थायराइड, तितली के आकार की एक ग्रंथि है जो गले के आगे के हिस्से में स्थित होती है। ये ग्रंथि अलग-अलग प्रकार के हार्मोन बनाती है, जैसे ट्राईआयोडोथायरोनिन टी 3 (Triiodothyronine - T3) और थायरोक्सिन टी 4 (Thyroxine - T4) आदि। ये हार्मोन व्यक्ति के विकास व मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करते हैं और कैल्सीटोनिन नामक हार्मोन हड्डियों में मिनरल्स को बनाए रखने में मदद करता है।
दिमाग की एक ग्रंथि (पिट्यूटरी ग्रंथि) की प्रतिक्रिया से थायराइड के हार्मोन नियंत्रित होते हैं। पिट्यूटरी ग्रंथि इन हार्मोन को नियंत्रित करने के लिए थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) बनाती है, जो खून में मौजूद टी - 3 और टी - 4 हार्मोन की मात्रा को कम-ज्यादा करता है।
जब खून में टी - 3 और टी - 4 हार्मोन का स्तर अधिक हो जाता है और टीएसएच का स्तर कम होता है, तो उसे थायराइड बढ़ना (हायपरथायरॉइडिज़्म) कहते हैं। इसके विपरीत, टी - 3 और टी - 4 का स्तर अधिक होना व टीएसएच कम होना थायराइड कम होना (हाइपोथायरॉइडिज़्म) कहलाता है।
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थायराइड बढ़ने व घटने के अलावा भी कुछ थायराइड संबंधी समस्याएं होती हैं, जैसे गोइटर, थायराइड में सिस्ट, ट्यूमर और थायराइड कैंसर।
हाइपोथायरॉइडिज़्म के कई कारण हो सकते हैं, जैसे थायराइड ग्रंथि की सूजन, डिलीवरी के बाद थायराइड ग्रंथि की सूजन, आयोडीन की कमी और नवजात शिशु की थायराइड ग्रंथि का काम न करना। इसके लक्षण हैं वजन बढ़ना, याददाश्त कमजोर होना, थकान, ठंड बर्दाश्त न होना, बार-बार पीरियड्स होना या मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव, बालों व त्वचा का सूखापन और आवाज़ बैठना।
हायपरथायरॉइडिज़्म के कारण हैं ग्रेव्स डिजीज, थायराइड में गांठ बनना और आयोडीन ज्यादा मात्रा में लेना आदि। इसके लक्षण हैं, वजन घटना, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कंपकपी, मांसपेशियों की कमजोरी, नींद संबंधी विकार, गर्मी बर्दाश्त न होना, कम या अनियमित मासिक धर्म और थायराइड ग्रंथि बढ़ना आदि।
होम्योपैथिक उपचार शरीर के हार्मोन को नियंत्रित करता है। इसके लिए उपयोग की जाने वाली होम्योपैथिक दवाएं हैं, आयोडीन, फ्यूक्स वेसीक्युलोसा, कैल्केरिया कार्बोनिका, ब्रोमियम, स्पंजिया, नेट्रियम म्यूरिएटिकम, थायराइडिनम आदि। ये दवाएं व्यक्ति के लक्षणों और उसकी मानसिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए दी जाती हैं।