पूजा-पाठ में कपूर यानी कैम्फर का इस्तेमाल होता है। इसके बिना आरती अधूरी होती है। तेज गंध वाला कपूर न केवल भक्ति के लिए बल्कि सेहत के लिए भी काम का साबित हो सकता है। कपूर के पेड़ की छाल से प्राप्त होने वाला कपूर प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक रासायनिक यौगिक है। यह अपनी चिकित्सीय विशेषताओं के कारण स्वास्थ्य के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है। अपनी महक के लिए लोकप्रिय टरपीन (पौधों में विस्तृत रूप से पाए जाने वाला तत्व) से कपूर की गोलियां तैयार की जाती हैं।
प्रकृति में, ये टरपीन पौधों की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। टरपीन को खाया नहीं जा सकता है लेकिन इसके इस्तेमाल से कई तरह के फायदे मिलते हैं। पारंपरिक और पश्चिमी औषधि प्रणाली में कपूर को औषधीय और स्वास्थ्यप्रद गुणों के लिए जाना जाता है। कफ जमने, दर्द और सूजन जैसी कई समस्याओं से राहत पाने में कपूर मदद करता है। यहां तक कि कुछ अध्ययनों में भी ये बात कही गई है कि त्वचा के जलने और फंगल इंफेक्शन को ठीक करने में कपूर असरकारी है।
कपूर की उत्पत्ति भारत, चीन और जापान में हुई थी। इसकी अधिकतर खेती विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। इसे 'ग्लोबल इनवेसिव स्पीशीज डेटाबेस' में एक विषैले पौधे के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। कपूर एक सदाबहार पेड़ है जो 60 फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। इसका पेड़ बहुत तेजी से बढ़ता है। भारत में पाए जाने वाले कपूर के वृक्ष छोटे होते हैं और इनकी पत्तियां ढाई से 4 ईंच लंबी होती हैं। इसके छोटे सफेद फूल होते हैं और इसका गोल आकार का फल जामुनी से काले रंग का होता है।
क्या आप जानते हैं?
कपूर सिर्फ एक वृक्ष ही नहीं है बल्कि इसका तेल और रासायनिक यौगिक भी है। रासायनिक यौगिक होने के कारण इसे लैवेंडर, कपूर तुलसी और रोजमेरी जैसे पौधों के सुगंधित तेल से भी लिया जा सकता है।
कपूर के वृक्ष के बारे में तथ्य:
- वानस्पतिक नाम : सिनामोमस कैफोरा
- कुल : लॉरेसी
- सामान्य नाम : कैंफर लॉरेल, कपूर, कपूर वृक्ष
- उपयोगी भाग : पत्तियां, छाल
- भौगोलिक विवरण : कपूर की किस्में चीन, भारत और जापान जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका खासतौपर पर फ्लोरिडा में भी इसे जाना जाता है।
- गुण : शीतल