटों के अंदर चले जाते हैं।

नाक के अंदर किस तरह की पैंकिंग की गई है, इसी पर निर्भर करता है कि आपको कितने समय तक अस्‍पताल में रूकना होगा। हालांकि, सर्जरी के बाद आमतौर पर उसी दिन छुट्टी मिल जाती है। अगर अघुलनशील पैकिंग है तो एक रात रूकना पड़ सकता है। इस पैकिंग को सर्जरी के एक दिन बाद ही निकाला जाता है।

 

सर्जरी के बाद शुरुआती कुछ हफ्तों में नाक में सूखा खून, म्‍यूकस बनना बढ़ना, बंद नाक महसूस हो सकती है। अस्‍पताल से छुट्टी लेने पर डॉक्‍टर देखभाल के लिए निम्‍न निर्देश दे सकते हैं :

  • शरीर को हाइड्रेट रखें।
  • दर्द निवारक दवा लेते रहें और डॉक्‍टर के बताए नेजल स्‍प्रे और ल्‍यूब्रिकेशन का इस्‍तेमाल करें।
  • सर्जरी के बाद दो हफ्ते तक कोई कठिन काम या एक्‍सरसाइज न करें। इसके बाद भी डॉक्‍टर से पूछ कर एक्‍सरसाइज शुरू करें।
  • सर्जरी के बाद शुरुआती हफ्ते में शराब न पिएं क्‍योंकि इससे ब्‍लीडिंग का खतरा बढ़ सकता है।
  • भीड़भाड़ वाली और धूलभरी जगहों पर एक हफ्ते तक न जाएं।
  • सर्जन नमक के पानी से नासिका गुहा को रोज धोने की कह सकते हैं।
  • रिकवरी के दौरान नाक में उंगली न डालें और तेज फूंक न मारें।
  • फ्लू या इंफेक्‍शन से बचने के लिए घर पर ही दो हफ्ते तक आराम करें।
  • सिगरेट न पिएं।
  • सेक्‍स के बाद सेक्‍स को लेकर कोई पाबंदी नहीं है।
  • ऑपरेशन के बाद सर्जरी वाली जगह को ठीक होने में छह हफ्ते लग सकते हैं। रिकवरी के बाद आपको नाक में आ रही रुकावट से राहत महसूस होगी।

डॉक्‍टर को कब दिखाएं?

निम्‍न लक्षण दिखने पर डॉक्‍टर को बताएं :

  • तेज बुखार
  • दस्‍त
  • सांस लेने में दिक्‍कत
  • पूरे शरीर पर सनबर्न जैसे रैश
  • उलझन
  • जीभ, होंठ और आंखो के सफेद वाले हिस्‍से पर लालिमा
  • फ्लू के लक्षण जैसे कि सिरदर्द, खांसी, बुखार, गले में खराश और बदन दर्द
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इस सर्जरी से कुछ संभावित जटिलताएं और जोखिम भी जुड़े हुए हैं, जैसे कि :

  • टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम
  • एट्रोफिक राइनाइटिस (नासिका गुहाओं की बीमारी)
  • नाक में सख्‍ती परत बनना
  • स्‍कार टिश्‍यू
  • आंख के टियर डक्‍ट को नुकसान पहुंचना
  • नासिका गुहा से स्राव बढ़ना
  • ब्‍लीडिंग
  • दर्द
  • एनेस्‍थीसिया से रिएक्‍शन
  • ऑपरेशन वाली जगह पर इंफेक्‍शन
  • फेफड़ों या टांगों में खून के थक्‍के बनना

फॉलो-अप के लिए डॉक्‍टर के पास कब जाएं?

अस्‍पताल से छुट्टी मिलने से पहले ही आपका फॉलो-अप शेड्यूल कर दिया जाएगा।

नोट : ऊपर दी गई संपूर्ण जानकारी शैक्षिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह डॉक्‍टरी सलाह का विकल्‍प नहीं है।

Dr. Anu Goyal

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कान, नाक और गले सम्बन्धी विकारों का विज्ञान
25 वर्षों का अनुभव

Dr. Manish Gudeniya

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Dr. Oliyath Ali

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संदर्भ

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