प्ल्यूरोडेसिस एक सर्जरी प्रोसीजर है, जिसकी मदद से प्ल्यूरल स्पेस में असामान्य रूप से जमा हुई हवा या द्रव आदि को निकाला जाता है। प्ल्यूरल स्पेस फेफड़ों के पास दो पतली झिल्लियों के बीच की खाली जगह (कैविटी) को कहा जाता है।
सर्जरी करने से पहले डॉक्टर आपको कुछ प्रकार के टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं, जिनकी मदद से फेफड़ों के स्वास्थ्य की जांच की जाती है। अधिकतर सर्जिकल प्रक्रियाओं की तरह प्ल्यूरोडेसिस सर्जरी को भी खाली पेट किया जाता है।
प्ल्यूरोडेसिस में सर्जन एक विशेष ट्यूब की मदद से अंदर फंसे द्रव व वायु को निकालते हैं और दवाएं शरीर के अंदर पहुंचाते हैं, इस ट्यूब को चेस्ट ट्यूब कहा जाता है। इस ट्यूब को 24 घंटों के लिए एक ही जगह पर रखा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान विशेष इंजेक्शन व अन्य उपकरणों की मदद से प्ल्यूरल स्पेस में डॉक्सिसाइक्लिन या टैल्क पाउडर को डाल दिया जाता है। ये दवाएं व पाउडर दोनों झिल्लियों को आपस में चिपका देते हैं, जिससे उनके बीच हवा व द्रव जमा नहीं हो पाते हैं और परिणामस्वरूप सांस लेने की प्रक्रिया में कुछ सुधार आता है।
ऑपरेशन के बाद सर्जरी वाले हिस्से को पूरी तरह से साफ व सूखा रखने की सलाह दी जाती है। सर्जरी के बाद कुछ समय तक दर्द व सूजन जैसी समस्याएं रह सकती हैं, जिनके लिए डॉक्टर अलग से दवाएं देते हैं। सर्जरी होने के लगभग सात दिन बाद आपको फिर से अस्पताल बुलाया जाता है, उस दिन सर्जरी के टांके खोले जाते हैं और यह सुनिश्चित किया जाता है कि कहीं सर्जरी से कोई दिक्कत तो नहीं हुई है।
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