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Agrow Yakrat Syrup बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः भूख न लगना, शराब की लत, फैटी लिवर, बदहजमी के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। Agrow Yakrat Syrup के मुख्य घटक हैं कालमेघ, भृंगराज, दारुहल्दी, तुलसी, चिरायता, कुटकी जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है। Agrow Yakrat Syrup की उचित खुराक मरीज की उम्र, लिंग और उसके स्वास्थ्य संबंधी पिछली समस्याओं पर निर्भर करती है। यह जानकारी विस्तार से खुराक वाले भाग में दी गई है।
कालमेघ |
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भृंगराज |
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दारुहल्दी |
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तुलसी |
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चिरायता |
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कुटकी |
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Agrow Yakrat Syrup 200ml Pack Of 4 इन बिमारियों के इलाज में काम आती है -
मुख्य लाभ
यह अधिकतर मामलों में दी जाने वाली Agrow Yakrat Syrup 200ml Pack Of 4 की खुराक है। कृपया याद रखें कि हर रोगी और उनका मामला अलग हो सकता है। इसलिए रोग, दवाई देने के तरीके, रोगी की आयु, रोगी का चिकित्सा इतिहास और अन्य कारकों के आधार पर Agrow Yakrat Syrup 200ml Pack Of 4 की खुराक अलग हो सकती है।
आयु वर्ग | खुराक |
व्यस्क |
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बच्चे(2 से 12 वर्ष) |
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चिकित्सा साहित्य में Agrow Yakrat Syrup के दुष्प्रभावों के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। हालांकि, Agrow Yakrat Syrup का इस्तेमाल करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह-मशविरा जरूर करें।
इस जानकारी के लेखक है -
BAMS, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, डर्माटोलॉजी, मनोचिकित्सा, आयुर्वेद, सेक्सोलोजी, मधुमेह चिकित्सक
10 वर्षों का अनुभव
संदर्भ
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. [link]. Volume- II. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 1999: Page No 21-24
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. [link]. Volume- II. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 1999: Page No 34-36
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. [link]. Volume 2. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 1999: Page No 170 - 176
Ministry of Health and Family Welfare. Department of Ayush: Government of India. [link]. Volume 1. Ghaziabad, India: Pharmacopoeia Commission for Indian Medicine & Homoeopathy; 1986: Page No 98-100