भारत में गाय के दूध को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। जहां भैंस का दूध स्वादिष्ट और अधिक घी वाला होता है, वहीं गाय के दूध को अधिक स्वास्थ्यवर्धक और बुद्धि की क्षमता को बढ़ाने वाला माना जाता है। भैंसों की तरह ही गायों को भी पेट संबंधी बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। इनमें से एक पेट में पनपने वाले परजीवियों से होने वाला संक्रमण है। इसे परजीवी संक्रमण भी कहा जाता है, जिससे गाय के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
गाय के पेट में होने वाला संक्रमण पेट में मौजूद किसी भी अंग में हो सकता है, जिसके अनुसार इसके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। पेट में परजीवी संक्रमण से आमतौर पर गाय का जुगाली न करना, चारा न खाना, चिड़चिड़ापन और पतला गोबर करना आदि लक्षण देखे जा सकते हैं।
गाय के पेट में परजीवी संक्रमण के कई अंदरूनी कारण हो सकते हैं, जिनमें बासी व सड़ा हुआ घास खाना और अस्वच्छ पानी पीना आदि मुख्य हैं। इस स्थिति का परीक्षण गाय के लक्षणों की जांच करके और अंदरूनी कारणों का पता लगाकर किया जाता है। परीक्षण के लिए गाय के गोबर, पेशाब, लार या रक्त का सैंपल लेकर कुछ टेस्ट भी किए जा सकते हैं।
परीक्षण करके रोग की पहचान करने के बाद ही रोग का इलाज शुरू किया जाता है। परजीवी संक्रमण के इलाज में मुख्य रूप से एंटी पैरासाइटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा डिवर्मिंग प्रक्रिया और गाय की त्वचा से चीचड़ियों को हटाने के लिए अन्य दवाओं का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पेट में परजीवी संक्रमण होने पर इसका इलाज शुरू करना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि कुछ गंभीर मामलों में गाय की मृत्यु भी हो सकती है।
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