एक नए अध्ययन से पता चला है कि मजबूत इच्छाशक्ति स्ट्रोक या मस्तिष्क के दौरे की समस्या से पार पाने में काफी कारगर है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे मरीजों को स्ट्रोक से उबरने में काफी मदद मिलती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्ट्रोक आना सामान्य बात नहीं है, लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति अगर खुद के ठीक होने को लेकर हमेशा आशावान बना रहे, तो यह स्पिरिट इस बीमारी के इलाज में काफी सहायक साबित हो सकती है। इसी हफ्ते स्ट्रोक के मुद्दे पर अमेरिका में आयोजित 'अंतरराष्ट्रीय स्ट्रोक सम्मेलन 2020' (आईएससी) के दौरान शोधकर्ताओं ने यह जानकारी दी। उनके मुताबिक, अध्ययन में पाया गया कि स्ट्रोक के इलाज के दौरान मरीज का आशावादी बने रहना उपचार को बेहतर बनाता है और इससे स्ट्रोक से होने वाली शारीरिक विकलांगता को कम किया सकता है।

उम्मीद है तो इलाज है
अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन द्वारा आयोजित आईएससी में शोधकर्ताओं ने स्ट्रोक से जुड़े कुछ तथ्य पेश किए। इन तथ्यों के आधार पर उन्होंने बताया कि स्ट्रोक के रोगी का एक उच्च स्तर का आशावादी होना बड़ा बीमारी से लड़ने में लाभदायक हो सकता है। उनका कहना था कि रोगी के अंदर ठीक होने की उम्मीद बनी रहने से स्ट्रोक का खतरा तेजी से कम होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे स्ट्रोक के चलते मस्तिष्क में होने वाली सूजन की समस्या तीन महीने में दूर हो सकती है।

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस अध्ययन से जुड़ीं शोधकर्ता यून जू लाइ ने अपने एक बयान में कहा, 'हमारे रिसर्च से मिले नतीजे यह साबित करते हैं कि इच्छाशक्ति के जरिये इलाज के दौरान बेहतर और जल्दी परिणाम मिलने की संभावना अधिक हो सकती है। मतलब स्ट्रोक के बाद व्यक्ति के आत्मविश्वास या मनोबल के स्तर को बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सकता है, जो कि एक बढ़िया विकल्प है।' यून जू लाइ अमेरिका के ह्यूस्टन में यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास हेल्थ साइंस सेंटर में न्यूरोलॉजी विभाग में रजिस्टर्ड नर्स और पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं। वे कहतीं है कि स्ट्रोक के मरीजों और उनके परिवारों को एक सकारात्मक वातावरण के महत्व को जानना चाहिए, यह रोगी को अधिक फायदा पहुंचा सकता है।

वहीं, अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर स्थित माउंट सिनाई अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एलन रोजानस्की का कहना है, कि स्ट्रोक पर किए गए इस नए अध्ययन से जुड़े तथ्य, पहले किए गए एक और शोध के तथ्यों से मेल खाते हैं, जो बीमारी के इलाज के रूप में लोगों के आशावादी होने को दर्शाते हैं। रोजानस्की जैसे अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने हृदय रोग में आशावाद की भूमिका पर अच्छी तरह से शोध किया है, लेकिन स्ट्रोक के रोगियों में समान परिणाम दिखाने के लिए यह अपनी तरह का पहला अध्ययन था।

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कैसे की गई रिसर्च?
मीडिया रिपोर्टों की मानें तो इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर लोगों को शामिल नहीं किया। इसमें 49 ऐसे लोगों को शामिल किया गया था, जो स्ट्रोक के अनुभव से गुजर चुके थे। अध्ययन के दौरान पाया गया कि बीमारी से लड़ने की इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के बल पर थोड़े से समय में इन लोगों में स्ट्रोक और इंटरल्यूकिन-6 का स्तर कम हो गया। इंटरल्यूकिन-6 का मतलब सिर पर लगी किसी प्रकार की चोट से है, जो एक वक्त के बाद स्ट्रोक का कारण बन सकती है।

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