एक अध्ययन में इम्यूनोथेरेपी ड्रग एटिजोलिजुमैब नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर के नए मरीजों (एनएससीएलसी) के लिए स्टैंडर्ड कीमोथेरेपी से ज्यादा फायदेमंद साबित हुआ है। अमेरिका स्थित याले कैंसर सेंटर में किए गए इस अध्ययन के महत्वपूर्ण परिणाम जानी-मानी मेडिकल पत्रिका न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (एनईजेएम) में हाल में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने ड्रग को वैश्विक स्तर पर हुए तीसरे चरण के ट्रायल के तहत आजमाया था। इस दौरान मिले परिणामों के आधार पर कहा गया है कि स्टडी में लंग कैंसर के खिलाफ दिखी एटिजोलिजुमैब की क्षमता कई मरीजों की जिंदगी बदल सकती है।
अध्ययन में शामिल शोधकर्ता और याले कैंसर सेंटर के मेडिकल ऑन्कोलॉजी प्रमुख डॉ. रॉय एस हर्ब्स्ट कहते हैं, 'ये परिणाम काफी उत्साहजनक हैं और कई मरीजों की जिंदगी बदलने वाले साबित हो सकते हैं। दुनियाभर में कैंसर के सबसे ज्यादा मरीज फेफड़ों के कैंसर से ग्रस्त होते हैं। आंकड़ों की मानें तो हर साल 15 लाख से भी ज्यादा लोग लंग कैंसर से पीड़ित पाए जाते हैं। इनमें से आधे मेटास्टेटिक कैंसर की चपेट में होते हैं। उनके लिए यह दवा एक विकल्प हो सकती है।'
शोधकर्ताओं ने एटिजोलिजुमैब को एक 'चेकपॉइंट इनहिबिटर' बताया है। इसे कैंसर को खत्म करने के लिए इम्यून सिस्टम की सबसे महत्वपूर्ण कोशिकाओं टी सेल्स की मदद करने के लिए तैयार किया गया है। यह ड्रग ट्यूमर सेल्स की सतह पर मौजूद एक प्रोटीन पीडी-एल1 को टार्गेट करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रोटीन टी सेल्स को सिग्नल भेज कर उन्हें (टी सेल्स को) ट्यूमर सेल्स पर हमला नहीं करने से रोक सकता है। लिहाजा इसे सिग्नल भेजने से रोककर टी सेल्स के जरिये कैंसर से लड़ा जा सकता है। शोधकर्ताओं की मानें तो एटिजोलिजुमैब इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता दिखा है।
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दवा की क्षमता को जांचने के लिए वैज्ञानिकों ने चौथी स्टेज के मेटास्टेटिक एनएससीएलसी के 554 मरीजों को अध्ययन में शामिल किया था। इन मरीजों के कुछ विशेष वंशाणुओं (ईजीएफआर या एएलके जींस) में म्युटेशंस की कमी हो गई थी। अध्ययन से जुड़ी रिपोर्ट के मुताबिक, कोई 205 मरीजों के ट्यूमर में पीडी-एल1 प्रोटीन की मात्रा काफी ज्यादा थी। प्रयोगात्मक इलाज के तहत शोधकर्ताओं ने कुछ मरीजों को एटिजोलिजुमैब के डोज दिए थे, जबकि कुछ का इलाज स्टैंडर्ड प्लैटिनम-बेल्ड कीमोथेरेपी से किया गया। इस दौरान पता चला कि जिन मरीजों को एटिजोलिजुमैब दिया गया था, वे औसतन 20 महीनों तक जीवित रहे, जबकि कीमोथेरेपी वाले लंग कैंसर मरीज 13 महीने तक जीवित रहे। एटिजोलिजुमैब लेने वाले मरीजों का सर्वाइवल पीरियड औसतन आठ महीने तक बढ़ गया। वहीं, कीमोथेरेपी वाले मरीजों की जीवित रहने की अवधि पांच महीने पाई गई।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि ज्यादातर मरीजों में एटिजोलिजुमैब सहनीय ड्रग के रूप में प्रभावी दिखा, जो सकारात्मक परिणामों के लिहाज से वैज्ञानिकों के लिए और ज्यादा महत्वपूर्ण बात थी। इस बारे में जानकारी देते हुए डॉ. हर्ब्स्ट ने कहा है, 'मरीजों में दिखे साइड इफेक्ट ड्रग को लेकर किए गए अन्य ट्रायलों जैसे ही थे, जिन्हें कई प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए अप्रूव किया गया है।'